जो दिल कहे
हमारा कल, जल पर ही आश्रित है
जीवन के लिए हमे जिन चीजों की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, प्रकृति ने हमे उपहार स्वरूप प्रचुर मात्रा में निःशुल्क उपलब्ध कराया है। साँस लेने के लिए शुद्ध हवा की सबसे ज्यादा आवश्यकता है, हमे बिना किसी शारीरिक श्रम के अपने चारों तरफ उपलब्ध है पर अपनी कारस्तानियों से विकाश के नाम पर सबसे ज्यादा प्रदूषित कर दिए हैं। हवा के बाद जीवन के लिए दूसरी प्रमुख आवश्यकता की चीज है शुद्ध जल। जल के बिना कोई भी मनुष्य 7 दिनों तक जीवित रह सकता है, उसे भी हमने सर्वाधिक प्रदूषित कर दिया है और अब पूरी दुनिया में पीने योग्य जल की कमी होती जा रही है।
जल को हमने कभी भी न समाप्त होने वाला संसाधन मान लिया है और जमकर दोहन करते हैं। आज हालत ऐसे हो गए हैं कि पिने योग्य जल की समस्या से समूचा विश्व जूझ रहा है। 1951 में जहाँ हमारे देश में जल कि उपलब्धता 5,177 घन मीटर था, जो अब 2025 में घट कर 1,341 घन मीटर रह जायेगी। कुआँ में जहाँ पहले जल की उपलब्धता 15 से 20 फीट गहराई पर थी वह अब 200 फीट से भी नीचे जा चूका है। लोकसभा में सरकार ने स्वीकार किया है कि देश की 275 नदियों का जल स्तर बहुत ही तेजी से घट रहा है। जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जलाशयों में ग्रीष्म ऋतू आने तक मात्र 20.722 फीसदी ही पानी बचाता है। एक आंकडें के मुताबिक 2016 में नौ राज्यों के लगभग 33 करोड लोगों ने भीषण जल संकट को झेला था। अति जल संकट वाले राज्यों में महारष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना तो आते ही हैं पर पहाड़ के हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर भी शामिल हैं, जहाँ की नदियाँ देश की प्यास बुझाने में सक्षम रही हैं।
दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन की स्थिति आज विश्व में सबसे ज्यादा भयावह बन चुकी है। वहाँ आपूर्ति के लिए जल बचा ही नहीं है और एक अनुमान के अनुसार 21 अप्रैल 2018 के बाद केपटाउन में जल आपूर्ति रोक दी जायेगी। फिलहाल अभी 25 लीटर प्रति व्यक्ति जल आपूर्ति की जा रही है और वितरण के लिए सेना तथा पुलिस का सहयोग लिया जा रहा है।
खाड़ी देश संयुक्त अरब अमीरात 8800 किलोमीटर दूर अन्टार्टिका से समुद्र के रस्ते एक हिमखंड से जल को अपने यहाँ खिंच कर लाने के प्रयाश में जुटा हुआ है ताकि वह आने वाले अगले 5 वर्षों तक अपने नागरिकों को जल आपूति को सुनिश्चित कर सके। पुरे विश्व में 01 अरब आबादी को आज भी साफ़ जल उपलब्ध नहीं हो पाता है तथा 2.7 अरब लोगों को कम से कम एक माह तक जल समस्या से जूझना पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार 2025 तक दुनिया की दो-तिहाई आबादी को शुद्ध पेय जल की समस्या से जूझना पड़ सकता है।
आज हमें इजराइल एवं आस्ट्रेलिया जैसे देशों से जल संचयन एवं जल शुद्धिकरण तकनीक सिखने पर विशेष ध्यान देना होगा। इजराईल के अभियंताओं, वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं ने लगातार 60 वर्षों तक इस समस्या पर गंभीरता पूर्वक शोध करने के पश्चात समुद्र की खरे जल से नमक हटाकर उसे पिने तथा खेती योग्य बनाने की तकनीक विकसित कर लिया है। इजराइल आज अकेला देश है संभवतः जिसने खारे जल में भी पनपने वाले बीज की नस्लें तैयार कर ली है। जल संचयन के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया तथा जल संरक्षण की तकनीक के लिए सरकार की तरफ से आर्थिक अनुदान भी दिया गया। जल के वाष्पीकरण को कम करने की तकनीक पर जोर दिया जा रहा है। खेती की प्रचलित पद्धति में सुधर कर कम जल की आवश्यकता वाली फसलों पर ध्यान दिया जा रहा है तथा खेती में सिचाई के लिए ड्रिप तकनीक को अपनाया जा रहा है।
