आलेख
विद्युत बल्ब के आविष्कारक थॉमस एल्वा एडिसन- ओंम प्रकाश नौटियाल
“मैं असफल नहीं हुआ हूँ। मैंने दस हजार ऐसे तरीके ढूँढ लिए हैं जो काम नहीं करेंगे।”- थॉमस एल्वा एडिसन
बच्चों, आप सभी ने थॉमस एल्वा एडिसन का नाम सुना होगा। हम आज अपने घरों, सड़कों, बाज़ारों और त्योहारों तथा ख़ुशी के विशेष अवसरों पर जो जगमग रोशनी देखते हैं, यह उन्हीं के विद्युत बल्ब के आविष्कार से संभव हुई है। उनका जन्म 11 फरवरी, 1847 को अमेरिका के ओहायो राज्य के मिलैन नगर में और मृत्यु 18 अक्टूबर, 1931 को न्यू जर्सी में 84 वर्ष की उम्र में हुई। 1854 में, यानी जब एडिसन 7 वर्ष के थे, उनका परिवार मिशिगन चला गया।
अपने जीवनकाल में उन्होंने जो बड़े-बड़े आविष्कार किये, उनमें फोनोग्राफ, बिजली का बल्ब, क्षारीय संचारक बैटरी, किनैटोग्राफ कैमरा आदि शामिल हैं। सात वर्ष के एडिसन को केवल 12 सप्ताह विद्यालय में रहने के पश्चात उनकी माता ने, जिन्हें एडिसन पर छोटी उम्र से ही अत्याधिक विश्वास था, विद्यालय से तब निकाल लिया जब उनके बेहद चिड़चिड़े और अधीर अध्यापक ने उनकी माता से एडिसन के पढाई में ध्यान न देने तथा अनुशासन में न रहने की शिकायत की। असली कारण यह था कि जिज्ञासु वृति के एडिसन के आये दिन विषयगत प्रश्नों की बौछार से स्वयं को निरुत्तर पाकर अध्यापक ने उनसे निजात पाने के लिए उन्हें सनकी करार दे दिया और उनकी माँ को बुलाकर उनकी शिकायत कर दी। एडिसन की माता नैन्सी ने, जो स्वयं एक शिक्षाविद थी, एडिसन को घर पर पढाना शुरु कर दिया और कुछ ही समय में वह समझ गई कि एडिसन एक अत्यंत कुशाग्र बुद्धि बालक है। उनके पिता सैमुअल ने भी उन्हें साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तकें पढने के लिए दीं, वह एडिसन को हर पुस्तक पढकर समाप्त करने पर 10 सैन्ट देते थे। उन्होंने इस अवधि में ह्यूम, बर्टन, गिबन के ग्रन्थों के अध्य्यन के साथ ही विज्ञान के शब्दकोष का भी संपूर्ण अध्य्यन कर लिया था। 11 वर्ष की आयु में उनमें ज्ञान स्वयं अर्जित करने और अपनी रुचि के विभिन्न विषयों पर पुस्तकें पढने की अतुलनीय क्षुधा द्दष्टिगोचर हुई। उन्होंने अपने आप पढने और स्वयं को शिक्षित करने की एक योजनाबद्ध शुरुआत कर दी, जो कि उम्र भर उनके साथ चलती रही।
12 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने माता-पिता को विश्वास में लेकर ग्रान्ड ट्रंक रेल रूट पर अखबार बेचने का काम शुरू करते हुए अपनी शिक्षा को व्यवहार के धरातल पर आंकना प्रारंभ किया। अखबार बेचते हुए उनकी पहुँच न्यूज़ बुलैटिन पर होने से उन्होंने ‘ग्रान्ड ट्रंक हैराल्ड’ नाम का अखबार निकाल कर व्यवसाय की दुनिया में अपना पहला कदम रखा। 20 वर्ष की आयु में जब उन्हें तार प्रेषण में निपुणता हासिल हुई तब एडिसन ने तार कर्मचारी के रूप में नौकरी करनी प्रारंभ की। नौकरी से बचा समय एडिसन अपने प्रयोग करने और परीक्षण करनें में लगाते थे।
