ख़ास मुलाक़ात
हम तो ढलती शाम के सूरज हैं, कोई भरी दुपहरी वाला सूरज आये और अपने समय को बयां करे: हरिप्रकाश राठी
लेखक अपने समय को लिखता है लेकिन कई बार वो इतनी जटिलता से पेश आता है कि जिनके बारे में लिखा गया है वो ही समझ नहीं पाते। देश के हर कोने में मनोरंजन से लेकर उपदेशपरक कहानियाँ लिखने वाले लेखकों की भरमार है लेकिन बहुत कम लेखक ऐसे होंगे जिन्होंने इतना सरल लिखते हुए लोकप्रियता हासिल की हो। जी हाँ, हम इस बार आपका परिचय करवा रहे हैं जोधपुर के कथाकार हरिप्रकाश राठी जी से जिन्होंने हाल ही में अपनी कहानियों का सैंकड़ा पूरा किया है। जोधपुर के कहानीकारों पर नज़र डालें तो अभी तक 135 कहानियाँ लिखने वाला कोई कहानीकार नज़र नहीं आता।
8 सितम्बर 1955 को जोधपुर में जन्मे हरिप्रकाश राठी ने बहुत कम समय में कथाकार के रूप में अपनी पहचान बनाई है। वर्ष 2001 तक वे बैंक सेवा में थे और वर्ष 2002 से लगातार लेखन में सक्रिय हैं। अभी तक उन्होंने तक़रीबन एक सौ पैंतीस कहानियां साहित्य को समर्पित की हैं। राठी जी के अभी तक सात कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ‘अगोचर’, ‘सांप-सीढ़ी’, ‘आधार’, ‘पीढ़ियाँ’, ‘पहली बरसात’, ‘माटी के दीये’ व ‘नेति-नेति’ शामिल हैं। वहीँ हाल ही में राजस्थानी ग्रंथागार,जोधपुर से उनकी प्रतिनिधि कहानियों का संकलन ‘हरिप्रकाश राठी की प्रतिनिधि कहानियां’ छपकर आया है।
राठी जी की कुछ कहानियों का अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद हुआ है, जिसे ‘ऑन द विंग्स ऑफ़ कुरजां’ नाम दिया है।
देशभर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं सहित आकाशवाणी के माध्यम से भी राठी जी की दर्जनों कहानियां पाठकों/श्रोताओं तक पहुंची हैं। इनकी साहित्य सेवा को देखते हुए विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला विद्यापीठ, इशीपुर से), राजस्थान रत्न (जैमिनी अकादमी,पानीपत से) और विशिष्ट साहित्यकार (पंजाब कला अकादमी से) आदि सम्मानों से नवाजा गया है।
युवा पत्रकार और कवि के.डी. चारण द्वारा उनके पूरे लेखन को लेकर की गयी बातचीत के खास अंश:-
के.डी. चारण:- पहली कहानी कब लिखी और लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
हरी प्रकाश राठी:- मैंने पहली कहानी अपनी सेवानिवृति के बाद 2001 में लिखी। उन दिनों अकेला ही जोधपुर रहता था, तो मेरी तन्हाई ने ही आत्म चिंतन के लिए मजबूर किया। एक दिन बैठे-बैठे ही मन में एक घटना आई और उसे लिखने बैठा। उसी दिन मेरे खास मित्र (नवीन चन्द्र दत्त) घर आये और मैंने उनसे अच्छी तरह बात भी नहीं की और उन्हें बाद में आने को कह दिया। इसलिए मेरी पहली कहानी ‘अमरुद का पेड़’ में मैंने पात्र के नाम की जगह नवीन का नाम लिखा क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि मैंने उसके साथ सही ढंग से बात नहीं करके उसे नाराज़ कर दिया। समाज में घटित होने वाली विभिन्न घटनाएँ जो मुझे झकझोर देती हैं, वही मेरे लिए कहानी लिखने की प्रेरणा लेकर आती हैं।
के.डी. चारण:- इतने कम समय में एक सौ पैंतीस कहानियाँ लिखीं, क्या आपको पाठक सुलभता से मिल जाते है?
हरी प्रकाश राठी:- मैं ये नहीं देखता कि इस कहानी को कितने लोग पढ़ेंगे। बस मुझे आम लोगों की कोई भी घटना प्रभावित कर जाती है और मैं कहानी रच देता हूँ। चाहे उस समय में पब्लिक बस में सफ़र कर रहा हूँ या कुछ खरीद रहा हूँ या कुछ भी कर रहा हूँ। कहीं न कहीं हर कहानी का पात्र मुझे मजबूर कर देता है कि मैं उसकी कहानी को लोगों तक पहुँचाऊँ। मैं आम दिनचर्या की कहानियां लिखता हूँ, जिसकी भाषा बहुत ही सरल होती है और वो लोगों को इतनी आसान और रसमय लगती है कि पाठक एक बार शुरू करने के बाद कहानी को पूरा पढ़कर ही दम लेता है।
के.डी. चारण:- कहानी लिखते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखते हैं?
