विश्व पुस्तक मेला – 2015 में नवगीत पर चर्चा
दिल्ली स्थित प्रगति मैदान में संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेला – 2015 के हॉल संख्या – 8 में पहली बार नवगीत पर चर्चा हुई। परिचर्चा का विषय था – ‘समाज का प्रतिबिम्ब हैं नवगीत’. इन ऐतिहासिक क्षणों में विषय का प्रवर्तन करते हुए संचालक एवं नवगीतकार श्री ओमप्रकाश तिवारी ने कहा कि नवगीत लिखे तो लगभग 50 वर्ष से जा रहे हैं, लेकिन आज भी इस काव्य विधा को छंद मुक्त कविताओं की तुलना में यह कहकर उपेक्षित किया जाता है कि छंदबद्ध कविताएं दैनंदिन जीवन की समस्याएं बयान नहीं कर पातीं । वरिष्ठ नवगीतकार श्री राधेश्याम ’बंधु’ ने इसे गेय कविता के साथ षड्यंत्र बताते हुए कहा कि जनमानस की अभिव्यक्तियां गीतों के जरिये ही अभिव्यक्त हो सकती हैं और यह दायित्व आजके नवगीतकार बखूबी निभा रहे हैं ।
गीत विधा को भारतीय समाज का अभिन्न अंग बताते हुए नवगीतकार श्री सौरभ पांडेय ने कहा कि गीत वायवीय तत्त्वों को सरस ढंग से ले आते हैं, जबकि नवगीत आज के समाज के सुखों-दुखों को सरसता से सामने लाते हैं । श्री सौरभ ने गीति-काव्य के वैज्ञानिक पक्ष को प्रस्तुत करते हुए शब्दों की मात्रिकता की व्याख्या की । नवगीत समीक्षक आचार्य संजीव ’सलिल’ ने कहा कि काव्यात्मक ढंग से सुख-दुख की बात करना ही रचनाकर्म है और यह तत्व आज के नवगीतों में भली-भांति देखने को मिल रहा है। आज कोई ऐसा संदर्भ या विन्दु नहीं है जिसे नवगीत स्वर न दे रहे हों ।
विषय का समापन करते हुए वरिष्ठ नवगीतकार डॉ. जगदीश व्योम ने कहा कि नवगीत अपनी विशिष्ट शिल्प-शैली के कारण हिंदी साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं । डॉ. व्योम के अनुसार नई कविता जो बात छंदमुक्त होकर कहती है, वही बात लय और शब्द प्रवाह के माध्यम से नवगीत व्यक्त करते हैं । पुस्तक मेले के साहित्य मंच पर हुए इस इण्टरऐक्टिव परिसंवाद में जगदीश पंकज, गीता पंडित, शरदिंदु मुखर्जी, महिमा श्री, योगेंद्र शर्मा, राकेश पाण्डेय, वेद शर्मा आदि नवगीतकारों ने नवगीत के विभिन्न आयामों पर चर्चा की ।
– प्रीति अज्ञात