एडिसन ने कुछ समय उपरांत नौकरी छोड़कर प्रयोगशाला में काम करने का निश्चय किया क्योंकि उनकी रूचि वैज्ञानिक खोज में थी। एडिसन ने अपना पहला पेटैंट ‘विद्युत मतदान गणक’ के नाम से 1869 में करवाया। एडिसन ने एक ही तार पर छः संदेश अलग-अलग भेजने की विधि भी खोज निकाली। उन्होंने स्टाक एक्सचॆंज के लिए प्रयुक्त तार छापने की स्वचालित मशीन में अभूतपूर्व सुधार किए, बेल टेलीफोन यंत्र का विकास किया तथा 1878 में फोनोग्राफ मशीन पेटैंट करवाई। एडिसन ने अपने जीवन काल में अमेरिका में कुल 1093 पेटैंट करवाये। यह उपलब्धि उन्हें विश्व के महानतम वैज्ञानिकों की श्रेणी में खड़ा करती है। सर्वप्रथम औद्यौगिक प्रयोगशाला स्थापित करने का सेहरा भी एडिसन के सर है।
बताया जाता है कि विद्युत बल्ब का फ़िलामैंट बनाते हुए (बल्ब के अंदर का तार जो जल कर रोशनी देता है) एडिसन लगभग 10000 बार असफल हुए थे, विभिन्न प्रकार की मिश्र धातुओं से तैयार फ़िलामैंट हर बार जल कर राख हो जाता था। उनके एक मित्र ने कहा, “एडिसन तुम दस हजार बार असफल हो गये हो, इसका अर्थ यह है कि ऐसा रोशनी देने वाला फ़िलामैंट बनना संभव ही नहीं है।” एडिसन ने उत्तर दिया, “मित्र मैं दस हजार बार असफल नहीं हुआ हूँ बल्कि अब मैं मिश्र धातु के दस हजार ऐसे फिलामैंट जान गया हूँ, जिनसे बल्ब नहीं बनाया जा सकता है और अब मुझे इनके अतिरिक्त किसी अन्य अन्य फ़िलामैंट की खोज करनी होगी।” सकारात्मक सोच का इससे अनुपम और प्रेरणादायक उदाहरण भला क्या मिलेगा?
21 अक्टूबर, 1869 को एडिसन ने बिजली से जलने वाला निर्वात बल्ब बनाने में सफलता हासिल की और हम सबकी दुनिया हमेशा-हमेशा के लिए रोशन कर दी। 67 वर्ष की उम्र में उनकी फैक्ट्री जलकर खाक हो गयी, इसमें उनके जीवन भर की अर्जित पूंजी लगी थी और उन्होंने इन्श्योरैंस भी बहुत कम करवाया हुआ था।
एडिसन ने सब देखा और कहा, “ऐसे विनाशकारी बड़े हादसों का एक लाभ यह है कि हमारी जीवन भर की गलतियाँ भी जलकर राख हो जाती हैं और हम ईश कृपा से नई शुरूआत कर सकते हैं।”
ऐसी सकारात्मक सोच रखने वाले और असफलताओं से सबक लेकर निरंतर आगे बढ़ने वाले व्यक्ति ही अपने और औरों के जीवन को सार्थक कर पाते हैं। एडिसन निरंतर परिश्रम के आदि थे और यही उनका मनोरंजन था। ऐसे धैर्यवान, कठोर परिश्रमी और अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए कोई भी त्याग करने को तत्पर महापुरूषों ही ने इस संसार को अप्रतिम सौंदर्य और गरिमा प्रदान की है।
– ओंम प्रकाश नौटियाल