ख़बरनामा
विनय मिश्र की ग़ज़लों में अपना समय और समाज मौजूद है- असगर वज़ाहत
(‘तेरा होना तलाशूँ’ पुस्तक लोकार्पण)
विनय मिश्र के दूसरे ग़ज़ल संग्रह ‘तेरा होना तलाशूँ’ के लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए ख्यातिलब्ध कथाकार, नाटककार एवं आलोचक प्रो. असगर वज़ाहत ने कहा कि विनय मिश्र की ग़ज़लों में विचार और संवेदना की जो पैनी धार है वह समकालीन कविता की अंतर्वस्तु को समृद्ध करती है। उन्होंने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि विनय मिश्र अपनी ग़ज़लों में किसी प्रकार का यूटोपिया नहीं खड़ा करते बल्कि वे अपने समय एवं समाज के जटिल यथार्थ को बड़ी ही बेबाकी और ईमानदारी से व्यक्त करते हैं। विनय मिश्र हिन्दी के प्रतिनिधि ग़ज़लकार हैं, जिन्होंने अपनी ग़ज़लों में अपने समय को गहराई से उकेरा है और अपनी प्रयोगधर्मिता और कलात्मक अभिव्यक्ति से हिन्दी कविता को समृद्ध किया है।
पुस्तक लोकार्पण एवं ग़ज़ल विमर्श समारोह में विनय मिश्र ने अपनी ग़ज़लों का पाठ भी किया एवं अपनी ग़ज़ल यात्रा से लेकर हिन्दी कविता एवं हिन्दी में ग़ज़ल की विकास यात्रा को विस्तार से उठाया। उन्होंने कहा कि वैसे तो ग़ज़ल, ग़ज़ल है लेकिन जिस तरह से उर्दू में ग़ज़ल की एक लंबी परंपरा है, उसी तरह हिन्दी में भी ग़ज़ल की एक समृद्ध परंपरा है। अमीर खुसरो, कबीर, निराला, त्रिलोचन, शमशेर, सूर्यभानु गुप्त, भवानी शंकर, दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी इसी हिन्दी कविता पंरपरा के ग़ज़लकार हैं। समकालीन ग़ज़लों की शुरूआत दुष्यंत कुमार से होती है। आज की ग़ज़ल में आमजन का दुख, दर्द और विसंगतियों का क्रूर यथार्थ यानी अपने समय का खुरदुरापन पूरी ईमानदारी के साथ मौजूद है।
समारोह में आधार वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ जनधर्मी आलोचक डॉ. जीवन सिंह ने कहा कि ‘तेरा होना तलाशूँ’ विनय मिश्र का दूसरा ग़ज़ल संग्रह है। ग़ज़ल लेखन उनको सबसे प्रिय रहा है जबकि वे गीत, दोहे और मुक्त छंद की कविता भी उतने ही समर्पित भाव से लिखते हैं तथा कविता के सभी समकालीन काव्य रूपों की गतिशीलता के लिए सामूहिक प्रयास में विश्वास रखते हैं। यह ख़ुशी की बात है कि उनके संकल्प ने उनके ग़ज़ल संग्रह के लोकार्पण समारोह को हिंदी ग़ज़ल के राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन बना दिया है। उनके पास ग़ज़ल कहने का अपना मुहावरा है और समकालीन समय की जटिलताओं की समझ भी। यही वह आधार है जो बतलाता है कि हिंदी ग़ज़ल की परंपरा को विकसित करने में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
