बाल-वाटिका
मोबाइल संस्कृति
सन्देश ने अपने पापा से मोबाइल की जिद्द की , उन्होंने बहुत समझाया -” बेटा, अभी तुम बहुत छोटे हो , अभी तो तुम पाँचवी में हो , अभी से मोबाइल का क्या करोगे? “सन्देश ने पापा को समझाते हुए कहा, “पापा, मेरे बहुत सारे दोस्तों के पास मोबाइल है, आज कल तो लगभग हर दुसरे व्यक्ति के पास मोबाइल होता है, शाम को जब आप आ जाते हो तब मैं आपके मोबाइल से खेलता हूँ तब आप डांट देते हो यह कहकर कि मुझे काम है और तुम इस पर खेलते रहते हो बैटरी डाउन हो जाती है | अब आप ही बताओ किसके साथ खेलूं? दिन भर घर में बोर होता रहता हूँ, मम्मी किचन में होतीं हैं और आप ऑफिस से घर आकर भी ऑफिस का काम करते हो | मुझे न तो कहीं खेलने के लिए भेजते हो न कोई क्लब ज्वाइन करवाते हो |” और उसने रोनी सी सूरत बना ली | इस तरह की बातें सुनकर सन्देश की मम्मी किचन से बाहर आयीं और बोलीं-
“यह आज तुम किस तरह की बातें कर रहे हो बेटा! अपने पापा से क्या कोई इस तरह से बात करता है?” उदास मन से सन्देश वहां से उठकर अपने कमरे में चला गया पर वे दोनों चिंतित हो गए | कहीं न कहीं अकेलेपन का शिकार हो रहा था उनका बेटा और सही तो है आज कल बच्चों को खेलने का समय कब मिलता है | पढाई लिखाई से ही फुर्सत नहीं मिल पाती और ऊपर से कोई ऐसी जगह भी नहीं मिल पाती जहाँ वे खुले गगन के नीचें खेल सकें | रह दे कर मोबाइल ही हाथ में आता है | यह सिर्फ सन्देश की समस्या नहीं बल्कि उसके जैसे और भी बच्चों की यही समस्या है |इन दिनों स्कूल के
प्रोजेक्ट भी मिलते है जिसके लिए नेट का इस्तमाल करना पड़ता है | कंप्यूटर और मोबाइल आज कल के जीवन काल में आवश्यक हो गए हैं | टेक्नोलॉजी के विकास से जहाँ एक तरफ फायदे हुए है वहीँ इसके दुष्परिणाम भुगत रहें हैं लोग |
पति पत्नी दोनों ही चिंतित थे ,पर रास्ता तो निकालना था | कोई तो ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे उसका अकेलापन दूर हो और उसका समय सार्थक कार्य में व्यतीत हो| दुसरे दिन सन्देश बेमन से स्कूल गया | उसने घर में किसी से भी बात नहीं की | उन दोनों ने भी प्रयत्न नहीं किया | शाम को जब सन्देश के पापा घर आये, फ्रेश हो कर उन्होंने सन्देश को आवाज़ लगाई, “आओ बेटा नाश्ता तैयार है |” अपने कमरे में उदास ही बैठा हुआ था सन्देश | अपने पापा की आवाज़ सुनकर भागता हुआ बाहर आया और उसने पूछा, “जी पापा आपने मुझे बुलाया?”
“हाँ आओ नाश्ता करें | देखो आज मम्मी ने क्या बनाया है | अरे ! यह तो तुम्हारी मनपसंद चीज है | यह देखो फ्राइड इडली |”पापा की प्यार भरी बातों से सन्देश प्रफुल्लित हो गयाऔर पापा के साथ हंस हंस कर नाश्ता करने लगा | दोनों के ठहाकों की आवाज़ किचन तक पहुंची | मम्मी भी बाहर आ गयी और बोली, “यह किस बात पर हंस रहे हो दोनों?”
बातों ही बातों में सन्देश से टोह लेने के लिए उसके पापा ने पूछा, “बेटा तुम तो इतने प्यारे बच्चे हो, फिर मोबाइल की जिद्द क्यों? ”
पापा, मेरी क्लास में अधिकतर सभी बच्चों के पास मोबाइल है | मेरे दोस्त कहते हैं उसमें नयी नयी गेम्स आती हैं और वे एक दूसरे से होमवर्क भी व्हाट्स एप पर शेयर कर लेते है | जरुरत पड़ने गूगल से कुछ सर्च करके नोट्स भी बना लेते है | हैंडी होने की वजह से आसानी हो जाती है |
“ठीक है | एक काम करो कल अपने दोस्तों के नंबर ले आना | मम्मी के मोबाइल पर फीड कर लेंगे, तुम अपना काम उससे कर लिया करना और गेम्स भी खेल लेना |”
सन्देश के चेहरे पर संतोष के भाव थे | खुश हो कर उसने कहा , “मेरे अच्छे पापा |”
उसके
पापा ने कहा , “बेटा मैं लाइब्रेरी जा रहा हूँ , साथ चलोगे? ”
“पापा , वहां मेरे लिए भी बुक्स होंगी?”
“हाँ क्यों नहीं! चलोगे?”
