जो दिल कहे
शिक्षित बनिए साक्षर नहीं….!
2 जून 2020 को केरल मे जिस नृशंस तरीके से एक गर्भवती हथिनी को उसको भोजन में दिए गए आहार के साथ बारूद(फटाका) देकर और ठीक उसके तीन दिन बाद हिमाचल प्रदेश के किसी इलाके में गाय के भोजन में विस्फोटक मिला कर जिस तरह से उसकी गैर-इरादतन हत्या कर दी गई, मैं एक बार सोचने को बाध्य हो गया कि शिक्षित होने और साक्षर होने मे क्या मूल अंतर है। हमारे साक्षरता का प्रतिशत तो बढ़ रहा है, पर क्या हम शिक्षितों की श्रेणी में आते हैं?
हम अक्सर साक्षर होने और शिक्षित होने में अंतर करने मे भूल कर जाते हैं। अधिकतर पढ़े लिखे लोग भी ऐसी गलतियाँ करते है।
साक्षरता सरल शब्दों में भारतीय जनगणना के नियम के अनुसार ये एक तरह का शिक्षा के पैमाना नापने का सूचक है। ऐसे व्यक्ति जो किसी आसान सी लिखी हिंदी / अंग्रेजी / स्थानीय भाषा में लिखी हुई पंक्ति को पढ़ने में सक्षम हो, उसे साक्षर माना जायेगा। परन्तु हर साक्षर व्यक्ति को शिक्षित नहीं माना जा सकता क्यूंकि शिक्षित होने की परिभाषा बिल्कुल भिन्न है।
शिक्षित किसे कहते है इसकी भी अपनी एक अलग परिभाषा है। क्या जिसने स्नातक/स्नातकोत्तर…. इत्यादि की औपचारिक शिक्षा ग्रहण की है क्या वो लोग शिक्षित कहे जा सकते है। जबाब है,नहीं।
शिक्षित का अर्थ ऐसे पढ़े लिखे लोगो से है, जो किसी मुद्दे पर एक खास अपनी अलग विचारधारा रखता हो। ऐसे लोग जिसका किसी विषय पर अपना खुद का नजरिया होता है, उन्हें ही शिक्षित कहा जा सकता है। जो लोग पढ़े-लिखे है, उसकी खुद की कोई विचारधारा नहीं है तो ऐसे लोगो को शिक्षित नहीं कहा जा सकता। शिक्षित कोई भी बन सकता है। इसके लिए किसी औपचारिक शिक्षा (डिग्री) की जरूरत नहीं। सिर्फ हमें किसी चीज के बारे में जानने की चाहत हमको दूसरों से अलग और विशेष बना सकता है।
हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था हमें साक्षर तो बनाती है, हम सब पढ़े-लिखे तो हैं पर असल मायने में शिक्षित नहीं हैं। दूसरा शब्द इस्तेमाल करता हूँ ‘जानकार’ नहीं हैं, अपने विषय पर गहरी पकड़ नहीं है। सही और गलत में फर्क करना नहीं जानते हैं। सामने कोई गलत कर रहा है तो उसे उस गलत कार्य को करने से रोकने में हिचकते हैं। …… और हमारी यही कमजोरी हमें उभरने नहीं देती। हमारी खूबियां हमारी अल्पज्ञता में दब जाती हैं। फलस्वरूप हम खुल कर अपनी बातों को सामने नहीं रख पाते और कठपुतली बन जातें हैं। …और शायद ये ही अनभिज्ञता आज समाज के लिए में बाबाओं की फ़ौज को जन्म दे रही है क्योंकि हम समाधान के लिए ज्ञान नहीं अन्धविश्वास के सहारे हैं।
राष्ट्र उद्धार के लिए देश की सांस्कृतिक शिक्षा का ज्ञान होना बहुत जरुरी हैं। इसके लिए सभी को शिक्षित करना होगा। शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति निर्माण संभव हैं। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति का निर्माण है और साक्षरता एक स्किल है शिक्षा नहीं। शिक्षा का मतलब केवल स्कूल/ कॉलेज जाना ही नहीं है। बिना उद्देश्य के व्यक्ति व्यक्ति नहीं है और जो शिक्षा उद्देश्यहीन हो, वह व्यक्ति निर्माण नहीं कर सकती।
शिक्षा के माध्यम से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात पर बल दिया। इस राष्ट्र का उद्धार यहां की सांस्कृतिक शिक्षा के माध्यम से ही हो सकता है। #शिक्षा के माध्यम से ऐसे मनुष्य का निर्माण हो जो मूल्य सहित, संवेदनशील होने के साथ-साथ वास्तविक विवेकपूर्ण ज्ञान से परिपूर्ण हो। आज की शिक्षा वकील डॉक्टर प्राध्यापक (मूलतः सिर्फ इन तीनों को ही बुद्धिजीवी माना जाता रहा है) तो तैयार कर रही है परंतु इनमें भी #विवेक का अभाव है।
देश अपनी युवाओं की सबसे विशाल जनसंख्या के दम पर विश्व-शक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाने की इच्छा रखता है …और अभी हम सही तरीके से शिक्षित समाज का निर्माण भी नहीं कर पाए। जल, भूमि, बिजली, वन संरक्षण, नैतिकता, मानवता आदि बहुत सी बातों में हमें अभी जानकार बनना है।
अपनी पढ़-लिख पाने की क्षमता को अपने स्वयं के ज्ञान, बेहतरी, जानकारी और विकास में लगाने की अपील के साथ … शिक्षित बनिए साक्षर नहीं….!
– नीरज कृष्ण