उभरते स्वर
रिश्ते निभाते हैं
लॉकडाउन में सीखी हुई कुछ बातें
आओ सब को बताते हैं
चलो अब हम रिश्ते निभाते हैं
सुबह-सुबह उठना नहीं,
बच्चों को पढ़ाई के लिए डांटना नहीं,
किचन की भागदौड़ थोड़ी सुस्ता लेगी,
तुम्हारे हाथ की वह एक प्याली चाय
फिर तरोताज़ा कर देगी,
फुर्सत के पल दोनों पास बैठेंगे,
पुरानी एल्बम, पुरानी तस्वीरों में
पुरानी यादें ढूँढ लेंगे और खिलखिला कर हँस देंगे
वह जो जाने-अनजाने कुछ ग़लतियाँ दोनों ने कीं
उसकी माफी मांग लेंगे
चलो न! कॉलेज के पुराने दोस्तों को ढूँढ कर फिर गप्पे-शप्पे मारें
वीडियो कॉल पर सब को जोड़
खूब-खूब बातें करें
माँ से बात किए हुए बहुत दिन हुए
चलो आज दोनों माओं से फिर जुड़ें
फोन पर उन दोनों से बहुत सारा आशीर्वाद बटोर लें
कोरोना ने बांध दिया घर पर
बाहर जाने पर पाबंदी है
दोनों मिलकर कुछ ज़िम्मेदारी उठाएँ
कभी झाड़ू तुम कर दिया करो,
कभी कपड़े मैं धो लूँगी
कॉफी के दो गर्म मग ले
लूडो फिर निकालें
खेलते-खेलते थोड़ा लड़ ही लें
तुम्हारे सीने पर सुकून का सर रख लूँ
तुम बालों में हाथ फेर देना
वह जो फ़िजूल की बातों का सिलसिला टूट गया था
आज मौका है
चलो जोड़ लें
प्यार में डूब कर
रिश्ते चलो
फिर से निभा लें।
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प्रकृति ने भेदभाव किया नहीं
आज सब बंद है
अपने-अपने घरों में
सड़कें भी खाली
ज़मीनें भी खाली
कैसा सन्नाटा-सा पसरा है
हाथ मिलाने से डर लगता है
पास बैठने से जी कतराता है
हम जैसे मुस्कुराना भूल ही गये
आदमी-आदमी से डरने लगा है
लो! अब बना लो मीनारें, गढ़वा लो दीवारें
खींच लो लकीरें
अब न पाला पड़ेगा
धर्म के ठेकेदारों से
अब कोई हिंदू नहीं
न कोई मुसलमान
न तलवार उठेंगी
न भाले चलेंगे
अब धरती माँ का क़हर बरपा है
वह भेदभाव नहीं करेगी
कितना अब वह भी सहेगी
उसके तो सभी अपने हैं
उसने तो बस दिया है
अपना प्रेम सबको
आज माँ का आँचल लाल है
आज माँ भेदभाव नहीं करेगी
प्रकोप है प्रकोप
सब में एक समान बाँटेगी।
– मुनमुन ढाली