फ़िल्म जगत
हमें अपने कल्चर पर गर्व करना होगा, तभी यह बचा रह सकता है! – गुंजन डंगवाल
गीत ‘चैता की चैतवाल’ के संगीतकार गुंजन डंगवाल का, मनीष पांडेय द्वारा लिया गया साक्षात्कार
पिछले काफ़ी समय से उत्तराखंड के पहाड़ी लोकगीत, संगीत के क्षेत्र में एक ख़ालीपन सा महसूस किया जा रहा था। मौजूद समय में, इस रिक्तता की पूर्ति उत्तराखंड की युवा पीढ़ी के हुनरमंद कलाकारों के द्वारा की जा रही है। ऐसे कई युवा कलाकार सामने आए हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर अपनी कला का लोहा मनवाया है और कलाप्रेमियों के दिल में एक पहचान बनाई है। एक ऐसी ही शानदार शख्सियत हैं उत्तराखंड की नई टिहरी निवासी गुंजन डंगवाल, जिन्होंने बहुत थोड़े से समय में अपनी संगीत प्रतिभा से सभी संगीतप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। इनके पहले ही गीत ” चैता की चैतवाल” ने कामयाबी और लोकप्रियता के सारे आयाम प्राप्त कर लिए हैं। ये मेरे लिए एक ख़ुशी का पल है कि मैं आज गुंजन डंगवाल जी से हुई अपनी एक लम्बी बातचीत के कुछ अंश आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ. मुझे उम्मीद है कि आप इस बातचीत को पढ़कर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाएँगे और जीवन में अपने कार्य क्षेत्र में बेहतर करने के लिए प्रेरित होंगे।
मनीष पांडेय- सबसे पहले आपको इस शानदार कामयाबी के लिए दिल से मुबारकबाद! हमें बताइये कि आप इस वक़्त कला, संगीत के क्षेत्र में क्या कुछ नया कर रहे हैं?
गुंजन डंगवाल- धन्यवाद! इस वक़्त मैं अपने यू ट्यूब चैनल के लिए डॉक्यूमेंटरीज़ पर काम कर रहा हूँ। इनके ज़रिये मैं उन मेलों, आयोजनों को दिखाने की कोशिश कर रहा हूँ जो समय के साथ अब खत्म होते जा रहे हैं। इसके अलावा उत्तराखंड के लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी के साथ मैं एक प्रोजेक्ट् पर काम कर रहा हूँ। इसमें उनका एक गीत और एक शॉर्ट फ़िल्म शामिल है।
मनीष पांडेय- अपने शुरुआती सफ़र के बारे में बताइये। किस तरह के परिवेश में आपका जन्म हुआ और वह क्या परिस्थितियाँ रहीं होंगी, जिन्होंने आपके भीतर संगीत का रुझान पैदा किया?
गुंजन डंगवाल- मेरा जन्म उत्तराखंड के उस इलाके में हुआ जिसे आज पुरानी टिहरी कहते हैं। टिहरी बांध बनने के कारण, वह जगह अब जलमग्न हो चुकी है। मेरा परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार था। पिता कैलाश डंगवाल और माता सुनीता डंगवाल, दोनों ही शिक्षक थे, इसलिए घर में ऐसा कोई माहौल नहीं था जिसे देखकर आप कह सकें कि यहाँ से संगीत की प्रेरणा मिली होगी। हाँ, मेरे पिताजी को अपने समय में संगीत, कला, फोटोग्राफी का बहुत शौक़ रहा है। जब किसी के पास “कैमरे का होना” बहुत बड़ी बात मानी जाती थी, उस वक़्त मेरे पिताजी अपने कैमरे से चीज़ों को शूट किया करते थे। इसे देखकर आप कह सकते हैं कि मुझे अपने पिताजी से कला,संगीत आदि के प्रति एक रुझान तो विरासत में मिला था।
जब मैं छोटा था, तभी से मुझे गानों पर डांस करना बहुत अच्छा लगता था। इसी शौक़ को पूरा करने के लिए मैं स्कूल में होने वाले सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लिया करता था। धीरे – धीरे गाने का और डांस करने का शौक़ बढ़ने लगा। तभी एक बार, पिताजी के साथ मुझे सर्व शिक्षा अभियान के तहत कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय में एक प्रोग्राम करना का मौक़ा मिला। वहां मेरे प्रोग्राम से लोग बहुत प्रभावित हुए। तब मेरे गुरूजी सुमंत पंवार जी ने पापा से कहा कि गुंजन को संगीत सिखाइये, ये बहुत अच्छा कर सकता है। पापा राज़ी हो गये और मैं सप्ताह में दो दिन गुरूजी के घर संगीत सीखने जाने लगा। इस तरह संगीत की शिक्षा शुरू हो गई।
मनीष पांडेय- संगीत के किस क्षेत्र में आपकी विशेष रुचि रही? किस तरह से संगीत का सफ़र आगे बढ़ा ?
