मूल्यांकन
श्यामा- डॉ. तारिक असलम तस्नीन
युवा कथाकार, संपादक और प्रकाशक लवलेश दत्त का यह दूसरा कथा संग्रह है। इसमें दस कहानियाँ शामिल हैं, जो यकीनन सपना संग्रह में प्रकाशित कहानियों से काफी बेहतर है। विधा कोई भी हो, यदि आप सतत अध्ययन, चिंतन व मनन के साथ लेखन में सक्रिय रहते हैं तो बेशक दिन बाद दिन बेहतर लेखन में सफल होंगे। लवलेश के संबंध में यही कहा जा सकता है।
इस नज़रिए से ‘श्यामा’, ‘चाँदी का ग्लास’, ‘नेग, पत्थर’ और ‘उनकी टाँग’ श्रेष्ठ कहानियाँ हैं जो लेखक को कथ्य, शिल्प, संप्रेषण और भाषा शैली के स्तर पर अन्य लेखकों से जुदा साबित करती हैं। लेखक की चिंता को उजागर करती हैं। उसकी मानसिकता को बा-खूबी दर्शाती हैं।
इस लिहाज से संग्रह की पहली कहानी ‘श्यामा’ सबसे खूबसूरत कहानी है, इसमें एक गाय को पात्र घोषित कर सामाजिक दृष्टिकोण को बेहद संतुलित शब्दों में बयान किया गया है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है। यह एक ऐसा कटु सत्य है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता है। यह कहानी साबित करती है कि मनुष्य के स्वार्थ की कोई सीमा नहीं होती है।
कहना चाहिए कि लेखक ‘नेग’, ‘पत्थर’ एवं अन्य कहानियों के प्रति भी ईमानदारी का सबूत है और जिस तरह से वह निरंतर बेहतर रचनाएं पाठकों को सौंप रहे हैं। अपनी भाषा शैली और शिल्प के कारण अविस्मरणीय साहित्यकार स्वीकार किये जाएँगे।
लवलेश के सुखद साहित्यिक भविष्य की मैं कामना करता हूँ।
समीक्ष्य कृति- श्यामा
विधा- कहानी
रचनाकार- डॉ. लवलेश दत्त
संस्करण- 2016
पृष्ठ- 96
मूल्य- 100 रूपये
प्रकाशक- बोधि प्रकाशन, जयपुर
– डॉ. तारिक असलम तस्नीन