चिट्ठी-पत्री
रोचिका शर्मा, चेन्नई – हस्ताक्षर मासिक वेब पत्रिका पहले अंक से लेकर इस अंक तक मैं हमेशा पढ़ती आ रही हूँ। हर अंक बहुत ही सुंदर होता है। आवरण पृष्ठ से लेकर सभी रचनाओं को पढ़कर मज़ा ही आ जाता है और जो रचनाएँ मुझे ज़्यादा अच्छी लगती हैं, उनके रचनाकारों को मैं हमेशा ही बधाई देती आई हूँ। हस्ताक्षर वेब पत्रिका के प्रधान संपादक के. पी. अनमोल जी एवं संस्थापक व संपादिका प्रीति ‘अज्ञात’ जी शायद लेखकों द्वारा भेजी गयी सभी रचनाओं को पढ़कर बहुत ही समझ- बूझ के साथ श्रेष्ठ रचनाओं का चुनाव कर अपनी पत्रिका में शामिल करते हैं। सबसे ख़ास बात यह कि नये रचनाकारों का इस पत्रिका में हमेशा ही स्वागत रहा है। शायद इसीलिए हर अंक में कुछ नयापन होता है।
इस बार नवम्बर-दिसंबर अंक (संयुक्तांक) का आवरण पृष्ठ जिसमें प्रीति जी की लिखी पंक्तियाँ “थोड़ी भुनी गर्म मूँगफली एवं कुल्हड़ वाली चाय” पढ़ मुझे बहुत अच्छा लगा, क्यूँकि शायद नये जमाने की दौड़ में भागते हुए हम उन पुराने स्वादों को भूलने लगे हैं। वे स्वाद प्रीति जी ने याद दिला दिए। इसीलिए इस अंक को मैंने अपनी टाइम लाइन पर शेयर भी किया। इसके अलावा प्रीति जी ने संपादकीय पृष्ठ में हमेशा की तरह इस बार भी पूरे देश की हलचल को समेटते हुए पुरस्कार/सम्मान लौटाने से लेकर चेन्नई बाढ़ तक सब बड़ी ही बेबाकी से लिखा है।
कथा-कुसुम में सभी कहानियाँ बहुत अच्छी हैं, फिर भी भारत दोसी जी की ‘भरत की माँ’ जहाँ दिल को छू गयी, वहीं मृदुल पांडे जी की ‘उड़ान’ गिव एंड टेक के व्यवहारिक चलन पर आज के युग में नौकरी करने वाली युवतियों एवं महिलाओं के लिए बड़ी प्रेरणास्पद कहानी है। कविताओं में दिलीप वशिष्ठ जी की कविताएँ ‘जब भी देखता हूँ’, ‘कहाँ पता’ …… नीतेश हर्ष जी की ‘धर्म’, ‘संवेदना’, ‘पहाड़ों का पत्थर’, ‘झूठ का ठूंठ’, ‘संक्रमण काल’,……अनिल अनलहातु जी की ‘उपलब्धि’, ‘कुहरे कुहासों का देश’ यथार्थ को बयान करती कविताएँ हैं। नीता पोरवाल जी की ‘आज नहीं तो कल’ एवं ‘राज सिंहासन’ सत्ता के पिपासुओं पर लिखी कविताएँ कविता कानन की शोभा बढ़ा रही हैं।
छन्द का मुझे बहुत ज्ञान तो नहीं लेकिन फिर भी पढ़ती तो हूँ, जितेंद्र ‘नील’ जी के छन्द ‘सावन’, ‘भोर’, ‘पिय की याद’ मन को बहुत आनंदित करते हैं। वहीं ललित किशोर गुप्त जी के कुकुभ छन्द ‘कुछ छोटे कंटक होते हैं, चुभने में आतिशय मीठे’ बड़े ही भावपूर्ण हैं। बाल वाटिका में ओम प्रकाश क्षत्रिय जी की बाल कहानी ‘चुन्नु हाथ से छूटा’ बड़ी ही रोचक कहानी है, जिसमें चुन्नु चूहा सूझ-बूझ से बिल्ली से अपनी जान बचाता है। विभा रानी श्रीवास्तव जी एवं स्वाति जी की हायकु अपने आप में संपूर्ण कविताएँ हैं। प्रीति सुराना जी की कविताएँ मुझे हमेशा प्रभावित करती रही हैं। इस बार उनका लेख ‘जिंदगी का सफ़र’ जीने की कला सिखाता ज्ञान वर्धक लेख है।