हाइकु
हाइकु
सूखा दरख्त
सोच-लोच से मुक्त
आखिरी वक्त।
कब सो गई
खाली हाँडी के संग
चूल्हे की आग
पैकेज पीढ़ी
जिनके लिए होते
माँ-बाप सीढ़ी।
बालिका वधू
अरमानों की चिता
जलती धू-धू।
सरसों फूली
नवयौवना-सी वो
ख़ुद को भूली।
दीवारें तो हैं
दीवारों के भीतर
कहाँ है घर?
सबसे हारा
हर वक्त का मारा
ये सर्वहारा।
एक दुनिया
एक जैसे हैं लोग
ढेरों दीवारें।
पराया धन
ढूँढे अपनों में ही
अपनापन।
ख़ुदा जो भी दे
काँटे दे या ताज़ दे
बेहिसाब दे।
आँखों के नूर
बुढ़ापे की हैं लाठी
हाथों से दूर।
माटी ना छोड़ी
माटी-माटी हो गए
माटी के लाल।
गठबंधन
मतलब का साथ
पानी-चंदन।
कैसा है नाता
वर्गफुट में बिकें
धरती माता।
अपने नीचे
अँधेरे को दीपक
कस के भींचे।
हैं मजबूर
दिहाड़ी मजदूर
रोटी से दूर।
बचा लो पानी
वरना पीना होगा
आँखों का पानी।
हे कोलम्बस
ढूँढ़ो नई दुनिया
जहाँ हो पानी।
सुंदर धरा
कभी अयोध्या सहे
कभी गोधरा।
करो तलाश
नए-नए संदर्भ
नई व्याख्याएँ।
बंद की आँखें
चोरों से घुस आए
उनके ख्वाब।
– पवन कुमार जैन