हाइकु
हाइकु
किसे सुनाये
ऊँचे यूकेलिप्टिस
अपने किस्से।
पिता का रोपा
मीठे आम का पेड़
छाया स्नेह की।
बहा ले गई
हँसमुख झोंपड़ी
घायल नदी।
मौत पिता की
बनी मेड़ें खेतों में
चूल्हे घरों में।
देखा नीम ने
बँटवारा घर का
माँ के आँसू भी।
खुलते गए
जुबान की चाबी से
ताले रिश्तों के।
कभी न आती
वृद्धों के आश्रम में
प्रेम की पाती।
चली जो आँधी
चीखते रहे बाँस
झुकते जाओ।
उधड़ी पर्त
लगाई छुपाने को
बापू की फोटो।
पलाश वन
बाँधे लाल मुरैठे
खड़ी बारात।
– योगेन्द्र कुमार वर्मा
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