मूल्यांकन
‘यू एंड मी…द अल्टिमेट ड्रीम ऑफ लव’: बेमिसाल प्रेम की सच्ची कहानी
‘रूमी’ नाम से विख्यात, 13वीं शताब्दी के महान सूफ़ी संत जलालुद्दीन मोहम्मद बल्खी ने प्रेम पर लिखा है-
‘मैं प्यार को समझाने की खूब कोशिश करता हूँ, लेकिन जब में प्यार के सामने होता हूँ तो मैं अपनी व्याख्याओं से खुद ही शर्मिंदा हो जाता हूँ।’
लेखक द्वय मल्लिका मुखर्जी तथा अश्विन मॅकवान का हिन्दी चैट उपन्यास पढ़ते हुए कुछ ऐसा ही महसूस हुआ, लगा मानों सागर किनारे डूबते सूरज पर आती जाती लहरों को गिनना! उनको दूर जाते देखना और लौट कर आपको भिगो देना या कोई लहर तट तक न आ कर दूर से लौट जाए और हम उसे विलीन होते देखते रहे! इस किताब का एक-एक पन्ना रस की भरी रसभरी समान मीठा लगा। अनकहे प्यार की सच्ची दास्तान में प्यार है और प्यार की मीठी बयार है। सौन्दर्य है, सूकून है। जंगल में गिरता हुया झरने का संगीत है। आप दोनों की बातें सोंधी खूशबू सी हैं। सीधी दिल पर दस्तक देती है, धीरे धीरे खटखटाती है और दिल में आहिस्ता से प्रवेश कर लेती है। आप की बातें दिल पर पत्थर नही मारती, चोटिला प्रहार नही करती। दोनों के जीवन के बीते दिनों में पीड़ा है, परन्तु चीखें नहीं। खामोश रूदन है, पर दहाड़े मारता शोर वाला रोना नहीं। अकेलापन है, पर निराशा नहीं। अंत तक आते आते पूरी भीग गई। लगा, नहा ली उस प्रेम के सागर में और बह गई उन लहरों में जो बदन को सहलाती रही। दूर क्षितिज पर कब सूर्य उगा, कब सूरज ढला ज्ञात नही और अंतिम पृष्ठ तक पहुँच गई!
पता नही क्यूँ, इस उपन्यास को पढ़ने के साथ और पढ़ने के बाद वे तमाम अमर प्रेम कथाएं मस्तिष्क के भीतर हलचल मचाने लगी, चाहे वे उस जमाने की सुनी-सुनाई ‘लैला-मजनू’, ‘हीर-रांझा’, ‘शीरीं-फरहाद’, ‘रोमियो-जुलियट’, ‘सलीम अनारकली’ हो या फिर शरतचन्द्र चेटर्जी की ‘परिणीता’ या ‘देवदास’ की अमर प्रेमकथा हो। इस सदी के अमेरिकी लेखक, एरिक सेगल (Erich Segal) की ‘लव स्टोरी’ हो या फिर अमेरिकी लेखक जॉन माइकल ग्रीन की दर्द भरी प्यारी कहानी ‘द फॉल्ट इन अवर स्टार्स’ (The Fault in our Stars) जिसे पढ़कर कौन न रो पड़े! ‘द फॉल्ट इन अवर स्टार्स’ मैंने अपनी 15 बरस की नातिन स्नेहा के कमरे में उसके बुक शेल्फ से निकाल कर पढ़ा था। स्नेहा ने कहा था, “नानी आप इस प्रेम कथा को पढ़ कर रो दोगी ’’, वास्तव में ऐसा ही हुया | यह किताब उनके सिलेबस मे बुक-रीड में रखी गई थी। अभी हाल में हिंदी में फिल्म, ‘दिल बेचारा’ इसी पुस्तक पर बनी है |
यह सब महज़ ही याद नही आ रहा, ये याद आ रहा है क्योकिं, ‘यू एंड मी…द अल्टिमेट ड्रीम ऑफ लव’ भी प्रेम की बेमिसाल सच्ची कहानी है। उपरोक्त तमाम लव स्टोरीज़ को यदि एक प्याले में घोल कर मिला दिया जाए तो वो प्रेम का मिश्रण होगा “यू एंड मी “ | अन्य लव स्टोरी में और इसमें एक बड़ा फ़र्क़ यह है कि यह नायिका का एक तरफ़ा प्यार रहा और वो भी पैंतालीस वर्ष के लम्बे समय तक! किन्तु प्रेम करने की न सीमा हैं, न उम्र का बंधन। न भाषा की परिधि है, न समाज संस्कृति की बंदिशें। प्रेम की एक ही ज़ुबान है और वो सिर्फ़ दिल ही समझता है, दिल ही सुनता। इसी कारण नायक ने दिल की बात सुनी और समझी, इतना ही नहीं पैंतालीस वर्ष पीछे जाकर समय और स्थान से परे उस नन्ही परी के प्रेम का स्वीकार किया। उसी क्षण प्रेम का परम सपना सच हुआ!
