हाइकु
वासंती हाइकु
मुस्काए फूल,
हवा लगी बौराने,
देख बसंत।
मधुमास ने
पछाड़ा पतझड़
हौसला देखो।
अमलतास,
खिला मेरे आँगन,
छाया बसंत।
बसंत बना
अहसास मन के
अनुराग का।
बसंत लाया
पीले लिफ़ाफ़े में पत्र,
ऋतुराज का।
महका गेंदा,
गदराई सरसों,
आया बसंता।
मन भंवरा
कली बनी फुलवा
निहारे हौले।
मन बसंत
तन धरती जैसा
हुलासाए रे।
हे! ऋतुराज
हस्त मदनबाण
न साध लक्ष्य।.
पतझड़ ने
कहा मधुमास से
आओ, स्वागत
तुम न जाना,
बसंत की तरह,
मौसम संग।
पीली पगड़ी,
बाँध आया बसंत
धरा दुल्हन।
हरी धरती
पीताम्बर पहने
लगे कान्हा-सी।
– मंजु महिमा
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