“जी पापा , मैं अभी तैयार हो कर आता हूँ|”
पापा के साथ वह लाइब्रेरी पहुंचा | वहां लोग अपनी-अपनी पसंद की पुस्तक पढ़ रहे थे | उनको देख कर उसे बहुत अच्छा लगा | वह रोज़ अपने पापा के साथ लाइब्रेरी आता | अलग अलग किताबें पढता | धीरे धीरे उसकी रीडिंग हैबिट बढती गयी और उसका कंसंट्रेशन भी बढ़ा | स्कूल की पढाई पर भी पहले से ज्यादा ध्यान देने लगा | दोस्तों के नंबर तो वह ले आया | कभी कभी मोबाइल से उनसे बाते कर लेता था | गेम्स भी कुछ दिनों तक खेलता रहा पर किताबो के सानिध्य में वह इतना रम गया कि गेम्स भूल गया | अब नित नयी किताबें पढ़ता था वो भी अलग अलग विषय की | कुछ दिन से उसने लाइब्रेरी जाना बंद कर दिया | एक्साम्स जो थे सर पर , खूब मन लगा कर पढता |
एक्साम्स के बाद पेपर देखने का समय आया | बड़ा उत्साहित था सन्देश उस दिन | जल्दी ही उठ गया था | नित्यक्रम से निबट कर उसने अपनी मम्मी से कहा, ” मम्मी आज तो मैडम पहले चार पीरियड में पेपर्स दिखाने वाली हैं | उसके बाद गेम्स पीरियड है |”
“अरे वाह | आज तो बिट्टू के मजे है फिर तो |”
ख़ुशी से कूदता हुआ वह अपने स्टॉप पर पहुंचा | स्कूल बस जैसे ही आई वह उस पर सवार हो गया | रिजल्ट कैसा होगा, यह सोचता हुआ वह स्कूल कब पहुँच गया पता ही नहीं चला!
प्रेयर्स के बाद मैडम में अटेंडेंस ली, फिर उन्होंने क्लास को संबोधित कर कुछ पूछा, “तो बच्चों तैयार हो न पेपर्स देखने के लिए?”
“जी मैडम” क्लास से शोर हुआ |” पर पहले मुझे यह बताओ तुम में से किस-किस के पास मोबाइल है और कौन-कौन उसपर कितनी कितने देर तक गेम्स खेलता है? देखो झूठ नहीं बोलना |”
एक के बाद एक बच्चे ने अपनी अपनी बात बताई |
एक ने कहा, “मैं क्विज़ खेलता हूँ”
अगला बोला , ” मैं स्टोरी पढ़ता हूँ ” और इस तरह से सभी ने कुछ न कुछ कहा|
सन्देश चुपचाप सबकी बातें सुन रहा था | टीचर ने उसकी और दखते हुए कहा, “तुम कुछ नहीं कहोगे सन्देश?”
“मैडम , मेरे पास मोबाइल नहीं हैं |” बच्चों के ठहाके की आवाज़ आ रही थी |
“इसमें हंसने की तो कोई बात ही नहीं है |” मैडम ने कहा | कुछ वक़्त के लिए क्लास में ख़ामोशी छा गयी | थोड़ी देर के बाद मैडम ने पेपर्स डिस्ट्रीब्यूट कर दिए | बच्चे अपने अपने पेपर्स देख रहे थे | मैडम उन सब को ध्यान से देख रही थी | कुछ समय तक यही चलता रहा ,फिर उन्होंने पेपर्स कलेक्ट कर लिए और क्लास से पूछा, “क्यों देख लिए पेपर्स?”
कुछ बच्चों के चेहरे पर ख़ुशी थी और कुछ दुखी हो रहे थे | सन्देश बेहद खुश नज़र आ रहा था | मैडम ने पूछा “अब मुझे कोई बताएगा कि अब तक जिसके ज्यादा मार्क्स आते थे, उनके कम कैसे हुए? वे सब बच्चे खड़े हो जाओ जिनके मार्क्स कम आये हैं |”
जो बच्चे खड़े हुए थे, वे अधिकतर वही थे जो मोबाइल पर गेम्स खेलते थे | उनका लटका हुआ मुंह बता रहा था कि वे खुश नहीं थे | मैडम ने कहा , “बच्चों मोबाइल बुरा नहीं पर उसका कितना उपयोग करना चाहिए यह हम सभी को तय करना है | इन्टरनेट के अपने फायदे हैं | मानती हूँ कोई भी चीज़ झट से मिल जाती हैं उसमें | पर मोबाइल और कंप्यूटर पर ज्यादा देर बैठने से आँखें ख़राब हो जाती हैं | और एक बात ध्यान देने योग्य है कि यहाँ जो हम पढ़ते हैं वो हमें याद नहीं होता है |”
“वो कैसे? ” एक बच्चे ने पूछा |
“देखो, जब हम किताब पढ़ते हैं, उसको पढ़ते वक्त हमारा पूरा ध्यान उसी पर होता है | अक्षर दर अक्षर हम पढ़ते हैं जिससे हमारा कंसंट्रेशन बढ़ता है और साथ में हम अपने नोट्स भी लिख सकते है | रीडिंग हैबिट बढ़नी चाहिए |”
स्कूल के बाद जब सन्देश घर पहुंचा, उसने मम्मी को आवाज़ लगायी , “मम्मी , क्लास में मैं सेकंड आया हूँ ऐसा मैडम ने मुझसे कहा है| पता है, मैडम बोल रही थी रीडिंग हैबिट बढ़ानी चाहिए | मैंने उनको बता दिया है कि मैंने लाइब्रेरी ज्वाइन कर रक्खी है | वे बहुत खुश हुई और मुझे सबके सामने शाबाशी दी | मैं बहुत खुश हूँ आज |” इतने में उसके पापा उसके लिए एक कंप्यूटर लेकर आते हैं और कहते हैं. “बेटा तुम्हारे प्रोजेक्ट वर्क के लिए है यह |”अब क्या था, मम्मी का मोबाइल भी था , उसका कंप्यूटर भी और साथ में लाइब्रेरी की किताबें भी | पापा और मम्मी कभी बच्चों के दुश्मन नहीं होते हैं | मोबाइल संस्कृति, विकास का एक मेव पर्याय नहीं होता है |
– कल्पना भट्ट