हाइकु
हाइकु
वक्त डायरी
अपना कलेवर
बदल रही।
समय चक्र
चले अनवरत
कभी न रुके।
बड़े महँगे
रजाई व कम्बल
जेब हलकी।
पारे सदृश
ढलके अश्रु बिंदु
कपोल पर।
उगा सूरज
सुनहरे सपने
विदा हो गये।
देश की धूल
माथे लगा चन्दन
करें वन्दन।
मिट्टी के पात्र
सदा होते पवित्र
ईको फ्रेंडली ।
पानी बरसा
नथुनों में समायी
मिट्टी की गन्ध।
दर्द का गीत
नयनों से बहता
भीगा आँचल।
लगा गलाने
समय का सुनार
हृदय स्वर्ण।
– डॉ. रंजना वर्मा