यात्रा-वृत्तान्त
राजपूताना गढ़ ‘रणथम्भौर’ और जंगल का राजा
वाइल्ड लाइफ़ के क़रीब जाने में एक रोमांच, एक भय, एक फुरफुरी और ढेर सारा एडवेंचर समाहित होता है। जो लोग प्रकृति की गोद का आनंद समझते हैं वो इसमें रम जाते हैं और जिन्हें कैमरे के लैंस से खेलने की कला बख़ूबी आती है वो तो डेरा ही जमा लें।
बहरहाल पिछले सफ़र के जैसे ये सफ़र भी प्रकृति के सानिध्य में ही गुज़रेगा हमारा। मेरे सफ़र की शुरुआत इस दफ़ा भी गुड़गाँव, हरियाणा से एन.एच.- 8 से जयपुर बाईपास पर चलते ‘दौसा’ होते हुए आगे बढ़ती है। रणथम्भौर नेशनल पार्क सवाईमाधोपुर में ही स्थित है। ये उत्तरी भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। यहाँ सिर्फ वन्य जीवन प्रेमी ही नहीं आते बल्कि यहाँ स्थित मंदिर को धार्मिक भावनाओं से जुड़े लोग भी देखने आते हैं।
प्रकृति प्रेमियों को यहाँ के परिदृश्य लुभाते हैं, तो वहीं इतिहास के शौकीन यहाँ दसवीं शताब्दी के किले के खण्डहरों का मुआयना करने आते हैं, जिसकी नींव चौहान राजपूत शासकों ने अपने भारी-भरकम गढ़ के रूप में रखी थी।
कहते हैं ये जंगल राजस्थान के राजपरिवारों की शिकारगाह हुआ करते थे। यह इलाका चंबल नदी व बनास नदी के पठार के किनारे स्थित है। यहाँ वाटर बॉडी के पास पुराना ऐतिहासिक किला भी है, जिसे ‘रणथम्भौर का किला’ कहा जाता है। रणथम्भौर का किला नेशनल पार्क के बीच में बना हुआ है, जो कि अत्यंत कठोर चट्टान ‘थम्भौर पहाडी’ के ऊपर स्थित है, जो कि चारों तरफ से घने सब्ज़ जंगलों, छतरियों, भवनों, महलों, झीलों और तालाबों से घिरी है।
ये आलीशान किला सात सौ फुट ऊँची पहाडी के ऊपर बना है। विशाल और मजबूत पत्थरों की दीवार के अंदर इन गढ़ों और बुर्ज़ों को देखने का अपना ही लुत्फ़ है। इसके अंदर आँगन और बरामदों की गलियों में क्षत-विक्षत शिलाएँ, मंडप, भवन, स्मारक, मंदिर आदि सब बिखरे पड़े हैं।
इस किले को जंगली पहाड़ी पर स्थित किलों में सबसे अच्छा आदर्श नमूना माना जाता है। इसमें बाक़ी ‘हमीर पैलेस’ को भारत के सबसे प्राचीन जीवंत किलों में से एक गिना जाता है।
रणथम्भौर किले को आज भी अपने समय के सबसे अभेद्य सुरक्षा किलों में जाना जाता है। रणथम्भौर गढ़ पर दो बार बड़े आक्रमण किये गये। पहली दफ़ा सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना ने 1299 में धावा बोला। जिसका मुख्य कारण था- यहाँ के राजा ‘हमीर देव चौहान’ के द्वारा सुल्तान के किसी शत्रु को शरण देना। नाराज़ खिलजी ने अस्सी हज़ार घुड़सवार सेना और भारी पैदल सेना लेकर यहाँ आक्रमण किया लेकिन राजपूत राजाओं के सामने उसकी पराजय हुई और मुग़ल सेना का सेनापति मारा गया।
पुनः 1568 में मुगल शासक ‘जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर’ ने बहुत ही घातक आक्रमण किया, लगभग सत्तर हज़ार सैनिकों को लेकर। राजपूत मुग़लों के कट्टर शत्रु थे, इसलिये अकबर ने ढेरों राजपूताना किलों और गढ़ों पर कब्जा पहले ही कर लिया था। अकबर की सेना द्वारा लगभग एक महीने से ऊपर की घेराबंदी के बाद रणथम्भौर किले के तात्कालिक शासक ‘सुर्जन हाड़ा’ ने अकबर के आगे आत्मसमर्पण कर दिया।
इसके अतिरिक्त रणथम्भौर के बारे में इतिहास ने बहुत कुछ नहीं रख छोड़ा है परंतु मुग़लों के बाद यहाँ के महाराज का नाम ‘सजराज वीर सिंह नागिल’ था। उन्होंने अपने समय इस स्थान का काफी विकास किया था। लगभग सत्रहवीं शताब्दी में ये जगह जयपुर राजपरिवार के शिकार की मनपसंद जगह बन गयी।
392 वर्ग कि.मी. में फैला सवाईमाधोपुर में विस्तार पाता ये जंगल ‘रणथम्भौर टाइगर रिजर्व’ भी कहलाता है। रणथंभौर की स्थापना भारत सरकार ने सन् 1957 में सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य के रूप में की थी और इसे सन् 1973 में इसका 1113.364 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ‘प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व’ (व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र) घोषित किया गया था। तत्पश्चात सन् 1980 में इसके 392 वर्ग कि॰ मी॰ के इलाके को ‘राष्ट्रीय उद्यान’ घोषित किया गया।
