अच्छा भी होता है!
सुखद अनुभव हुआ, हस्ताक्षर की संपादक प्रीति अज्ञात जी की पोस्ट को पढ़कर जिसमें उन्होंने लिखा था कि पत्रिका का मार्च अंक महिला रचनाकारों के लिए सुरक्षित है। यह पढ़कर मुझे लगा कि इस महत्वपूर्ण अंक मे जो महिलाओं को समर्पित है,आपको एक ऐसी महिला से रू-ब-रू करवाऊं जो एक अनोखी एवं सार्थक मुहिम चला रहीं हैं, उन बच्चों के लिए जो अपने जीवन मे विभिन्न तरह के अभावों के चलते अपना बचपन खो देतें हैं और शिक्षा जैसा अनिवार्य अंग उनके जीवन की बेहद कमजोर कड़ी बन कर रह जाता है। आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े हुए वर्ग के ऐसे बच्चों को उनका बचपन लौटाने और उन्हें शिक्षा प्रणाली की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए वर्ष 2003 से प्रयासरत यह महिला डॉ.अनुराधा शर्मा चंडीगढ़ की रहनेवाली हैं।
उनसे मेरी मुलाकात तकरीबन दो महीने पहले हमारी कॉमन दोस्त डॉ. अल्का विज के बेटे की शादी मे हुई। इत्तफाक़ से हम दोनों एक ही टेबल पर बैठे थे। डॉ.अनुराधा के व्यक्तित्व में शालीनता,सौम्यता एवं अपनेपन का ऐसा मिश्रण था जिसने सहज ही मुझे उनसे जोड़ दिया।औपचारिकता के बाद जब एक दुसरे के बारे में हमने जानने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे उनके द्वारा चलाई जा रही N.G.O. Hamari kaksha : A class– apart के बारे में बताया,तो मै उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सकी।
मै स्वयं एक अध्यापक हूं और बच्चों के प्रति अत्यधिक स्नेह और उम्र के हर पड़ाव पर विद्यार्थी जिन जिन समस्याओं का सामना करते हैं उनके लिए मेरी सजगता एवं यथाशक्ति उन्हें समाधान प्रदान करवाने के मेरे निरंतर प्रयास,मुझे विरासत मे मिलें हैं। मेरे माँ- पापा दोनों हीं अपने अध्यापन काल मे हीं नही बल्कि उसके बाद भी आदर्श अध्यापकों के रूप मे जाने जाते हैं। लेकिन जो जोश, समझ और समर्पण मैंने डॉ.अनुराधा में देखा वह यकीनन सराहनीय और अनुकरणीय है। उनसे बात कर के उनके साथ बिताए पलों को स्मृतियों को मन में भर के मैं घर लौट आई,और उसके बाद कुछ ऐसा सिलसिला चला कि हम दोस्त बन गए ,और अब मैं उन्हे अनु कह के पुकारती हूँ।
हस्ताक्षर के इस अंक के लिए उनके N.G.O. की विस्तृत जानकारी आपके लिए इस आलेख मे प्रस्तुत है।
“हमारी कक्षा” जिसकी अब दो शाखाएं हैं, एक चंडीगढ़ और दुसरी पंचकूला में। इनमें हर रोज तकरीबन 350 बच्चे जिनकी आयु पाँच से पंद्रह वर्ष के बीच है,शाम को तीन घंटे कुशल प्रशिक्षकों और बेहद प्यार करने वाले surrogate parents की देख रेख मे बिताते हैं। अनु ने बताया कि 2003 मे 17 आर्थिक तौर पे गरीब, नॉन परफॉर्मिंग, स्कूली और गैरस्कूली बच्चों के साथ उसके अपने ही घर के बरामदे मे “हमारी कक्षा” शुरू की गई और जल्दी ही इन बच्चों की संख्या 75 हो गई। 2007 में जब “हमारी कक्षा” को सेक्टर- 7 के सरकारी नर्सरी स्कूल में चलाने की अनुमति मिली तो श्रीमती सरिता तिवारी इस मुहिम के साथ जुड़ी।
2009 में पंचकूला में दूसरी शाखा शुरू की गई। ” हमारी कक्षा” के अधिकांश विद्यार्थी प्रवासी ,निरक्षर, मजदूर वर्ग के घरों से पढ़ने के लिए आनेवाली पहली पीढ़ी से हैं। शहर से दूर झुग्गी झोपड़ियों से आने वाले इन बच्चों के परिवारों का रहन सहन मूलभूत सुविधाओं से रहित होता है। बजबजाती नालियों और बदबूदार वातावरण में इनमें स्वास्थ्य संबंधी कोई जागरूकता नहीं होती। माता पिता के मजदूरी करने के कारण इनके बच्चे नैतिक विचारों से भी बिल्कुल दूर रहते हैं। ऐसे में यह जल्द ही गलत संगत में आकर अपराधी बन जाते हैं। इस संस्था का उद्देश्य गंभीरता से इन बातों पर विचार कर इन बच्चों के अभिभावकों को जागरूक करने का भी है। रोटी कपड़ा और मकान की जरूरतों के साथ साथ अपने बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने के लिए शिक्षा की आवश्यकता पर जो़र देने के लिए “हमारी कक्षा” इनके अभिभावकों के लिए समय समय पर जागरूकता कैंप लगाती रहती हैं।
