लेख
रिश्तों का चयन सावधानी से करें!
देखो परखो फिर बुनो कोई रिश्तों की पोशाक,
अनजाने में चिंगारी पे ढकी ना हो कहीं राख,
आभासी एहसासों से बुनो अगर सपनों की दुनिया,
बस याद रखो सपनों में भी खुली रखो तुम आंख
आजकल हम सभी रात दिन मोबाइल से चिपके रहते हैं। मोबाईल और कंप्यूटर के जरिये हम अनेक सोशल साइट्स से जुड़ते हैं। इन साइट्स के माध्यम से अनेक मित्र बनाते हैं, कई रिश्ते जोड़ लेते हैं, फिर होता है नंबरों, ईमेल और एड्रेस का आदान-प्रदान। उसके बाद शुरू होते हैं बातों के अंतहीन सिलसिले। अकसर ऐसे रिश्तों में पाया गया है कि लोग इतने दीवाने हो जाते हैं कि सोना-जागना, खाना-पीना, आना-जाना या यूं कहिये कि जिंदगी से जुड़े हर काम साथ-साथ या एक दूसरे से पूछ या बताकर करने लगते हैं और फिर ऐसा मुकाम आता है जब रिश्ते को सच में बदलने के इरादे और वादे किये जाते हैं। जब रिश्ते सच्चे होते हैं तो इससे बढ़कर ख़ुशी की बात जीवन में शायद ही कोई होती हो। पर अगर इससे उल्टा हुआ यानी सोशल साइट्स पर समय बिताने का जरिया हुआ तो??
क्या आपने कभी सोचा है??
मोबाईल मे “रिजेक्ट लिस्ट” “ब्लॉक बाई एड्रेस”,..सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर “ब्लॉक” आदि सुविधाओं के कितने फायदे हैं? शायद हां,..इन फायदों से हम सभी वाक़िफ़ होंगे।
पर क्या कभी आपने ये सोचा है??
इन माध्यमों से हम बहुत सारे रिश्ते बनाते हैं, कुछ जाने..कुछ अनजाने…रिश्ते
जिनसे हम अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं… इस अभिव्यक्ति के साथ जब कुछ नए दोस्त बनते हैं… और भावनाओं से हम इस तरह जुड़ जाते है कि वो ऱिश्ते जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं।
पर क्या ये रिश्ते टिकाऊ हैं??
हर सिक्के की तरह इस सिक्के के भी दो पहलू हैं। जहाँ एक तरफ हमें अच्छे दोस्त मिलते है, वहीं दूसरी तरफ हमारी भावनाओं से कोई खिलवाड़ कर रहा हो तो?? और जब ये नए अनजान रिश्ते हमारे इन भावनात्मक रिश्तों से उकता जाते हैं…..तब उपयोग करते हैं इन सुविधाओं का।
फिर शुरू होता है….निराशा और अवसाद का दौर! जो आभासी दुनिया के बाहर हमारी वास्तविक जिंदगी को बरबाद करने के अलावा जानलेवा भी हो सकता है।
सावधान!
कहीं हम भी इस दौर से गुजरने की तैयारी में तो नहीं हैं…??
सच कहूँ..
मुझे नही चाहिये
विकृत मानसिकता वाली
आज़ादी
मुझे आदत है
उस सुख की
उस सुरक्षा की
जो अपनो के अपनेपन
और प्यार के बन्धन से मिलता है
जो मुझे
सबकी नज़रो मे हमेशा
ऊंचा स्थान न भी दिलाए
पर
दिल की गहराई में
स्थायित्व दिलाता है
नही है
मुझे जरूरत
आभासी आजादी की
मै खुश हूं
अपने
वास्तविक बंधनो के साथ
और आप….??
– प्रीति सुराना