अच्छा भी होता है
जहाँ जीवन की विषमताओं, समाज की कुरीतियों, व्यर्थ के दंगे-फ़साद, न्याय-अन्याय की लड़ाई, अपने-पराये, रिश्ते-नाते, ईर्ष्या, अहंकार और ऐसी ही तमाम विसंगतियों में उलझकर जीना दुरूह होता जा रहा है, वहीं कुछ ऐसे पल, ऐसे लोग अचानक से आकर आपका दामन थाम लेते हैं कि आप अपनी सारी नकारात्मकता त्याग पुन: आशावादी सोच की ओर उन्मुख हो उठते हैं। बस, इसी सोच को सलामी देने के लिए हमारे इस स्तंभ ‘अच्छा’ भी होता है!, की परिकल्पना की गई है, इसमें आप अपने साथ या अपने आस-पास घटित ऐसी घटनाओं को शब्दों में पिरोकर हमारे पाठकों की इस सोच को क़ायम रखने में सहायता कर सकते हैं कि दुनिया में लाख बुराइयाँ सही, पर यहाँ ‘अच्छा’ भी होता है!
– संपादक
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मोहल्ला मोहब्बत का
यदि आप कलाप्रेमी हैं, शेरो-शायरी तथा संगीत में रूचि रखते हैं और खाने के शौक़ीन भी, तो इंदौर (मध्यप्रदेश) का ‘मोहल्ला मोहब्बत का’ आपके लिए ही बना है। यहाँ आने के लिए आपको किसी साथी की तलाश करने की भी कोई आवश्यकता नहीं। समय बिताने के लिए लाइव सिंगिंग का इंतजाम है। साथ देने को पुस्तकें हैं, जिन्हें वहाँ पढ़ सकते हैं और खरीदा भी जा सकता है। यहाँ की लाइब्रेरी में प्रसिद्ध कवियों, शायरों, लेखकों की किताबें हैं। भोजन के लिए प्रयोग में आने वाली मेजों पर कागजों में लिखी और मेनू कार्ड में भी हर विशिष्ट व्यंजन से जुड़ी शायरी आपका ध्यान आकर्षित करती है। यहाँ पहली चाय का मूल्य अदा नहीं करना होता। शाम 6.30 से रेस्टोरेंट नियत तरीके से चलता है।
इस पोएटिक लाउंज की संकल्पना का श्रेय लखनऊ के अमन अक्षर और इंदौर के प्रतीक साहू को जाता है। इसे पोएटिक फील देने के लिए इसकी दीवारों पर मजरूह सुल्तानपुरी, गुलज़ार और इरशाद कामिल के कलाम लिखे गए हैं।
साहित्यिक दुनिया की मारामारी के बीच ऐसी ख़बर दिल को सुकून पहुंचाती है कि यहाँ पर ‘अच्छा भी होता है!’
– टीम हस्ताक्षर