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1.
वेदपाठे पुराणे च रामायणे
गीतगोविन्दगानेSथवा पारणे
पूजने तर्पणे चार्पणे दीपने
तन्मयं नो मनस्तेन किं तेन किम्
पर्वते गह्वरे निर्झरे सञ्चरे
पुष्पिते पादपे ताम्रपत्रे फले...
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भो: पितामह! किम्भवति हवनम्।
त्वया किमर्थं क्रियते हवनम्।।
करोषि घृतं व्यर्थे विनष्टम्।
करोति घृतं शरीरं पुष्टम्।।
हवनेन भवति कस्य मङ्गलम्।
किमर्थं क्रियते किञ्च सुफलम्।।
तमुपाविश्य ताते...
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कुन्तककल्पितमधुरवक्रता नत्यति यत्र सदा सरसा
तत्रान्त:करणे मधुधारां धृत्वापीह नदी विरसा।
तज्जलमेव निपीय न जाने कुटिला वक्रा मदमत्ता
समागतास्त्यधुना पुरतस्तव हे सज्जन रुचिरा कविता।।1
शिवालयाच्छ...
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कविता मानवीय मूल्यों एवं भावों की सहज अभिव्यक्ति है। अगर कविता सामजिक सरोकारों को अपने में समेट लेती है तो उसके वैभव के चरमोत्कर्ष की सम्भावनाएँ और अधिक बढ़ जाती है।
जनवादी चिन्तक कवि महे...
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राजा
(सन्नन्तप्रकरणे गजलगीति:)
पराजयस्व नु जिगीषति राजा
प्रवाहय रक्तं तितीर्षति राजा
हार जाओ कि जीतना चाहता है राजा
बहा दो खून को तैरना चाहता है राजा
रक्तसिंचितेतिहासं विस्मर
नवेतिहास...
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चंचले मा चंचला भव धीरतामवधारय।
लोकमानसपद्महासं मा कराचिद्धर्षय।।
पश्य ते भर्ता सदा वसुधाविलाससहायक:।
तद्विरोधे मा कदाचिद्दीप्तिभीतिं दर्शय।।
त्वं सुशीला भर्तृकल्पितमानसे भव पद्मिनी।
भाग्यन...
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१.
द्यूतो दौवारिको यस्य कुलवधूश्च वारुणी |
सगोत्रकास्तथा लुब्धास्तस्मै विभूतये नम: ||
२.
चाटूक्ति: कामधेनुर्हि पिशुनता च सङ्गिनी |
भविष्यति भवामुत्र मङ्गलं तस्य सर्वदा ||
३.
वाञ्छि...
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पलं प्रपीड्यते मनो विलोक्य दूरभाषके,
क्षणान्तरे सुखानुभूतिरस्ति दूरभाषके
सुखासुखं क्रमेण भाव्यतेSत्र दूरभाषके
सखे!शुभाशुभं समस्तमस्ति दूरभाषके।।१
अभीष्टदृश्यदर्शनानि सन्ति दूरभाषके,
सुदूरलभ्...
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दूरभाषध्वनिं ये नो मे शृण्वन्त्यादरात् सुखम्।
तेषामेव ध्वनिं श्रोतुं प्रबुद्धो$स्मि दिवानिशम्।। १
सन्देशं न पठन...
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हासो मुखे नो लोक्यते चेष्टाऽपि नोत्तरदायिनी
लाभाय कस्मै साधिता बन्धो! त्वया गम्भीरता?॥१
हे काक ! कोकिलसम्मुखे ज्ञायेत नो तेऽकण्ठता
लोकैश्छलेन यतस्त्वया बहुधाऽऽश्रिता गम्भीरता॥२
नैकाङ्गना भुक्ता...