रात की रानी
इत्र व सुरा संग
घुंघरू गूँजे।
लौटते पात
दिगंबर तरु के
प्रवासी पूत।
सर्प चाल में
श्रृंग से भू पे जल
सद्यस्नाता स्त्री।
पी परदेश
तलाश रही विभा
सप्तर्षि तारे।
मधुयामिनी
संकेतक रौशनी
पर्दे के पास।
कुमुदीप्रोक्ता
अंध भक्त को मिला
बाँसुरी भेंट।
इत्र शीशी में
दर्द दवा दी गई
वृद्धों की टोली।
कुंभ का मेला
डुबकी लगा रहे
प्रवासी पक्षी।
वन में आग
मिट्टी लेप से बचा
खरोंचा नाम।
मिल पत्थर
पनघट पे फैले
काई व घट।
– विभा रानी श्रीवास्तव