स्मृति
श्रद्धांजलि….महाश्वेता देवी
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी, 1926 को अविभाजित भारत के ढाका में हुआ था। उन्होंने बांग्ला भाषा में बेहद संवेदनशील तथा वैचारिक लेखन के माध्यम से उपन्यास तथा कहानियों से साहित्य को समृद्धशाली बनाया। अपने लेखन के कार्य के साथ-साथ महाश्वेता देवी ने समाज सेवा में भी सदैव सक्रियता से भाग लिया। स्त्री अधिकारों, दलितों तथा आदिवासियों के हितों के लिए उन्होंने व्यवस्था से संघर्ष किया तथा इनके लिए सुविधा तथा न्याय का रास्ता बनाती रहीं। महाश्वेता जी ने कम उम्र में ही लेखन कार्य शुरु कर दिया था और विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। लेखन में उनके मूल विषय भारत की अधिसूचित जनजातियाँ, आदिवासी, दलित, वंचित समुदाय प्रमुख रहे हैं।
महाश्वेता देवी का प्रथम उपन्यास ‘नाती’ 1957 में प्रकाशित किया गया था। ‘झाँसी की रानी’ महाश्वेता देवी की प्रथम रचना है, जो 1956 में प्रकाशित हुई। उन्होंने स्वयं ही अपने शब्दों में कहा था कि- “इसको लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूँगी।” महाश्वेता जी कहती थीं- “पहले मेरी मूल विधा कविता थी, अब कहानी और उपन्यास हैं।”
एक पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में महाश्वेता देवी ने अपार ख्याति प्राप्त की। उनकी कुछ महत्वपूर्ण कृतियों में ‘अग्निगर्भ’ ‘जंगल के दावेदार’ और ‘हज़ार चौरासी की मां’, ‘माहेश्वर’, ‘ग्राम बांग्ला’ आदि हैं। महाश्वेता देवी की कृतियों पर 1968 में ‘संघर्ष’, 1993 में ‘रूदाली’, 1998 में ‘हजार चौरासी की माँ’, 2006 में ‘माटी माई’ फिल्में भी बनीं। पिछले चालीस वर्षों में इनकी छोटी-छोटी कहानियों के बीस संग्रह प्रकाशित किये जा चुके हैं और सौ उपन्यासों के क़रीब प्रकाशित हो चुके हैं। महाश्वेता देवी की कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
लघुकथाएँ – मीलू के लिए, मास्टर साब
कहानियाँ – स्वाहा, रिपोर्टर, वान्टेड
उपन्यास – नटी, अग्निगर्भ, झाँसी की रानी, मर्डरर की माँ, 1084 की माँ, मातृछवि, जली थी अग्निशिखा, जकड़न
आत्मकथा- उम्रकैद, अक्लांत कौरव
आलेख – कृष्ण द्वादशी, अमृत संचय, घहराती घटाएँ, भारत में बंधुआ मज़दूर, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, ग्राम बांग्ला, जंगल के दावेदार, आदिवासी कथा
यात्रा संस्मरण – श्री श्री गणेश महिमा, ईंट के ऊपर ईंट
नाटक – टेरोडैक्टिल, दौलति
समाज सेवक के रूप में बिहार, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके महाश्वेता देवी जी के कार्यक्षेत्र रहे। वहाँ इनका ध्यान लोढ़ा तथा शबरा आदिवासियों की दीन दशा की ओर अधिक रहा। इसी तरह बिहार के पलामू क्षेत्र के आदिवासी भी इनके सरोकार का विषय बने। इनमें स्त्रियों की दशा और भी दयनीय थी। महाश्वेता देवी ने इस स्थिति में सुधार करने का संकल्प लिया। उन्होंने पश्चिम बंगाल की औद्योगिक नीतियों के ख़िलाफ़ भी आंदोलन छेड़ा तथा विकास के प्रचलित कार्य को चुनौती दी।
महाश्वेता जी की कहानियों में सामंती ताकतों के शोषण, उत्पीड़न, चल-छद्म के विरुद्ध पीड़ितों और शोषितों का संघर्ष अनवरत जारी रहता है। इनमें आदिवासियों की प्रामाणिक संघर्ष गाथाएँ हैं। उन्होंने जनजातियों और आदिवासियों के विद्रोही नायकों को अपनी कथाकृतियों का नायक बनाया। महाश्वेता जी अपनी कहानियों में समाज को शोषण, दोहन और उत्पीड़न से मुक्त कराते संघर्षशील नायकों का संधान करती हैं।
1977 में महाश्वेता देवी को ‘मेग्सेसे पुरस्कार’, 1979 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, 1986 में ‘पद्मश्री’, 1996 में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ तथा 2006 में ‘पद्मविभूषण’ सम्मान प्रदान किया गया।
महाश्वेता देवी जी का निधन 28 जुलाई, 2016 को कोलकाता में हुआ। उन्हें कोलकाता के बेल व्यू नर्सिंग होम में 22 मई को भर्ती कराया गया था। उनके शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। दिल का दौरा पड़ने के बाद उनका निधन हो गया।
‘हस्ताक्षर’ परिवार की ओर से महाश्वेता जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि एवं नमन!
*****************************************************************
महाश्वेता जी की स्मृति में, लघु फिल्मकार एवं वृत्तचित्र निर्देशक रजनीश बाबा मेहता के कुछ शब्द –
तू नहीं तेरी सौगात मेरे ज़ेहन में जिंदा रहेगी
तू है अब अग्निगर्भ में, मनीष-धारित्रि पुत्री रहेगी
मौत के उम्रकैद में, कृष्ण द्वादशी के देश में
मातृछवि की छांव में, अमृत संचय लिए जिंदा रहेगी
क्लांत कौरव के काल में, अग्निशिखा की गाल में
बनिया बहू के बाल में, मास्टर साब के शाल में
स्याही-सी जिंदा रहेगी तू कलम की खाल में
उपदेश-सी तू, बनके क्यूं चली गई
अनंत काल तक राह-सी क्यूं चली गई
हर शब्द-सी लोरी सुनता रहूंगा
हजार चौरासी की मां तुझे याद करता रहूंगा
– रजनीश बाबा मेहता
***************************************************************
– महाश्वेता देवी