गुंजन डंगवाल- शुरुआती तौर पर तो मैं गायन सीखने के लिए ही गया था मगर धीरे – धीरे मेरा शौक़ म्यूजिक प्रोडक्शन में भी बढ़ने लगा। पंवार गुरूजी पंजाबी संगीत जगत में काम किया करते थे। उनके ज़रिये मैं भी म्यूजिक सॉफ्टवेयर आदि से रूबरू हो रहा था। मेरी पढाई लिखाई चलती रही और उसके साथ ही मैं संगीत निर्माण के विभिन्न पहलूओं से परिचित होता जा रहा था। मगर फिर कुछ सालों के लिए सब कुछ छूट गया और मैं इंजीनियरिंग की तैयारी में लग गया।
मनीष पांडेय- आप जब संगीत के क्षेत्र में पूरे शौक़ से काम कर रहे थे तब अचानक से इंजीनियरिंग करने का ख्याल कैसे ज़ेहन में आया?
गुंजन डंगवाल- ये बहुत रोचक है। जब मैं दसवीं कक्षा में था, तब तक साउंड मिक्सिंग आदि सीख रहा था।अब मेरे माता – पिता शिक्षक हैं इसलिए मैं पढ़ने में सही था। मेरे दसवीं की परीक्षा में बहुत अच्छे नंबर आए, जिसे देखकर घरवालों को ऐसा लगा कि मुझे इंजीनियर बनना चाहिए। मुझे दिल्ली के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में भेज दिया गया और मैंने भी पूरी मेहनत के साथ इंजीनियरिंग की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। फिर मैंने बारहवीं की परीक्षा और इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की और मेरा दाखिल जी.बी पन्त इंजीनियरिंग कॉलेज पौड़ी गढ़वाल में हो गया। इस दौरान संगीत पूरी तरह से छूट चुका था।
मनीष पांडेय- फिर संगीत किस तरह से आपके जीवन में लौट कर आया और इंजीनियरिंग कॉलेज में आपके क्या अनुभव रहे?
