हाइकू
हाइकु
रावण कौन?
तय करेंगे अब
महारावण।
मुखौटे लगा
फेसबुकिया लोग
बने हैं दोस्त।
दिखेगा वैसा
जैसा भी नज़रिया
आपका होगा।
पहनना क्यों?
जब लिबास में भी
हों बेलिबास।
कैसा सावन?
पतझड़ लगे है
तुम्हारे बिन।
साथ रहेंगे
फूल और ख़ुशबू ही
काँटों का क्या है?
तू जो साथ है
मैं डरती नहीं हूँ
हौसला है तू।
तुझसे मिली
तो लगा पूरी हुई
तलाश मेरी।
घटाएँ देख
बादल बेचैन हैं
बाँध लो ज़ुल्फ़।
निहारे रस्ता
लौटेगा मेरा बेटा
माँ की निगाहें।
संस्कार न थे
तुलसी सूख गयी
पानी तो था ही।
कलयुग है
रावण महलों में
राम तम्बू में।
कोई युग हो
राम को ही होना है
दर-बदर।
अपनापन
क्यूँ आभासी रिश्तों में
ढूँढे है लोग।
– अना इलाहाबादी