ज़रा सोचिए
हमारी ज़िम्मेदारी
बच्चे की परवरिश अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है। बच्चे को विद्यालय भेजते समय अभिभावकों के मन में बहुत उम्मीदें होती हैं। मन में ख़ुशी होती है कि बच्चा पढ़-लिखकर एक अच्छा व्यक्ति बनेगा, परिवार और देश का नाम रोशन करेगा।
लेकिन इस सब के साथ एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी आती है। अक्सर देखा गया है कि बच्चे के एडमिशन और उसके एक दो साल बाद तक तो अभिभावक बच्चे की बातों को ध्यान से सुनते हैं, उसके विद्यालय में दिन-प्रतिदिन होने वाली पढ़ाई और गतिविधियों में भी रोचकता दिखाते हैं, पर धीरे-धीरे वे बच्चे को अपने हाल पर छोड़ देते हैं। बच्चे की नींव कमजोर पड़ने लगती है। इस बात को वे नजरअंदाज कर देते हैं, यह कह कर कि कोई बात नहीं, सामान्य अशुद्धियाँ या गलतियाँ हैं, अपने आप ठीक हो जाएँगी, पर यही गलतियाँ आगे जाकर बड़ा रूप ले लेती हैं।
अक्सर देखा गया है कि बड़ी कक्षाओं में आकर बच्चे अपनी कोपियों में काम गंदा करने लगते हैं, अधूरा काम भी जाँचने के लिए दे देते हैं, लिखावट पर भी ध्यान नहीं देते, भूल सुधार नहीं करते। अक्षरों की बनावट भी गलत होती है, फिर भी वे एक ‘चलता है’ का रवैय्या अपना लेते हैं। अध्यापिका द्वारा बताये जाने पर भी बच्चे उस बात पर पूरी तरह अमल नहीं करते।
बच्चे की पढ़ाई में अभिभावक, शिक्षक और बच्चे की भागीदारी होती है। इन तीनों के सम्मिलित प्रयास से ही बच्चा आगे बढ़ सकता है, एक दूसरे पर दोषारोपण करने से नहीं।
काम सफाई से करना, समय पर और पूरा काम करके जाँचने को लिए देना एक कौशल है, जो किसी विषय तक सीमित नहीं है। बच्चा चाहे बड़े होकर अपना काम करे या कोई भी नौकरी करे, यह कौशल उसे हर क्षेत्र में काम आएगा।
कच्चे घड़े को ही आप बाहर से ठोक-पीटकर और अंदर से थपकी देकर आकार दे सकते हैं, पक जाने पर कुछ नहीं हो पाता, उसी प्रकार बच्चे के बचपन में ही आप उसके कौशल को बढ़ा सकते हैं, उसके चरित्र को सुंदर रूप दे सकते हैं। अतः अभिभावक हों या शिक्षक, सबको एक साथ मिलकर प्रयास करना होगा। बच्चे के लिए ऐसा वातावरण निर्मित करना होगा, जिसमें बच्चा अपने आप को अकेला न समझे, उसका मार्गदर्शन करने के लिए उसके अभिभावक और शिक्षक दोनों हों।
एक बच्चा देश का एक भावी वयस्क होगा, जिसे तरह-तरह की ज़िम्मेदारियाँ निभानी हैं और वह हर प्रकार से सशक्त हो, यह हमारी जिम्मेदारी है। आइए मिलकर इसे निभाएँ।
– उषा छाबड़ा