तदुपरांत 1984 में, आसन्न जंगलों को ‘सवाई मानसिंह अभयारण्य’ घोषित किया गया और कालदेवी अभयारण्य को इसमें मिला लिया गया तथा सन् 1991 में इन दोनों मर्ज़ को बाघ आरक्षण हेतु विस्तार दिया गया, तब से रणथम्भौर अभयारण्य अपने बंगाल बाघों के लिए पहचाना जाने लगा। प्राकृतिक छटा में भिन्न प्रजाति के जानवरों संग टाइगर्स को दिन में भी आसानी से देखा जा सकता है और जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि यहाँ भ्रमण को अत्यधिक गर्मी उपयुक्त नहीं।
रणथम्भौर में बाघ देखने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर/नवंबर और मई/जून में है। आम जनता के लिये इसे 01 अक्टूबर से लेकर 31 जून तक खोला जाता है और जंगल सफ़ारी की उचित व्यवस्था भी रहती है, सुरक्षित। एक सफ़ारी में बीस लोग आसानी से जा सकते हैं। मौसम के तेवर के साथ सफारी की टाइमिंग भी बदलती रहती है। ठण्ड के समय में सुबह 6:30 से 10:30 तक और शाम में 2 से 6:30 बजे तक सुविधा मिलती है। गर्मियों में सुबह 6 से 9:30 तक और शाम में 3 से 7 बजे तक का समय होता है।
आपको वाइल्डलाइफ सफ़ारी का टिकिट ही लेना होगा और इसी दौरान आप रणथम्भौर किला भी घूम सकते हैं, किले पर जाने के लिये कोई अतिरिक्त किराया नहीं है। ये जगह अब वाइल्ड लाइफ़ सफ़ारी वालों के साथ-साथ, रणथम्भौर किला देखने वालों के लिये संरक्षित है। किले की पार्किंग तक आप अपनी निजी कार/वाहन से जा सकते हैं। फिर दो सौ सीढ़ियों की चढाई के बाद आप पहाड़ी के सबसे ऊपर स्थित इस पुरातन किले का नज़ारा ले सकते हैं। यहाँ पर ऊँचाई से आप पार्क के विस्मृत कर देने वाले दृश्य, शोर करते चील, गिद्ध, बाज़ और विविध पक्षियों को भी आँखों से देखकर कैमरे में कैद कर सकते हैं।
वातावरण की परिस्थितियाँ यहाँ अपने ही मन की मालिक हैं। सर्दियों में गरम कपड़े रखें क्योंकि ठंड होगी खासी और गर्मी में एकदम हल्के, हैट और सनग्लासेस भी ज़रूरी हैं। पार्क के पर्णपाती जंगलों में शुमार अन्य जीवों में भारतीय तेंदुए, नीलगाय, जंगली सुअर, सांभर, धारीदार हिरण, भालू, भूरे लंगूर, चीतल, मगरमच्छ आदि शामिल हैं।
अभयारण्य में विभिन्न पेड़-पौधों की प्रजातियों संग पक्षियों और सरीसृपों का डेरा भी है। साथ ही भारत के सबसे बड़े और पुराने बरगद भी यहाँ आपको देखने मिलेंगे। आपको यहाँ यदि बड़ी बिल्लियों को देखने का मन न हो तो एक बेहतर इलाके तक अपनी गाड़ी से जा सकते हैं और वाइल्डलाइफ के अनगिनत पहलुओं को अपने कैमरे में कैद कर ला सकते हैं। पर यहाँ का सबसे प्रमुख आकर्षण तो बाघ चीता ही ठहरा, जो यहाँ का सरताज है। और इसे कैमरे और आँखों में भरने के लिये आपको सफ़ारी की ही जुगाड़ चाहिये होगी। चिप्स, बिस्किट और पर्याप्त पानी जैसी सामग्रियाँ साथ रखें और जेब भी ठीक कसी, काहे से कि कितना भी बार्गेनिंग कर लो, जंगल के राजा की झलक के तो पैसे लगेंगे ही लगेंगे सो निराशा से बेहतर इंतजाम है।
निश्चित जानिये कि बहुत बुरी किस्मत रही तो न दिखें जंगल राजा वरना यहाँ की सफ़ारी आपको उनके बहुत निकट तक ले जाने में सक्षम हैं। और धमक के चलते जंगल के राजा को देखने से बड़ा अफेयर और रोमांच शायद कुछ नहीं। बस शोर करना मना है। ये जंगल है भाई कानून टाइगर का ही चलता है।
यहाँ रुकने की व्यवस्था ठीक ही है। हर बजट के होटल और रिसोर्ट वाली, सो बस तनिक घूमकर बेहतर जुगाड़ पता करनी होगी और यहाँ दुकानों पर सुवेनियर भी मिल जायेंगे। टाइगर के उद्यान का नाम लिखी टी-शर्ट, स्टोल, की-रिंग, छतरियाँ, स्कार्फ वगैरह। मेरी मानिये अबकी, सलामी दे ही आइये जंगल के राजा के दरबार में।
– प्रीति राघव प्रीत