उभरते स्वर
विधाता की कृति
कल्पनाओं से परे अनंत में बसती है वो
शब्दों में समाय न ऐसी अभिव्यक्ति है वो
आत्मा का गाया हुआ पहला गीत है वो
मनवर है, मन भावन है, मनमीत है वो
मंदिर की मूरत हृदय की आस्था है वो
भजन है कीर्तन है अनमोल रतन है वो
श्रद्धा से की थी वर्षो की प्रार्थना है वो
पूजा है अर्चना है साधना है उपासना है वो
मन की उदास शामों की मधुर तान है वो
राग भैरवी है, सारंग है, भूपाली है, मल्हार है वो
अंधकार मय जीवन का उजाला है वो
रोशनी कि किरण है मरीचि है रश्मि है वो
ओस की बूंदों की भांति कितनी कोमल है वो
पवित्र है निर्मल है पावन है सुकोमल है वो
देखा है बस उसको विधाता की कृति में
बादल है पवन है बिजली है घटा है वो
***********************
कोई कहानी हो जाने दे
तोड़ सभी तटबंधों को
मन के सारे छन्दों को
पानी-पानी हो जाने दे
कोई कहानी हो जाने दे
आओ मिले हम तुम ऐसे
क्षितिज मिले अम्बर जैसे
आलिंगन आलिंगन हो जाने दे
कोई कहानी हो जाने दे
नयनों से भी पी लेने दे
अधरों को भी छू लेने दे
लट अपनी सुलझाने दे
कोई कहानी हो जाने दे
कपोल तुम्हारे कंवल के भांति
ललाट से भी प्रभा आती
तन को तन से छू जाने दे
कोई कहानी हो जाने दे
माँग सितारों से शोभित कर दूँ
जीवन मे रंगोली भर दूँ
भोर अभी हो जाने दे
कोई कहानी हो जाने दे
सर्वस्व मुझ पर न्योछावर कर दे
अंधियारों में उजियारा भर दे
बंजर को धानी हो जाने दे
कोई कहानी हो जाने दे
– डॉ. तारिक अली