गुंजन डंगवाल- (हंसते हुए ) यार बीटेक कॉलेज में आने के कुछ ही महीनों के अंदर मैं यह अच्छी तरह से समझ गया था कि” भाई, मुझसे इंजीनियरिंग तो नहीं होनी!”उस वक़्त मैंने अपने पुराने दोस्त ” संगीत” को एक बार फिर अपना साथी बनाया। मैं कॉलेज के हॉस्टल में रहता था और अपने लैपटॉप में ही संगीत के क्षेत्र में कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करता। इसके साथ ही मैंने कॉलेज के सभी गायकों से संपर्क किया। मैं उन्हें साथ लेकर आता, उनके गाने रिकॉर्ड करता और फिर उसके संगीत पर काम करता। जब गाना तैयार हो जाता तो मैं अपने परिचितों और संगीत के जानकार लोगों को भेज देता। अब एक नए लड़के को कौन ज़्यादा भाव देता है! बस मुझे भी ज़्यादा रिस्पांस नहीं मिला, मगर मैं लगा रहा.इस तरह कॉलेज के तीन साल गुज़र गये। इस दौरान मेरा कॉलेज की क्लासेज़ अटेंड करना न के बराबर होता था। मैं सारा वक़्त अपने कमरे में लैपटॉप पर संगीत बनाते हुए निकाल देता। इसका असर ये हुआ कि मेरी बहुत सारे विषयों में बैक आ गयी, मगर मुझे तो संगीत में मज़ा आ रहा था और मुझे अपना जीवन इसी में बनाना था। मैं सब कुछ दांव पर लगाकर संगीत में डूब गया था। बाद में घरवालों को जब बैक लॉग्स के बारे में पता चला तो पहले तो वे नाराज़ हुए मगर फिर सब सही हो गया। उन्हीं दिनों ” चैता की चैतवाल” हिट हो चुका था इसलिए घरवालों ने ज़्यादा कुछ नहीं कहा और पूरा साथ दिया।
मनीष पांडेय- गीत “चैता की चैतवाल” आपके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ है, इस गाने के बनने की पूरी प्रक्रिया क्या रही?
गुंजन डंगवाल- यह बात मेरे बीटेक के तीसरे वर्ष की है। चैतवाली गाना मूलतः लोकगायक चंद्र सिंह राही जी रचना है। एक बार चंद्र सिंह राही जी के पुत्र राकेश जी ने मेरे कुछ गाने सुने और मुझे यह सुझाव दिया कि मैं चन्द्रसिंह राही जी के ही एक गीत को नए कलेवर में पेश करूँ। इस बात को कुछ समय बीत गया।
उन्हीं दिनों अमित सागर जी, जिन्होंने चैता की चैतवाल गाया है, उनकी मुझसे मुलाक़ात हुई। उन्होंने मुझे चंद्र सिंह राही जी के ही एक गीत “चैतवाली” के बारे में बताया। यह जागर शैली का एक गीत था। मैंने और अमित सागर जी ने तय किया कि हम इस गीत पर काम करेंगे और नए कलेवर में पेश करेंगे। हमको एक एहसास था कि ये गीत ज़रूर कमाल करेगा.ये सन 2017 की बात है। मैं पूरे मन से काम में लग गया।
मगर उस वक़्त मेरे निजी जीवन में भी उथल पुथल मची हुई थी। कॉलेज का आखिरी सेमेस्टर था और मेरी कई बैक लॉग्स बची थी। मुझे किसी भी क़ीमत पर सब बैक लॉग्स क्लियर करनी थी। इसके साथ चैता की चैतवाल पर काम करना था। मैंने बहुत मेहनत की। दिन रात बस पूरी तरह से लगा रहा। आख़िरकार मैंने और अमित सागर जी ने मिलकर “चैता की चैतवाल” रिकॉर्ड कर लिया। मुझे उस वक़्त ऐसा लग रहा था कि यह गीत बहुत ख़ास है और यह धूम मचा देगा। इस गाने का सुपरहिट होना ज़रूरी था क्योंकि अगर तब कुछ बड़ा नहीं होता तो आगे म्यूजिक फ़ील्ड में काम करना मेरे लिए बहुत कठिन हो जाता। खैर! गाना रिकॉर्ड हुआ और मार्च में हमने उसे यू ट्यूब पर अपलोड कर दिया। इसके बाद मैं अपने सेमेस्टर एग्जाम देने में लग गया।
कुछ वक़्त गुज़रा.तब तक “चैता की चैतवाल” हिट नहीं हुआ था। मैंने अपनी परीक्षाएं दे दी थीं। मेरा एक बैंड है “लास्ट ट्रेन टू पैराडाइस”,मैं कॉलेज खत्म होते ही बैंड के मेंबर्स के साथ पहले दिल्ली और फिर शिलौंग चला गया। वहीँ एक रोज़ मैंने देखा कि “चैता की चैतवाल” पर अचानक से 20 हज़ार से २ लाख व्यूज हो गये थे। गाना सुपरहिट होने जा रहा था। फिर कुछ दिनों में मेरे पास बहुत से फ़ोन कॉल्स आने लगे। लोग कहते कि उन्हें मेरा गाना बहुत पसंद आया है और वह चाहते हैं कि मैं उनके लिए भी संगीत दूँ। बस गाना सुपरहिट हुआ और मुझे बहुत सारा काम मिलने लगा।
मनीष पांडेय- “चैता की चैतवाल” के बाद जीवन कैसे बदला ?
