ये कैसा बसंत आया है
ये कैसा बसंत आया है
जिसमें
पक्षियों से उनके घर
छीन लिए जाते हैं
और उन्हें कर दिया जाता है
बेघर
क्योंकि
जिस पेड़ पर उनका घरौंदा था
उसको काटकर
उसकी जगह
बना दी जाएगी
ऊँची इमारतें
जिसके सामने
कोई समुद्र नहीं होगा
बल्कि
होगा कुछ गहरा और
पानी से भरा
पूल
जिसमें शाम को
आकर
लोग अपनी
थकन को उतारेंगे
और कोसेंगे
उनको
जिनके साथ
मिलकर
उन्होंने
उजाड़ दिया
इक पंछी का घरौंदा
और छीन लिया
घर किसी का
ख़ुद के घर के वास्ते
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गाँव अब शहर बन गया है
गाँव वो बदल गया है
जिसमें लोग
एक-दूसरे की मदद के लिए
तैयार रहते थे
अब उनको
फुर्सत नहीं मिलती है ख़ुद से
कि उनकी आँखों को
दिख सके कोई दुःखी
जिससे पूछ सके
वो कारण दुःख का
और बाँट सके
उसके दुःख को
जो उसको
अंदर ही अंदर तोड़ रहा है
लोकिन
गाँव अब शहर बन गया है
और शहर को
अपने सिवा
कुछ भी नहीं दिखता
– अभिषेक जैन