कविताएँ
रात का चाँद
रात का चाँद बहुत ही ख़ास लगा
तू दूर था, फिर भी आस-पास लगा
तेरी मौजूदगी के अहसास से मिट गईं मेरी तनहाईयाँ
इस बात का तुझे अहसास हो ऐसी मेरी क़िस्मत कहाँ
रात भर तुझे मैं सोचती रही मुसलसल
तू नींद के आगोश में करवटें बलदलता रहा मुसलसल
तेरी याद में मेरी आँखें हुई नम
तेरे अहसास से खुशनुमा हुआ था मेरा मन
तेरी फिक्र करती हूँ मैं हर क़दम
पर इस बात का फ़र्क़ तुझे कहाँ पड़ता है मेरे हमदम
मेरी सोच का दायरा तो बस तुझसे शुरू और तुझ ही पे ख़त्म
लेकिन मुझे भी आगे तेरे लिए एक ज़माना है हमदम…!!!
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रिश्ता
हर दिन नया सबक सबक जाता है
हर रिश्ता अपनी पहचान दिखा जाता है
आप जिसे अपना करीबी समझते हैं
कहीं न कहीं वो आपके सब्र को आज़मा जाता है
तकलीफ देकर लोगों को मिलती है ख़ुशी
सामने वाला तो बे-मौत मर जाता है
क्या कहूँ रिश्ते होते हैं पेचींदा
पर हर कोई रिश्तों की परिभाषा समझा जाता है
उनके बगैर ज़िन्दगी है नामुमकिन
ये तसव्वुर उनका दिल बहला जाता है
हर मोड़ पर रिश्ते लेते हैं इम्तेहान
अब तो रिश्तों से दिल घबरा जाता है
काश किसी रिश्ते में होती सच्चाई
इसी कश्मकश में ज़िन्दगी का वक्त बीता जाता है।
– डॉ. अस्मा सिद्दीकी