गुंजन डंगवाल– जीवन तो बदल गया।अचानक से मुझे बहुत काम मिलने लगा था.मुझे और मेरे घरवालों को इस गाने से पहचान मिलने लगी थी, मगर इस गाने से मुझे नुक़सान भी बहुत हुआ। हर किसी के ज़ेहन में चैता की चैतवाल बस चुका था। इसके बाद मैंने कई गाने लांच किए मगर सब फ्लॉप साबित हुए। लोगों को चैतवाली जैसा ही कुछ चाहिए था। वह हर गाने को चैता की चैतवाल से तुलना करने देख रहे थे। मुझे भी बहुत खीज उठ रही थी, मगर फिर लगभग एक साल बीत जाने के बाद, जब चैतवाल का असर कुछ कम हुआ, तब मैंने जो नए गीत रिलीज़ किए उसे पब्लिक का अच्छा सहयोग,प्यार मिल रहा है।
यहाँ मज़ेदार बात यह है कि जहाँ एक तरफ लोगों ने मेरे काम को सराहा, वहीं ऐसे भी लोग थे जो अपने बच्चे से कहते ” पढ़ाई कर ले, वरना ऐसे ही गाने बजाने करेगा”. भारतीय समाज चाहे कला,संगीत,संस्कृति की बात करता हो मगर यहाँ अभी भी कलाकार को वह सम्मान नहीं मिलता, जिसका वह हक़दार होता है। जो सुपरहिट हो गया उसे सलाम, जो उतना बड़ा न बन सका उसे राम राम।
मनीष पांडेय- उत्तराखंड संगीत जगत के भविष्य को किस तरह देखते हैं,क्या सरकार से कोई सहयोग मिलता है ?
गुंजन डंगवाल- देखिए, सरकारों का काम है वादे करना! मगर सच यह है कि आज उत्तराखंड में जो भी कलाकार कुछ भी अच्छा कर रहा है, उसके पीछे उसकी लगन और मेहनत है। सरकार की ओर से किसी तरह का कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। ये कलाकारों का जुनून है जो वे सब कुछ ताक पर रखकर संगीत में लगे हुए हैं।
अब दूसरी बात. कलाकारों की युवा पौध आई है जो बेहद शानदार काम कर रही है। उन्हें संगीत,तकनीक का अच्छा ज्ञान है.वह नए प्रयोग करने से नहीं हिचकिचा रही है।हमें अपने कल्चर पर गर्व करना होगा, तभी यह बचा रह सकता है। ख़ुशी की बात यह है कि पिछले कुछ समय में यह गौरव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
मैं महसूस करता हूँ कि आने वाले वक़्त में हम सभी को पहाड़ी लोकसंगीत में बहुत शानदार काम देखने को मिलेगा।
मनीष पांडेय- बातचीत के अंत में हमें बताइये कि आपकी ज़िन्दगी का क्या फ़लसफ़ा है?
गुंजन डंगवाल- मनीष भाई, मैं कर्म को ही अपना धर्म मानता हूँ। कई बार कई तरह से निराशा हाथ लगती है.ऐसे लोग मिलते हैं, जिनके ऊपर आपको भरोसा होता है और आप उनके द्वारा छले जाते हैं। मगर इन सब के बीच मैं कर्म करने में विश्वास रखता हूँ। मुझे लगता है कि सही दिशा में, सही मंशा से किया गया कर्म अवश्य ही फलदायी होता है।
– मनीष पाण्डेय