व्यवस्था के विद्रूप को उकेरती उदभ्रान्त की कविताएं
लखनऊ, 6 सितम्बर। ‘प्रकृति से मिला हमें यह उपहार/उसका प्रतिदान कितना/क्या किया हमने ?/ प्रमाणित किया हमने/स्वयं को नमकहराम ?‘ ये काव्य पंक्तियां हैं हिन्दी के वरिष्ठ कवि व गद्यकार उदभ्रान्त की कविता ‘नमक’ की। आज अपने निहित स्वार्थों के लिए प्रकृति का अप्राकृतिक दोहन हो रहा है। यह चिन्ता कविता में गहरे अपराध बोध के रूप में व्यक्त होती है ‘हे महा समंदर!/हे विराट पृथ्वी!/हे आकाशगंगा!/और हे ब्रह्मांड!/हम नमक के/एक कण की तरह हैं क्षुद्र/और अपराध हमारा/हिमालय-सा’। बीते शनिवार को उदभ्रान्त लखनऊ में थे। इप्टा कार्यालय में उनके कविता पाठ और संवाद का कार्यक्रम रखा गया था। इस अवसर पर उन्होंने मानव त्रासदी, व्यवस्था की विद्रूपताओं को उकेरती, आम आदमी की पीड़ा और आज के सवालों से रू ब रू कराती अपनी कविताएं सुनाई और उनके विविध रंगों से परिचित कराया।
उदभ्रान्त ने कविता पाठ की शुरुआत ‘पोस्टकार्ड’ कविता से की। वे कहते है ‘इंटरनेट की दुनिया में/पोस्टकार्ड की उपस्थिति/एक गरीब और शोषित/पीड़ित और उपेक्षित/निरन्तर हाशिए पर धकेले जाने वाले/आम आदमी के द्वारा/अस्तित्व की रक्षा के लिए/किया जाने वाला शंखनाद है।’ इसी तरह ‘ईंट’ कविता में कहते है मजदूर इसे तोड़ मिट्टी बनाकर/सड़क पर डाले या कुबेर इसे/बना दे सोने की/ईंट पर इसका कोई असर नहीं तब तक/जब तक उसे/जवाब न मिले पत्थर का’। उदभ्रान्त की कविता ‘हांडी’ व्यवस्था की विद्रूपता को उकेरती मानव निर्मित अकाल की भयावहता को सामने लाती है कि कैसे एक तरफ मानव मूल्यों की स्फीति हो रही है, आदमी चील व गि़द्धों की खुराक बन रहा तो दूसरी तरफ ‘उड़ीसा के चूल्हे पर/रक्खी कालीहांडी से/उड़ी साहबजादी/अपने रंगीन पंखों के साथ/काल को बदलते हुए’। उदभ्रान्त ने पहेली, सत्य के कितने कोण, उलटबांसी सहित करीब दर्जन भर कविताएं सुनाई। अंत में उन्होंने अपने प्रबन्ध काव्य ‘राधा माधव’ से एक सर्ग ‘मन वृन्दावन’ का पाठ किया। इसे सुनाते हुए उदभ्रान्त भाव विह्वल भी हुए।
इस मौके पर आगरा से आये कवि अशोक रावत, सुभाष राय, भगवान स्वरूप कटियार, राकेश, नसीम साकेती, ओमप्रकाश नदीम, रामकठिन सिंह, कल्पना पाण्डेय, बंधु कुशावर्ती और कौशल किशोर मौजूद थे। बातचीत के क्रम में यह बात उभरी कि 70 के दशक में उदभ्रान्त ने ‘युवा’ पत्रिका का संपादन किया था। उम्र के इस पड़ाव में भी वे युवा तेवर व उत्साह से भरे हैं। इनकी कविताएं जहां समय व समाज की विसंगतियों को सामने लाती हैं, वहीं इनमें गीतात्मकता व लयात्मकता है जो उन्हें पठनीय व सम्प्रेषणीय बनाती हैं।
उदभ्रान्त की साहित्य यात्रा पर भी चर्चा हुई। उम्र महज बारह साल की रही होगी जब उनके गीतों का छपना शुरू हुआ। आरम्भ में पहचान एक गीतकार के रूप में बनी। पाच दशक की यात्रा के दौरान उन्होंने न सिर्फ विविध काव्य रूपों में सृजन किया बल्कि कहानी, निबन्ध, आलोचना, संस्मरण जैसी गद्य विधाओं में भी लिखा। दर्जन से अधिक उनके कविता संग्रह हैं। ‘नाटकतंत्र और अन्य कविताएं’, ‘हंसो बतर्ज रघुवीर सहाय‘, ‘समय झरना है‘, काली मीनार को ढ़हाते हुए‘ उनके चर्चित कविता संग्रह हैं। ‘ब्लैक होल’ काव्य नाटक है। ‘सदी का महाराग’ उनकी कविताओं का संचयन है। उन्होंने त्रेता, अभिनव पांडव, राधा माधव जैसे प्रबन्ध काव्य की रचना की है। अब तक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। यह हिन्दी साहित्य में दुर्लभ कीर्तिमान है। उदभ्रान्त की रचनात्मकता को देखते हुए आलोचक डॉ. नामवर सिंह इसे हिन्दी साहित्य में प्रतिभा का विस्फोट कहते हैं।
सौजन्य- कौशल किशोर
अध्यक्ष, जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश
– आज़र ख़ान