हाइकु
हाइकु
तपती रेत
मजदूर स्त्री देखे
पैर के छाले
गुलाबी ख़त
प्रेम किया स्वीकार
पहली बार
ताल तल पे
बूँद करती नर्तन
प्रीत अर्पण
संध्या आरती
सरहद पे गूँजे
जय भारती
जीवन संध्या
प्रवासी पक्षी लौटे
अपने नीड़
सरसों खेत
दुल्हन धरा सजी
पीत वसना
बढ़ते जन
ऊँचे होते सदन
घटते वन
काग़ज़ी फूल
ढ़ूढ़ रही तितली
पुष्प पराग
बेटी धान
नाज से है पालता
पिता किसान
– कंचन अपराजिता
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