छन्द संसार
मेहँदी के दोहे
गीत मिलन के गा रहे, मेहँदी वाले हाथ।
रंग न छूटे प्रेम का, जन्मों का है साथ।।
गोरे हाथों में सजी, गुलबूटे की बेल।
ऐसे ही बढ़ता रहे, साजन अपना मेल।।
मेहँदी धानी रंग की, घुटकर राची लाल।
प्रेम पिया बढ़ता रहे, ज्यूँ-ज्यूँ गुजरे साल।।
मेहँदी तू सच्ची सखी, समझे मन की बात।
लाली भीतर लाज की, बाहर हरियल पात।।
जिन हाथों में तू सजी, उनके हैं बड़ भाग।
मेहँदी पी की लाड़ली, करती अमर सुहाग।।
– ख़ुर्शीद खैराड़ी
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