अनु जी का प्रेम गीत पढ़ आपके मन में प्रेम के भाव जागृत हुए बिना नहीं रहेंगे। जहाँ बात हो ग़ज़ल की तो शायद सभी को पसंद होंगी। मुझे भी सुनने का बड़ा शौक है ज़्यादा बारीक़ियाँ तो नहीं जानती, किंतु अल्फ़ाज़ समझती हूँ। जहाँ अभिनव अरुण जी एवं आलोक यादव जी ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से बड़ी सुंदर भाव अभिव्यक्ति की है, वहीं डॉ मनोज कुमार ‘मनु’ जिनके पास शब्दों को बेहद खूबसूरती से बुनने की कला है, की ग़ज़लें अंक में अपना विशेष स्थान बनाती हैं। और अंत में के.डी. चारण जी द्वारा रजनी मोरवाल जी की सूफ़ियाना कहानी ‘क्रश व्रश’ एवं आजर ख़ान जी द्वारा केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ की समीक्षा बड़े ही सुंदरतम रूप में की गयी है। कुल मिलाकर नवंबर-दिसंबर संयुक्तांक साहित्य की विभिन्न विधाओं का अत्यंत सुंदर संगम है। मैं हस्ताक्षर मासिक वेब पत्रिका के प्रधान संपादक के. पी. अनमोल जी एवं संपादिका प्रीति ‘अज्ञात’ जी को हार्दिक बधाई देते हुए ईश्वर से कामना करती हूँ क़ि यह पत्रिका दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करे और साहित्य क्षेत्र में एक ऊँचा मुकाम हासिल करे।
नव वर्ष की अग्रिम शुभ कामनाओं के साथ!
अभिनव अरुण – रचनाओं का सुन्दर संग्रह एवं प्रस्तुति के लिए श्री अनमोल एवं आदरणीया प्रीति जी सहित सम्पूर्ण हस्ताक्षर टीम को बधाई और शुभकामनायें! एक स्तरीय पत्रिका का सृजन अपने आप में एक महत्वपूर्ण कार्य है और आप यह दायित्व बखूबी निभा रहे हैं, सराहनीय है !
नीता पोरवाल – अहा! शिशिर में ही आ गया हो रंग बिरंगा वसंत!
सभी रचनाकार मित्रों को बधाई व एक नए अच्छे अंक के लिए निश्चित ही करीम भाई व प्रीति जी बधाई के पात्र हैं।
मनोज चौहान – एक से बढ़कर एक रचनाओं के चयन के लिए आप और प्रीति जी साधुवाद के पात्र हैं….प्रीति जी का संपादकीय हर बार की तरह बहुत गहरे तक उतरता चला जाता है…..मूल्यांकन स्तम्भ में मेरे साँझा संकलन की समीक्षा हेतु हार्दिक आभार…..नए शिखरों के स्पर्श की ओर अग्रसर “हस्ताक्षर पत्रिका” के सफल भविष्य हेतु ढेरों शुभकामनाएं…..सम्पूर्ण संपादकीय मंडल की मेहनत को नमन…!
पवन चौहान – हमेशा की तरह हस्ताक्षर का यह अंक भी विविधता और स्तरीयता से भरपूर है… बारी-बारी सबको पढ़ता जा रहा हूँ… अच्छा लग रहा है… अंक को पठनीय बनाने हेतु.. के पी अनमोल जी तथा प्रीति अज्ञात जी बधाई के पात्र हैं।
नवीन गौतम – हस्ताक्षर मासिक वेब पत्रिका का यह नवम्बर-दिसंबर का अंक भी हर बार के अंक की तरह श्रेष्ठ और उत्कृष्ट रचनाओं से सुसज्जित है…साहित्यिक उत्थान की दिशा में प्रयासरत पत्रिका की पूरी टीम , सम्पादक महोदय और टीम के सम्पूर्ण सदस्यों तथा प्रकाशित रचनाओं के रचनाकारों को ढेर सारी बधाईयाँ प्रेषित करता हूँ..हमारा पत्रिका परिवार यूँ हीं साहित्यिक-रथ लेकर अनवरत आगे बढ़ता रहे.. यही हार्दिक कामना है।
फारूक शाह – चयन और संकलन में विषयों का वैविध्य ध्यान खींचता है… अंक के लिए बधाई!
– टीम हस्ताक्षर