छन्द-संसार
सदोका छंद
इज़्ज़त बड़ी
अनमोल चीज़ होती
इसे कमाना पड़ता
तब मिलती
सबकी इज़्ज़त करो
राजा हो या ग़रीब
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सीख तू मन
जीवन अनमोल
जीव क्षणभंगुर
बावरा बन
न बैठ हार कर
बस चलता चल
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मिलेगा तुझे
तेरा जीवन मान
न कर अपमान
स्वाभिमान का
जीवन सीख
विष पिये जो वही
बनेगा शिव वही
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चिंताजनक
भूमि बने बंजर
कैसे होगी बारिश
हरित धरा
शुष्क होती जायेगी
वर्षा तरसायेगी
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मन बेचैन
आँखें अश्रुपूरित
काँपते हुए होंठ
बस पुकारे
लेकर तेरा नाम
देखूँ लूँ एक बार
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सपना देखूँ
हम दोनों हैं साथ
करते मीठी बात
हँसते रहे
खोये एक दूजे में
चाँद के झूले में
– डॉ. विभा रंजन कनक
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