छंद-संसार
रक्षा-बंधन पर कुछ कुण्डलिया छन्द
बहना तेरे प्रेम का, धागा ये अनमोल।
मुझको तुझसे बाँधते, इसमें गूँथे बोल।।
इसमें गूँथे बोल, पुरानी यादें तेरी।
तेरे पग की धूल, सजाती देहरी मेरी।
होना कभी उदास, नहीं तुम कुछ दुख सहना।
घर को सबसे ख़ास बनाती हर पल बहना।।
सर बाबा का हाथ है, ऐसा होता भान।
खैर ख़बर तुम पूछते, हमको मिलता मान।।
हमको मिलता मान, बलाएँ ले लूँ तेरी।
सजे अधर मुस्कान, श्रावणी छटा बिखेरी।
खिलता वो बागान, बहन है होती जिस घर।
बाबा का अभिमान, करेंगी ऊँचा वो सर।।
स्वयं बनाकर राखियाँ, उनको भेजूँ आज।
सीमा पर तैनात जो, सैनिक रखते लाज।।
सैनिक रखते लाज, बिगुल बजते रणभेरी।
देकर अंतिम श्वांस, करूँ रक्षा मैं तेरी।
बरसे बहना नेह, बढाऊँ तेज हर कदम।
फहराऊंगा देख, तिरंगा सीमा पर स्वयं।।
रोली-मोली राखियाँ, कर सोलह श्रृंगार।
चौखट माँडूं सूण मैं, बाँधूँ बंदरवार।।
बाँधूँ बंदरवार, सजाऊँ पूजा थाली।
भाई मेरे द्वार, बहिन मैं किस्मत वाली।
माँगा जब उपहार, हृदय की गठरी खोली।
छुपा प्रेम अंबार, तर गयी राखी-रोली।।
सूनी पड़ी कलाइयाँ, नैन बहाये नीर।
बिन बहना का आँगना, देता कितनी पीर।।
देता कितनी पीर, उठे तूफान हिया में।
कोहरे भरी सुबह, धुंध हो जाती शामें।
तितली हो जिस फूल, लगे है शोभा दूनी।
बिटिया का सम्मान, नहीं फिर राखी सूनी।।
– रोचिका शर्मा