हरी प्रकाश राठी:- मैं उस समय सिर्फ कहानी के पात्रों के साथ बात करता हूँ, वो जो कहना चाहते हैं, उसे बड़ी सहजता के साथ लिखता रहता हूँ। मैं कभी किसी पात्र के चरित्र या उसकी किसी बात को कहानी में छुपाता नहीं हूँ। बस जिस घटना ने मुझे प्रभावित किया है, उससे जुड़े हर एक पात्र को खुलकर पेश आने का मौका देता हूँ और कहानी खुद-ब-खुद बन जाती है।
के.डी. चारण:- इसका मतलब कहानी लिखना कोई मुश्किल भरा काम नहीं है, कोई भी लिख सकता है?
हरी प्रकाश राठी:- बिल्कुल नहीं। कहानी लिखना कोई मुश्किल काम नहीं है पर घटना से जुड़े पात्रों के मन की बात आप किस तरह निकाल सकते हैं, वो मुश्किल काम है। जिसको अपनी कहानी के पात्रों के साथ बातचीत करनी आती है, वो अच्छी कहानी लिखने में सफल हो सकता है। कहानी है क्या? आपने जो जिस तरीके से देखा और महसूस किया, उसी को तो लिखकर या बोलकर कहना है। बस किसी के दर्द को अपना दर्द समझने की कला आनी चाहिए कहानी लेखन के लिए।
के.डी. चारण:- मौजूदा दौर के कहानी लेखन से आपकी कहानियां भिन्न हैं, ऐसा क्यों?
हरी प्रकाश राठी:- जी, मैं बिल्कुल इस बात को स्वीकार करता हूँ कि आज के दौर के हिंदी कहानी लेखकों से मेरी कहानियां बिल्कुल ही भिन्न हैं। इसके पीछे का बड़ा कारण मुझ पर हिंदी के पुराने कथाकारों का प्रभाव है। मैं कोई साहित्यिक परिवार में पैदा नहीं हुआ। आम पाठक की तरह कहानियां पढ़ता था और उन्हीं के लेखन के प्रभाव से मैंने लिखना प्रारंभ किया है।
के.डी. चारण:- आपने मिथक आधारित कहानियाँ अधिक लिखीं, इस पर आपकी क्या राय है?
हरी प्रकाश राठी:- कोई भी बात जो पहले से पाठकों के मन में बैठी हुई है, उसे वापिस जगाना और नए सन्दर्भों में (आधुनिक सन्दर्भों) ढाला जाए तो वो ज्यादा प्रभावी होता है। कहीं न कहीं हमारे इतिहास में कुछ पात्र ऐसे भी हैं, जिनके साथ मुझे लगता है कि लेखकों ने न्याय नहीं किया है। जैसे- कैकयी नाम का पात्र रामायण में है जिसे लोग हीन दृष्टी से देखते हैं लेकिन कैकयी के साथ क्या और किस तरह से अन्याय हुआ, वो मेरी सोच है कि कम लोग ही जानते हैं। राजस्थान में धार्मिक प्रसंगों से जुड़ी कहानियों को प्रमुखता दी जाती है। इस कारण मैंने मिथक आधारित कहानियां लिखी हैं।
के.डी. चारण:- आज के समय में हिंदी में आपके पसंदीदा लेखक कौन-कौन हैं और क्यों? विशेषकर राजस्थान या जोधपुर के स्थानीय लेखकों के बारे में बात करें तो?
हरी प्रकाश राठी:- मुझे विजय दान देथा का साहित्य बहुत पसंद है। अगर आज के समय की बात करें तो जोधपुर के हबीब कैफ़ी, हसन जमाल, मनीषा कुलश्रेष्ठ (जिनका जन्म जोधपुर में ही हुआ है) की कहानियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। जया जादवानी और शिवानी का लेखन भी अच्छा है पर मुझे पुराने कथाकारों ने विशेषकर प्रेमचंद, सुदर्शन और टॉलस्टॉय ने बहुत ही ज्यादा प्रभावित और प्रेरित किया है। उसके पीछे सीधा-सा कारण है कि इनकी कहानियां पाठकों को उलझाती नहीं हैं बल्कि सीधे और सपाट तरीके से समझाती चलती हैं। मेरे हिसाब से कहानी का अपना प्रवाह होता है जो खुद-ब-खुद चलता है, लेखक को उसमें दखल नहीं करना चाहिए। आज का लेखक पाठकों के सामने जाल बुन देता है, जिसमें पाठक उलझ जाता है और वो कहानी उसे नीरस लगने लगती है।
के.डी. चारण:- आने वाले समय में आप अपने कहानी लेखन में क्या कोई परिवर्तन करना चाहते है?
