देशावर
शुभ आशीष
मुझको मिली एक एक शुभकामना और आशीष
बाँध रखी हैं एक पोटली में मैंने
बहुत संभाल कर रखा है उनको
दिल की अल्मारी में मैंने
जब भी कोई आपदा या चिंता आ खड़ी हो जाती है
बिना आभास दिए, ये पोटली से बाहर आ जाती हैं
बाधाओं को दूर हटा कर , उलझनें सुलझा जाती हैं
तसल्ली और हिम्मत बंधा कर आश्वस्त हमें कर जाती हैं
हर मंगल अवसर ,हर वर्षगाँठ ,हर उत्सव -त्यौहारों पर
मिलती ये आशीषें , स्नेह और ममत्व की मिठास भर,
मंगल कलश से छलकतीं हैं अंजुलि भर भर कर
सफलता के सोपान चढ़ातीं , संबल देतीं जीवन भर
भगवत्कृपा से ये मिलतीं , बिना मूल्य और बिना प्रलोभन
शुभचिंतकों और गुरुजनों का वरदहस्त और आशीर्वचन
आनेवाली पीढ़ी भी यह समझे , बहुमूल्य है कितना यह धन
कृतज्ञता से शीश नवा कर, हाथ जोड़ कर करें नमन
– अन्नदा पाटनी