हाइकु
हाइकु
चाँद है ज़िद्दी
रोज़ माँगता माँ से
ऊनी झिँगोला
अंबर रोता
धरती अंचल में
बिखरे आँसू
यादों की कील
हृदय में चुभती
आठों प्रहर
गगनाश्रु से
धरा कठोर उर
नर्म हो गया
मेरे नयन
सावन के घन-से
बरस रहें
मधु-सी मीठी
तेरी बोली हे! सखे
कानों में घुले
भ्रमर घूमे
मकरंद पीने को
उपवन में
जीवन नौका
समय की धार पे
बहती जाए
जीवन मेरा
भार बन गया है
तुम्हारे बिन
दहेज लोभी
सपनों का महल
पल में फूँके
– पीयूष कुमार द्विवेदी
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