हरी प्रकाश राठी:- अभी तो मुझे नहीं लगता है कि कोई खास परिवर्तन की गुंजाईश है। कहानियां मनुष्य के स्वाभाव से ही बनती है, जैसे-जैसे लेखन में प्रौढ़ता आएगी, परिवर्तन आना भी लाज़मी है। अनुभव जितना गहराता जाएगा, लेखन भी उतना ही निखरता रहेगा। एक लेखक के लिए शैली में परिवर्तन करना कुछ हद तक आवश्यक भी है।
के.डी. चारण:- आपकी सबसे लोकप्रिय कहानियां कौनसी हैं, जो आपको भी सबसे प्रिय हैं? उनके बारे में कुछ बताइए।
हरी प्रकाश राठी:- किसी भी पिता को अपनी कोई भी संतान बेकार नहीं लगेगी। (हँसते हुए) लेकिन लोकप्रिय कहानियों के बारे में बात करूँ तो ‘अमरुद का पेड़’, ‘धरोहर’, ‘तृप्ति’, ‘असल मुनाफा’ ये तमाम वो कहानियाँ हैं, जिनका भरपूर प्यार पाठकों की तरफ से मिला है। इनमें से हर एक कहानी के लिए सैंकड़ों पत्र पाठकों की तरफ से प्राप्त हुए हैं। ये वो कहानियाँ है, जो पूरे भारत में भिन्न-भिन्न भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं। कुछ कहानियों का अंग्रेजी अनुवाद भी हुआ है, जो ‘ऑन द विंग्स ऑफ़ कुरजां’ नाम से प्रकाशित हुआ है।
के.डी. चारण:- सुनने में आया है कि आपकी कहानियों से प्रभावित होकर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त और नॉबेल पुरस्कार के लिए नामांकित राजस्थान के लोक कथाकार विजय दान देथा ‘बिज्जी’ ने आपको अपने घर बुलाया था?
हरी प्रकाश राठी:- मैं खुशकिस्मत हूँ कि मुझे उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। बिज्जी ने मेरी बहुत-सी कहानियां पढ़ीं और उनकी प्रतिक्रियाएं समय-समय पर देते रहे। कई कहानियां पढ़कर वो कहते थे कि ‘काश! ये कहानी मैं लिखता’। ‘बहू-बेटी’ कहानी पढ़कर उन्होंने एक सम्मेलन में कहा था कि इस कहानी की कोई आलोचना नहीं लिख सकता। इसी कहानी पर उन्होंने मुझे अपने घर बुलाया था और उनके साथ में भोजन करने का अवसर मिला।
के.डी. चारण:- जोधपुर की युवा लेखक पीढ़ी से आपको क्या उम्मीद है? उनके लिए कोई सन्देश?
हरी प्रकाश राठी:- जोधपुर से इन दिनों कोई युवा कथाकार नहीं निकल पाया। शायद किसी ने कुछ ख़ास नहीं लिखा होगा। कुछ समय पहले युवा साहित्य अकादमी के एक कार्यक्रम में शहर के शायर और कवि तो मौजूद थे, पर कोई भी कथाकार नहीं था। मैंने अकादमी अध्यक्ष से इस बारे में प्रश्न भी किया तो उन्होंने भी यही कहा कि आप बता दीजिये कोई युवा कथाकार आपके ध्यान में हो तो। मैं हस्ताक्षर पत्रिका के माध्यम से जोधपुर के युवाओं को कहना चाहता हूँ कि आप आगे आओ और अपने समय को लिखो। हम तो चार-पांच बजे का सूरज हैं, जो अपने उजाले और अँधेरे को लिखेंगे। कोई बारह बजे का सूरज भी आये और अपने समय को बयां करे।
के.डी. चारण:- जोधपुर के साहित्यिक माहौल के बारे में आपका क्या कहना है?
हरी प्रकाश राठी:- जोधपुर का साहित्यिक माहौल वास्तव में पूरे देश के लिए एक मिसाल है। यहाँ महानगरीय लेखकों की तरह बिल्कुल भी खेमे बाजी नहीं है। बहुत-सी प्रतिभाएं ग्रामीण क्षेत्रों में दबी पड़ी है, आवश्यकता है उन्हें खोजकर आगे लाने की।
के.डी. चारण:- अपना क़ीमती समय देने के लिए ‘हस्ताक्षर’ परिवार की ओर से आपको बहुत बहुत साधुवाद। आप साहित्य के क्षेत्र में ओर नई बुलंदियाँ छुएँ, शुभकामनाएँ!
– हरिप्रकाश राठी