आस्ट्रेलिया की भी कमोबेश यही स्थिति 1997 से 2009 की अवधी में हो गयी थी जब उसे भीषण जल-संकट से जूझना पड़ा था। 43 लाख की आबादी बाले शहर मेलबोर्न में सिर्फ 25.6% ही जल शेष रह गया तब उन्होंने कुछ आवश्यक नीतिओं को लागु कर शहर की जल-आपूर्ति आवश्यकता को 50% तक नियंत्रित कर लिया था। सरकार ने 6 अरब डॉलर की लगत से समुद्र के खरे जल को मीठे जल में बदलने का प्लांट स्थापित किया तथा खेती और आबदिओं में इस्तेमाल हुए जल की पुनः प्रयोग लायक बनाने पर इतना ज्यादा ध्यान दिया कि प्लांट कि आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
आज अपने देश में हम जल संकट को लेकर तनिक भी चिंतित नहीं हैं। हर बार इधर-उधर से हम किसी तरह जल संकट का समाधान खोज लेते हैं और परिस्थितियाँ सामान्य होते ही सब कुछ भूल जाते हैं। जल समस्या अब किसी खास मौसम का नहीं अपितु यह नित्य-प्रतिदिन की समस्या बनती जा रही है। हम पागलपन की हद तक भू-जल का दोहन कर रहें हैं जिसके परिणामस्वरुप जल में आर्सेनिक, क्लोराइड, फ्लोराइड, नाइट्रेट, और आयरन जैसे जहरीले तत्व की मात्रा बढती ही जा रही है जिसके कारण रोज नयी बिमारियों से हमारा सामना हो रहा है।
यदि आज हम नहीं चेते तो बहुत जल्द ही हमारे भी देश के कई प्रमुख शहरों की स्थितियां केपटाउन से भिन्न नहीं होगी। हर वर्ष हमारे यहाँ 4000 अरब क्यूबिक मीटर जल की उपलब्धता वर्षा से ही हो जाती है जिसका मात्र 15% ही संरक्षित हो पाता है। समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा।
जल का महत्व हमारे देश में कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में जलपर न जाने कितने मुहावरे बनाये गए हैं। आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, मरने के लिए भी अब चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा, अब तो शर्म से चेहरा भी पानी-पानी नहीं होता, हमने बहुतों को पानी पिलाया, पर अब पानी हमें रुलाएगा, यह तय है।सोचें तो वह रोना कैसा होगा, जब हमारी आँखों में ही पानी नहीं रहेगा? वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आँखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगे।
अब हमें इस मुद्दे पर गंभीरता पूर्वक पहल की आवश्यकता है क्यूंकि प्रकृति के पास माफी जैसे शब्द नहीं है। आज यदि हम बच्चों को एवं खुद को प्रकृति के साथ संतुलन बिठा कर चलना नही सिखाएंगे, तो एक दिन हम- और- वे परिणामों के साथ जीने के लिए बाध्य नही विवश हो जायेंगे। संभव है कि अगला महायुद्ध पानी के लिए ही हो।
चलते-चलते:
पीने के लिए मानव को प्रतिदिन ३ लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी चाहिए।
भारतीय महिलायें पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती है।
यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में करीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।
पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं।
हमारी पृथ्वी पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। इसमें से 97.5 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है, शेष 1.5 प्रतिशत पानी बर्फ़ के रूप में ध्रुव प्रदेशों में है। इसमें से बचा एक प्रतिशत पानी नदी, सरोवर, कुओं, झरनों और झीलों में है जो पीने के लायक है। इस एक प्रतिशत पानी का 60 वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है। बाकी का 40 वाँ हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं।
– नीरज कृष्ण