हाइकु
शीत और नव वर्ष के हाइकु
यादों में बिंधा
दो हज़ार सत्रह
विदा, अल्विदा
गए वर्ष की
उपजा है राख से
वर्ष ये नया
नए साल में
रचें कुछ मौलिक
नया, सार्थक
अभिनन्दन
हमें तुम्हें सबको
वर्ष नवल
पंख सिकोड़े
शाल ओढ़े गौरैया
ढूँढती धूप
बाज़ न आए
सूर्य करे ठिठोली
सर्द मौसम
बेमुरव्वत
ओढ़ कर कोहरा
सूरज सोया
ग़रीब बेचारा
बीरबली खिचड़ी
तारों से तापे
निखरा रूप
बहुत दिनों बाद
निकली धूप
धुंध विचित्र
धुंधले कर गई
उजले चित्र
– डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
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