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व्यंग्य विशेषांक ‘यशधारा’
शब्दों से श्रृंगारित भावों की धारा ‘यशधारा’ के व्यंग्य विशेषांक के संपादक डॉ. दीपेंद्र शर्मा ने अंक अप्रैल-जून 2018 व्यंग्य विधा के दो स्तंम्भों शरद जोशी और हरिशंकर परसाई को समर्पित किया है। डॉ. दीपेंद्र शर्मा ने संपादकीय में सटीक बात कही कि “व्यंग्यकार धनुर्धर तो नहीं होता है पर यह ध्वजधर अवश्य होता है। डंडा थामे वह किसी का भी झंडा फहरा सकता है। व्यंग्यकार की भावभिव्यक्ति शतरंज के समान है। सौ रंज हो ना हो उसमें, 64 खाने के बराबर की कला ज़रूर होती है। व्यंग्यकार अपनी बात को इस तरह से कहता है कि उससे चाहे तो हर पक्ष को सहमत किया जा सकता है। कहने का मतलब बुरा भी न लगे और बात हो जाती है। बात सही निशाने पर भी पहुँच जाती है”। पत्रिका का आवरण चित्र अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फोटोग्राफर गिरीश किंगर द्वारा तैयार किया है।
भोज शोध संस्थान, धार की बेहतर टीम आठ वर्षो की साहित्य, शोध की तपस्या कर इस क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही है। अध्यक्ष श्री शिव नारायण शर्मा की मेहनत का प्रतिफल आज हम सब देख रहे और गर्व भी महसूस कर रहे हैं। शरद जोशी, हरिशंकर परसाई, डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, सम्पत सरल, डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा, कैलाश मण्डलेकर, शशांक दुबे, ब्रजेश कानूनगो, ओ जोशी, संजय वर्मा ‘दॄष्टि’, सविता मिश्रा, महेश शर्मा, डॉ. कुंवर प्रेमिल, डॉ. श्रीकांत दिव्वेदी, मुकेश जोशी, निसार अहमद, वीना सिंह, डॉ. दीपेद्रजी शर्मा (संपादक -यशधारा), देवेंद्रसिंह सिसोदिया, राजेश सेन के व्यंग्यों ने अपनी कलम से विभिन्न विषयों पर व्यंग्य द्धारा बात कही है। हरिशंकर परसाई ‘दो नाक वाले लोग’ में नाक की व्यथा, प्रकार, कहावतों के साथ समझ-समझ के फेर पर कटाक्ष किया है। डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी- ‘मौसम और मौत’ भ्रष्टाचार पर कटाक्ष कर लोगों की समस्याओं की अनदेखी पर बात रखी। ‘सोचे कि सर्दी से कैसे मर जाता है आदमी? सर्दी में ठिठुर-ठिठुर मरता आदमी क्या महसूस करता होगा? मरने से पूर्व उसकी आखिरी इच्छा क्या होगी? निऑन लाइट से जगमगाते राष्ट्रीय मार्गो के किनारे, घने कोहरे से लिपटा, मरता हुआ आदमी इस विकास के राजमार्ग पर क्या देखता होगा? सम्पत सरलजी- ‘वर्क का बाप नेटवर्क’ कवि सम्मेलनों की गहराई में जाकर नेटवर्क को खंगाला एवं नुस्खे बताए, जो कि सही भी हैं। डॉ पिल्केंद्र अरोरा- ‘एक साहित्यकार का आत्मसमर्पण’ में व्यंग्यकार ने बड़ी ही चतुराई से प्रसिद्ध व्यंग्यकार होते हुए भी अपने को छोटा बनाकर पेश किया, साथ ही गुटबाजी की पोल खोली। कैलाश मण्डलेकर- ‘कोहरे का कहर’ के व्यंग्य में खरी बात ‘दुनिया में अनेक लोग काफी झाग की तरह होते है, जो झूठ और छदम को व्यक्तित्व का हिस्सा बना लेते है और जीवन भर भ्रमित रहते है।
‘यशधारा’ में व्यंग्यकारों के चुनिंदा व्यंग्य अदभुत रंग घोलते हैं। वहीं विभिन्न विषयों, समस्याओं और सामाजिक हालातों पर विचार की दिशा भी दिखाते हैं। यह व्यंग्य विशेषांक जागरूक पाठकों को अवश्य आकर्षित करेगा।
यशधारा (व्यंग्य विशेषांक)
संपादक- डॉ. दीपेंद्र शर्मा
मूल्य- 50 रूपये
प्रकाशन- भोज शोध संस्थान, विक्रम ज्ञान मंदिर, लाल बाग परिसर, धार (मध्यप्रदेश)- 454001
– संजय वर्मा दॄष्टि