उभरते स्वर
स्वागतम्
स्वागतम् स्वागतम् नव वर्ष की
नव भोर का स्वागतम् स्वागतम्
घने कोहरे की जद में है ये जहां
सूर्य के ताप से सुखद हो आबो-हवा
प्रकृति के मनोहर रमणीय रूप का
स्वागतम् स्वागतम्
स्याह रात की बिखरी कालिमा
लपेटती स्वयं को चहुँओर से
डूबते तारों संग उगती उषा किरण का
स्वागतम् स्वागतम्
हौले-हौले अन्धकार मिट रहा
खिल रही प्रकाश की किरण
ओस की बूंदों से धुली प्रात: का
स्वागतम् स्वागतम्
अलसित पलकें मूँदती, खोलती
खग कुल की कलरव से गुंजित
मन को हर्षित करती प्रभात का
स्वागतम् स्वागतम्
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सुन्दरतम इतिहास लिखूँ
प्रिय विरह की अग्नि
भभक रही हृदय ओर
प्रेम से सराबोर मैं
अपना अनुराग लिखूँ
सहज, सरल स्वभाव
मंद-मंद मृदु मुस्कान
खंजन नयन चितवन
मधुरवाणी सायास लिखूँ
पुलकित हो अंक में आना
हाथ छुड़ाकर भाग जाना
हया से पलकें झुका लेना
तेरी सुध को दिन रात लिखूँ
लाल सुर्ख साड़ी की लाली
लालिमा युक्त कपोलों वाली
मुख पर लहराती अलकों का
सुंदरतम इतिहास लिखूँ
निशा काल अलसित बयार
शय्या पर तेरा लजा जाना
स्निग्ध केशों का बिखराना
मधुर चुंबन का प्रयास लिखूँ
– डॉ. सिम्मी सिंह