उभरते स्वर
हमें बदलना होगा
ग़ुलामी की बेड़ियाँ
जो हमने बाँध रखी हैं
उस विकृत मनःस्थिति
को तोड़ना होगा
उन्मुक्त साँचे में ढलना होगा
हमें बदलना होगा
हम आज़ाद भारत
के नागरिक हैं
रुकावट वाली सारी
बंदिशों को तोड़ना होगा
हमें कुछ नया करना होगा
हमें बदलना होगा
उँगलियों से अब
काम चलने वाला नहीं
मुट्ठी बनकर उभरना होगा
असंभव को संभव कर
एक नया द्वीप
प्रज्वलित करना होगा
हमें बदलना होगा
जो कहते रहे हम सिर्फ
उन कथनों को
हक़ीक़त में करना होगा
बेजान परम्पराओं को
तोड़ना होगा
नयी दिशा में उतरना होगा
हमें बदलना होगा
स्वर्णिम भारत की कल्पना को
कल्पना में ही नहीं रखना होगा
एक-एक को सचेत करना होगा
छोटा-बड़ा, जाति-पाति
हिन्दू-मुस्लिम से ऊपर उठकर
भारतवासी होना होगा
हमें बदलना होगा
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खिलौना
मैं एक खिलौना हूँ
लोग आते हैं, मुझे देखते हैं
जिन्हें मैं पसंद आता हूँ
वो अपना लेते हैं
अपनाकर मुझसे खेलते हैं
और छोड़ देते हैं
उन टूटे और पुराने
खिलौनों की भांति
और खोजने के लिए
निकल जाते हैं
मुझ जैसा कोई दूसरा
नया खिलौना
– संतोष कुमार वर्मा