कहानी की नायिका अबोले प्रेम को दिल को गहराईयों में छिपाए, कॉलेज -काल के चार बरस अपने प्रियतम के क़दमों की आहट सुनने मात्र पर अपने को न्योछावर करती रही। उसकी एक झलक पाने को अपलक ताकती, अपने चाँद की चकोरी बनी। जीवन बीतता चला, उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक उच्च होद्दे पर कार्यरत हुई, ब्याहता हुई, माता हुई, दादी हुई। वो संसार–समाज के समस्त कार्य कलाप करती रही, कर्तव्य पालन करती रही लेकिन सोलह साल का वह दिल जैसे उसके गले में अटककर रह गया। पैंतालीस वर्षों तक कॉलेज पत्रिका में छपी उसकी तस्वीर को हृदय में संजोये रखा जिसे वह पहली नज़र में दिल दे बैठी थी! दिल के पिंजर में कैद उसका प्रेम घायल पंछी सा फड़फड़ाता रहा बस, एक आस के सहारे कि एक बार उनसे कह पाए, ‘तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो।’
‘तुम्हारी इस नन्ही परी को अब किसी का डर नहीं, न घर का, न परिवार का, न समाज का दुनिया चाहे उसे बदतमीज कहे, आज उसे परवाह नही।’ इस उपन्यास का यह वाक्य सहसा ले जाकर पटक देता है ‘देवदास’ की पारो पर। पारो, प्रेम की पुजारिन उस छोटी सी उम्र में समाज, परिवार की मर्यादा को ताक पर रख अपने आराध्य देव को पूजने, उसके चरणों में आत्मसमर्पण करने, रात के अँधेरे में अकेली हाथ में दिया लिए उसके कमरे में चली गई थी! देव के पूछने पर कह भी दिया था कि उसे किसी का डर नहीं। इस उपन्यास की नायिका तो अपने प्रेम को प्रकट करने का साहस जुटा भी पाई तो पैंतालीस वर्षों बाद! सोशल मीडिया पर मिला वह सपनों का राजकुमार, जो अब हजारों मील दूर अमेरिका अपने परिवार के साथ जा बसा था!
पारो सामाजिक तौर पर ब्याहता हुई, जमींदार की जिम्मेदार जमींदारिन बनी महल की ठकुराइन बनी, पले- पलाये बच्चों की माँ बनी, पर आजन्म रही अपने देव की दीवानी। रूह और आत्मा उस देहरी पर छोड़ आई थी जहाँ उसने देव के चरणों की रज से अपनी मांग भर ली थी। ठीक उसी तरह मल्लिका संसार के सारे दायित्वों को निभाते हुए अश्विन के चेहरे के एक -एक भाव को अपने मन की आँखों से देखती रही।
जब- जब प्रेम का जिक्र होगा पारो और देव की तरह मल्लिका और अश्विन भी याद किये जायेंगे। मल्लिका आज की पारो ही तो है ,बस वो कह न पाई वो चार शब्द, ‘तुम मुझे अच्छे लगते हो।’ पारो ने वचन लिया था, एक बार देव से मिलने का, आज मल्लिका, अश्विन से कह रही है, ‘इस जीवन में एक बार तुमसे मिलना चाहती हूँ मैं।’
हम चाहेंगे कि मल्लिका बनाम पारो अपने देव से अवश्य मिले, पर उनकी तरह नहीं!
मैं कोई लम्बी चौड़ी समीक्षा नहीं कर रही, सिर्फ़ आपके उपन्यास से उपजी अनुभूति प्रेषित कर रही हूँ। रूमी की ज़ुबान में ही शब्दों को विराम दूँगी-
“One day your heart will take you to your lover. One day your soul will carry you to the beloved. Don’t get lost in your pain, know that one day your pain will become your cure”
प्रेम का रूहानी स्वरूप, वो ही तो समाया है आपके प्रेम में भी!
पुनश्च:
सोचा था कथा समाप्त हो गई , किंतु अब इस कथा ने एक अमरत्व मोड़ ले लिया है ‘ मल्लिका और अश्विन एक बार मिलने के वायदे कर चुके थे ,कहानी यही समाप्त होती तो ‘पुनश्च’,नहीं होता! चाहा था देव अपनी पारो से मिलने आयेंगे परन्तु वो नीली छतरी वाला मनुष्य को किस- किस आकाश से परिचित करवाता है, वो कठपुतली सा हमें अपनी अँगुलियों पर नचाता है | उसके बनाए किरदार हैं हम! वो जीवन दाता है और वो ही हन्ता | यूं- एंड -मी का लिखित उपन्यास अपने प्रेम की महक सर्वत्र बिखेर रहा था,अभी तो पन्नों से एक भीनी भीनी खुशबु चारो और फ़ैलनी शुरू हो रही थी, अश्विन बहुत खुश थे, वे जी उठे थे, उनके चेहरे पर चमक आ गई थ , उनका पुनःजन्म हुआ था, परन्तु दो वर्ष के छोटे से इस पुनर्जन्म की अवधि समाप्त हो गई, अचानक उनके प्राण सांसारिक चोले को त्याग कर ईश्वर में जा मिले!
– मधु