छन्द-संसार
राम नाम के दोहे
कुसुमों से कंटक कहे, देख राम के खेल।
सखे विपति के संग ही, होता सुख का मेल।।
तुलसी, सूर, कबीर-से, जो हो जाते संत।
प्रिय हो जाते राम के, पाते सुयश अनन्त।।
जग का आवन जान तो, विधना का है खेल।
सफल जनम तब जानिये, राम चरण हो मेल।।
मान और सम्मान तो, गुण से होता मीत।
राम नाम का गुण बने, जनम-जनम की प्रीत।।
मन के रावण राम के, हाथों मरते मीत।
विजय विकारों को करो, करो राम से प्रीत।।
राम नाम दीपक बने, श्रद्धा बने सनेह।
घर आँगन उपवन बने, रहे महकता गेह।।
राम नाम उर में बसे, दीप जले चहुँ ओर।
मिटता तम अज्ञान का, खिले सुहानी भोर।।
मीत राम का नाम है, राम अनादि अनन्त।
राम नाम आलोक से, ज्योतित हुए दिगंत।।
अहंकार का शमन कर, उर धारो हरि नाम।
मन की ज्वाला का दमन, कर देंगे श्री राम।।
राम कृपा से ही मिले, क्या अपने क्या अन्य।
राम कृपा मिल जाय तो, जीवन होता धन्य।।
– आशा शैली