विषपायी (लघु कथा)
तांत्रिक ने हर घर से पीने के लिए विष मांगा। लोग चमत्कार देखना पसंद तो करते ही थे। तांत्रिक की मांग पूरी करने के लिए घर – घर से विष निकलने लगा। यह एक सिलसिला बन गया। तांत्रिक को विष दिया जाता रहा और वह अपने कंठ में उतारता गया। यह तो ज़ाहिर था उस ने मरने के लिए विष मांगा नहीं था। लोगों को यही बात अच्छी लगती नहीं थी। लोग चाहते थे कि शान और अभिमान से विष पीने वाले तांत्रिक पर विष का असर हो। किसी – किसी ने घूम – घूम कर तमाम बाज़ारों से सब से घातक विष का नाम पूछा। अमेरीका और रूस से निर्यात किया हुआ अव्वल दर्जे का विष होता तो दाम भी अनमोल होता। लोग खरीदने का ऊँचा दिल रखते।
उस शहर का एक आदमी तांत्रिक के विष पान और विष के प्रति लोगों की दीवानगी से अलग खड़ा था। उसे कहीं विष खऱीदने के लिए दौड़ते जाते देखा नहीं गया। वास्तव में उस आदमी के भीतर किसी को विष देने का विचार न कभी पला और न कभी पलता। वह अकेला आदमी हुआ जिसे कहते सुना गया वह तांत्रिक को देगा ता अमृत। तांत्रिक के कानों में ज्यों ही यह बात पड़ी उस ने लोगों से विष पाने का हठ करना छोड़ दिया। यही नहीं, वह यहाँ से रातों रात भाग गया।
गूढ़ता यह थी कि वह अमृत पचाने की सिद्धि को पहुँचा नहीं था।
– रामदेव धुरंधर