दिल्ली से आए प्रखर युवा आलोचक डॉ. दिनेश कुमार ने कहा कि वर्तमान समय में हिंदी ग़ज़ल की जो स्थिति है, उसमें ग़ज़ल की रचना ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि उसे हिंदी कविता की मुख्यधारा में स्थापित करने के लिए सचेत-सांगठनिक प्रयास करने की भी ज़रूरत है। विनय मिश्र उन थोड़े से ग़ज़लकारों में हैं, जो रचनाशीलता के साथ-साथ सांगठनिक प्रयास में भी सक्रिय हैं ताकि हिंदी ग़ज़ल, हिंदी कविता की मुख्यधारा में स्थापित हो सके।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ से आए कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. शंभूनाथ तिवारी ने कहा कि विनय मिश्र हिंदी और उर्दू दोनों की शब्दावली को लेकर एक आमफहम भाषा में जनसंवादी ग़ज़लें लिख रहे हैं। समकालीन ग़ज़लकारों में विनय मिश्र एक बड़ा नाम है। विनय मिश्र आम आदमी की समस्याओं, उनकी चिंताओं तथा पीड़ाओं को समझते हैं एवं उनकी आवाज़ को, उनके दर्द को अपनी ग़ज़ल का विषय बनाते हैं। सामाजिक एवं राजनीतिक विडंबनाओं एवं व्यवस्था विरोध का स्वर उनकी ग़ज़लों में हर तरफ मौजूद है।
इस समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ जनधर्मी कवि, आलोचक एवं प्रतिष्ठित पत्रिका अलाव के संपादक रामकुमार कृषक ने कहा कि हिंदी ग़ज़ल की रचनात्मक यात्रा के अनेक स्तरों को उद्घाटित करने वाले ग़ज़ल कवियों में विनय मिश्र की अपनी पहचान और प्रतिबद्धताएं हैं। समकालीन यथार्थ से कन्नी काटने वाले कवि वे नहीं हैं और उनकी रचनाशीलता के अनेक आयाम हैं। इसके बावजूद ग़ज़ल के शिल्प, उसकी संस्कृति को वे गहरे तक समझते हैं और हिंदी की समूची काव्य परंपरा में ग़ज़ल को पृथक नहीं मानते हैं। वे उसके प्रगतिशील लेकिन भारतीय जीवन मूल्यों के साथ हैं। इसलिए उनमें एक खास तरह का खुलापन और स्वायत्तता बोध है।
बनारस से आई युवा कथाकार ज्योत्स्ना प्रवाह का कहना था कि विनय मिश्र की ग़ज़लों में बनारस का मिज़ाज बोलता है। इस निराशावादी युग में भी उनके यहाँ आशाओं के दीप जलाने की बात बार-बार नज़र आती है। परिश्रम के बाद पेशानी पर आए हुए पसीने की खुशबू का एहसास इनकी ग़ज़लों में महसूस होता है। इसके अलावा बरेली से आए युवा कवि एवं आलोचक डॉ. लवलेश दत्त, जम्मू-कश्मीर से शायरा अनु जसरोटिया, जुगमंदिर तायल, न्यायधीश सतीश कौशिक, पत्रकार राजेश रवि आदि ने विनय मिश्र को बधाई दी एवं अपने विचार प्रकट किए। शहर के अनेक गणमान्य लोग जिनमें डॉ. कैलाश पुरोहित, रेवती रमण शर्मा, प्रो. अनूप सिंह नादान, दौलत वैद्य, हरिशंकर गोयल, डॉ. श्याम शर्मा वशिष्ठ, अंजना अनिल, डॉ. अंशु वाजपई, डॉ. आराधना सारवान, देशराज मीणा, रामवतार आलोक, मास्टर प्यारे सिंह, रेणु मिश्रा, डॉ. प्रदीप प्रसन्न, डॉ. वेदप्रकाश यादव, रामचरण राग, के एल सिरोहि, राज राज गुप्ता, डॉ. रमेश बैरवा, मुंशी खान, रेणु अस्थाना, दलीप वैरागी, हितेश जैमन, अखिलेश, अविनाश सिंह, राजेश महिवाल ललित धनावत, हेमराज सैनी, अशोक शुक्ल, राधे मोहन राय, पद्म मिश्र, दीपक चंदवानी, विमल अस्थाना, चिन्मय पारासर, खेमेंदर चन्द्रावत आदि साहित्य प्रेमी सभागार में मौजूद थे। कार्यक्रम का गरिमापूर्ण संचालन डॉ. सीमा विजयवर्गीय एवं आभार, राजकीय कला महाविद्यालय, अलवर के प्राचार्य डॉ. रमेश चंद्र खंडूडी ने व्यक्त किया।
– टीम हस्ताक्षर