अपनी तरह का एक अद्वितीय प्रोग्राम जिसमें स्कूल न जा सकने वाले, बीच में पढ़ाई छोड़ देनेवाले या पढ़ाई मे पिछड़े बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए “हमारी कक्षा” के साथ बहुत सारे शिक्षाविद्, विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत पदाधिकारी, पड़ोसी, अच्छे स्कूलों मे शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थी एवं समाज के सभी वर्गों से लोग अपना योगदान दे रहें हैं।
“हमारी कक्षा” के सिद्धांत एवं कार्यशैली के बारे मे बताते हुए अनु ने जो कहा उसके साथ एक अध्यापक होने के नाते मै पूरी तरह सहमत हूँ कि अध्यापन मात्र एक व्यवसाय नहीं है,बल्कि अध्यापक का अपने कार्य के प्रति तन- मन- धन से समर्पण, बच्चों के लिए कुछ कर गुजरने का अदम्य जोश और उनके लिए अपार स्नेह होना आवश्यक है।शिक्षक को सही मायनो में बच्चों का दोस्त, मार्गदर्शक एवं एक संरक्षक बन के उन्हें निरंतर प्रेरणा एवं प्रोत्साहन देते रहना चाहिए।
बातों- बातों मे अनु ने मुझे बताया कि तीन घंटे की अवधि मे बच्चों का आपसी सहयोग,उनके चेहरे पे हँसी और उनके अंदर बढ़ता हुआ आत्मविश्वास आयोजकों के लिए ऐसा पुरस्कार है जो उनके उत्साह को कभी ठंडा नही होने देता।
बच्चों के सेहत की जाँच के लिए उनकी बस्तियों में हेल्थ कैंप लगाए जाते हैं जिसमे माँ- बाप को अपनी सेहत का ध्यान रखने और बच्चों के सही पालन पोषण संबंधित जानकारी दी जाती है। मुझे ये जानकर बड़ी हैरत हुई कि “हमारी कक्षा मे आने वाले दूर के इलाकों के बच्चों को साईकिल और रिक्शा की सुविधा भी प्रदान किए जाते हैं।
कुछ स्वयंसेवी जो “हमारी कक्षा” के साथ जुड़ना चाहतें है उन्हें कक्षा में सुचारू ढंग से पढ़ाने और बच्चों का मनोविज्ञान समझने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
कस्बों के प्रधान, म्यंसपल काउंसलर, सरकारी मिडिल और हाई स्कूल के मुख्य अध्यापकों के सम्पर्क में रहकर , संस्था के सदस्य , बच्चों की सालाना रिपोर्ट लेते रहतें हैं। चंडीगढ़ और पंचकूला मे रहनेवाले पाठक अगर किसी ऐसे बच्चे की सहायता करना चाहे तो वह “हमारी कक्षा की संचालिका डा. अनुराधा शर्मा ( मो. 9888369389) के साथ संपर्क कर सकते हैं।
मै अपने मन के उद्गारों को इन शब्दों में कहते हुए “हमारी कक्षा” को शुभकामनाएं देती हूँ।
हमारीकक्षा – तुम्हारी कक्षा
इसकी कक्षा – उसकी कक्षा
बढ़ाओ जरा हाथ ,दो न ज़रा साथ
ताकि मिलकर करें हम इन नन्हे मुन्नों के बचपन की रक्षा
आसान है यह कह देना कि ये कुछ नहीं कर सकते
नालायक हैं ,कामचोर हैं ये ,पढ़ना ही नहीं चाहते;
जरा ध्यान से देखो, जानो पहचानो ज़रा इन्हें ,
गरीब हैं ये बच्चे, इनका बाप इनका पेट नहीं भर सकता ;
बिना वजह इनमें से कोई स्कूल से नहीं भागता
बचपन गुम हो गया है इनका, भूख की गलियों में,
खो गया है इन के कदमों से स्कूल का रास्ता ;
आओ “हमारी कक्षा” के माध्यम से लौटा दे इन्हें इनका बचपन ,
करो एक कोशिश – तुम्हें तुम्हारे बचपन का वास्ता।
– मीनाक्षी मैनन