उभरते-स्वर
मेरे दिल की कुंज कलिका
मेरे दिल की कुंज कलिका,
मेरे दिल का हाल सुनाये।
चाहूँ उस नील परी को
मेरी रग-रग में बस जाये
नैनों के पट गिराऊँ मैं
मेरे दिल के पट खुल जाये
खुले पटो में ओझल,
एक छवि नज़र यूँ आये!
अम्बर शीर्ष गगन से,
कोई नीली धारा आये
घुँघरु की रुनझुन-सी
कोई काँच चूड़ियाँ खनकाये।
निर्लज्ज फिज़ा के झोंके से
परिधान तनिक-सा हट जाये
स्वर्ण-किरण-सी गोरी काया,
देख जलज यूँ शर्माये।
लबों की लाली ज़ुल्फ़ों की हलचल
मधुकर यूँ मंडराये।
ऐसा दृश्य लगे मेरे मन को,
जैसे नागिन झूला खाये।
नेत्रों की भृकुटि अति सुन्दर
मस्तिष्क बिंदिया चमकाये!
ऐसा दृश्य लगे मेरे मन को,
जैसे शुक्र ग्रह कोई दिखलाये।
चंचल नैनों की वो जोड़ी,
वर्षा प्यार की करती है
नूर अपार भरा है उनमें,
साँभर झील-सी लगती है
वक्ष-स्थल पयोधर से,
अद्भुत दृश्य बनाये!
ऐसा दृश्य लगे मेरे मन को,
जैसे पारस पाहन मिल जाये
नाभि कटि कारीगरी,
कल्पलता बन जाये!
ऐसा दृश्य लगे मेरे मन को,
जैसे सागर भँवर बनाये
करुण-ममता की उज्ज्वल मूरत,
सेवा भाव दिखलाती है
ऐसा दृश्य लगे मेरे मन को,
जैसे अनसूया की दासी है
पीयूष सौन्दर्य भरा है उसमें,
दिलकश उसकी सूरत है
ऐसा दृश्य लगे मेरे मन को,
जैसे रति नाम की मूरत है
विधि-विधाता अद्भुत लीला,
वर्णन किये न जाये
यही दूआ मैं चाहूँ रब से,
वो मुझको मिल जाये
मेरे दिल की कुंज कलिका,
मेरे दिल का हाल सुनाये
चाहूँ उस नील परी को,
मेरी रग-रग में बस जाये
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ग़म-ए-बेवफ़ाई
लगा लो गले से, मुझे एक लम्हा,
कि तन्हाई मेरी,अमर हो गई है
जिसे मैंने चाहा था,आठो पहर
वो चाहत ही मेरी सज़ा हो गई है
जलाकर दीये चाहतों के ज़िगर में
तन्हाइयों के हवाले किया है
जिसे देखकर भूल जाता हूँ रब को,
उसी ने मुझे दर-बदर यूँ किया है
संभलना भी चाहे दिल संभल भी न पाये
भुलाना भी चाहे दिल भुला भी न पाये
जो दिल में बसी है, यूँ राधा-सी बनकर
मिटाना भी चाहे, दिल मिटा भी न पाये
वो बहती रहेंगी, मेरी सांसों में पर
वफ़ा-ए-मुहब्बत वो अब न रहेगी!
गुज़र जायेंगे दिन, ज़ख्म भी भरेंगे
मगर दर्द की ये निशानी रहेगी
तबाह ज़िन्दगी यूँ,मेरी कर गये वो
कि अमृत के बदले, ज़हर दे गये वो
जो लूटता रहा दिल, उसी की खुशी पर
उसी दिल को पागल, पत्थर कर गये वो
कि क्या दोष था मेरे, मासूम दिल का
सज़ा बेपनाह वो मुझे दे गये हैं
उसे चाहना गर, सज़ा है मेरी तो
सज़ा वो बहुत कम, मुझे दे गये हैं
– अमित कुमार मीना