बाल-वाटिका
बाल कहानी- चुलबुली
चिंटू अपने मम्मी-पापा के साथ गुड़गाँव में रहता था। उसके घर के सामने एक गुलमोहर का पेड़ था। उसमें लाल-नारंगी से बहुत खूबसूरत फूल खिलते, जो सबका मन मोह लेते। चिंटू को गुलमोहर और भी सुन्दर तब लगने लगता, जब उस पर सुन्दर पक्षी सुबह-शाम चहचहाते। प्रातःकाल सूरज की लालिमा युक्त किरणें जब उस पर पड़तीं तो लगता स्वर्ग ही धरा पर उतर आया हो।
सारे पक्षी तो सुबह-शाम ही वृक्ष पर बने घोंसले पर चहचहाते किन्तु इन पक्षियों में एक थी चुलबुली चिडि़या, जो दिन भर पेड़ पर ही रहकर इधर-उधर फुदकती रहती।
चिंटू के घर कॉल बेल थी, जो चिड़िया की आवाज में चहचहाती थी। जब भी कोई आता, कॉल बेल बजाता, चिड़िया की सुरीली चहचहाती आवाज निकलती और कोई ना कोई दरवाजा खोल देता।
एक दिन चुलबुली इधर-उधर फुदक रही थी, तभी उसने देखा चिंटू के घर की कॉल बेल बजी और दरवाजा खुल गया। कॉल बेल की आवाज हू-ब-हू चुलबुली की आवाज से मिलती थी। बस फिर क्या था, शरारती चुलबुली को शरारत सूझी। चिंटू के मम्मी-पापा अपने ऑफिस चले जाते और चिंटू स्कूल। घर पर रह जाती दादी अकेली। चलबुली ने सोचा- “चलो अपनी आवाज को आज आजमा लिया जाये।”
दादी पलंग पर लेटी थी। चुलबुली ने दरवाजे की चौखट पर बैठकर आवाज लगाई। दादी ने सोचा, कॉल बेल बजी है। उसने बिस्तर से उठकर दरवाजा खोल दिया। किन्तु वहां कोई नहीं था। दादी मन ही मन गुस्सा करती फिर बिस्तर पर लेट गई। अब तो चुलबुली को अपनी शरारत पर बड़ा मजा आया। चुलबुली प्रतिदिन अपनी सुरीली आवाज का फायदा उठाकर दादी को परेशान करने लगी। एक दिन तो हद हो गई, चुलबुली ने कई बार दादी को परेशान किया।
दादी भी कम ना थीं। उन्होंने ठान लिया कि आज तो इसका पता लगाकर ही रहेंगीं। दादी बालकनी में छिपकर बैठ गई। मम्मी-पापा, चिंटू जा चुके थे। चुलबुली अपनी आदत के अनुसार दरवाजे की चौखट पर बैठकर चहचहाने लगी- “चुल्बुल्चुल्बुल्” उसने सोचा अब दरवाजा खुलेगा। वह थोड़ी देर पेड़ पर बैठकर देखती रही। किन्तु उसकी मनसा के अनुसार दरवाजा न खुला। दादी ने चुलबुली को देखा, उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोली, “अच्छा तो तू है जो मुझे रोज परेशान करती है। अब तुझे मैं मजा चिखाती हूँ।” दादी को मालूम था, चुलबुली अपनी आदत के अनुसार फिर आयेगी। दादी अंदर गई और मच्छरदानी का जाल लेकर छुपकर बैठ गई।
दादी के इरादों से अनभिज्ञ चुलबुली थोड़ी ही देर में फिर आई और उसने जैसे ही आवाज लगाई- “चुल्बुल्चुल्बुल्” वैसे ही दादी ने मच्छरदानी वाला जाल उस पर फेंककर उसे पकड़ लिया और एक पिंजड़े में बंद कर दिया। चुलबुली दिन भर पिंजड़े में बंद फड़फड़ाती रही। किन्तु दादी बिस्तर पर जाकर सो गई। चुलबुली की सारी आजादी छिन गई।
शाम होने लगी थी। चिंटू स्कूल से घर आ गया और उसके मम्मी-पापा ऑफिस से। चिंटू ने आते ही पूछा- “अरे दादी, यह चिडि़या कहाँ से पकड़ लाईं? क्या खरीदी है?”
दादी ने सारा हाल सुनाया। चिंटू को बड़ा मजा आया। किन्तु जैसे ही वह पिंजड़े के पास गया, उसने देखा चुलबुली उदास बैठी है। फुदक भी नहीं रही। चिंटू ने उसे दाना-पानी दिया किन्तु चुलबुली ने ना कुछ खाया ना पिया। चिंटू को चुलबुली पर दया आ रही थी। चुलबुली चिंटू को क्षमा याचना भरी निगाहों से देख रही थी। चिंटू ने दादी से कहा- “दादी प्लीज, चुलबुली को छोड़ दीजिये। वह अब व्यर्थ परेशान करने का मतलब समझ गई है। दादी ने फिर बड़बड़ाते हुए कहा- “चल तू कहता है तो मैं इसे छोड़ देती हूँ।”
चुलबुली की आँख से पश्चाताप के आँसू बह निकले। दादी ने पिंजड़ा खोल दिया। वह चिंटू व दादी को धन्यवाद देती पुनः गुलमोहर पर जाकर चहचहाने लगी। उसकी आवाज को सुनकर सब हैरान होकर हँसने लगे। मम्मी-पापा ने चिंटू का पक्षियों के प्रति स्नेह देखकर उसे बहुत प्यार किया और शाबाशी दी। चुलबुली समझ गई कि उसकी कर्णप्रिय सुरीली आवाज सबका मन मोहने के लिए है, व्यर्थ परेशान करने के लिए नहीं। दादी ने चिंटू को समझाया- “बेटा, ईश्वर प्रदत्त किसी गुण या ताकत का उपयोग अच्छे काम में करना चाहिए, किसी को परेशान करने में नहीं।
– डॉ. सुधा गुप्ता