प्रेम-पत्र
मेरे तालिब!
तुम तक ये ऐतबार पहुँचे
कि तुम जब
उदास होते हो
तब सारे गीत,
सारी गजलेँ
उदास हो जाती हैँ,
नज्मेँ
रंग बिखेरना
भूल जाती हैँ
और हर्फ मुस्कुराना,
एक तुम्हारी उदासी
मेरी ज़िंदगी की
हर कविता को
उदास कर जाती है,
मेरे सभी वाक्य
बेज़ुबान हो जाते हैँ
और बातेँ गूँगी
सुनो!
जब सारे ग़म सो जायें
और अश्क
मध्यम हो जायें
तब तुम
एक दर्द लिखकर
मेरी जुल्फोँ मेँ
खोँस जाना
मेरी साँसेँ
उतने भर से ही
तल्ख हो जायेँगी
और रातेँ एक क़यामत
मैँ उसे ओढ़कर
तुम्हारा सारा ग़म
समेट लूँगीँ
और ता-उम्र
तुम हो जाऊँगीँ
– तुम्हारी जानिब
‘मैँ’
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मुझे चिठ्ठी लिखने का
शौक़ नहीँ था
पर तुम्हारा नाम
लिखने का शौक़
इतना था
कि मुझे
ये भी सिखा गया,
अब मैँ रोज लिखती हूँ
एक पत्र
जिसमेँ सबसे ऊपर
लिखा होता है
तुम्हारा नाम
‘प्रिय अनमोल’
उफ्फ!
कितना अनमोल है
ये शब्द प्रिय,
रखती हूँ
खुद के पास
तकिये के नीचे
सोती हूँ उस पर यूँ
ज्योँ बाँह हो वो तुम्हारी
मेरे सिर को
सहारा दिये
आओगे अबकी
जब सावन मेँ तुम
तो बादलोँ पर पाओगे
लिखी वो मेरी
पाती प्रेम की……।
– अनामिका कनोजिया प्रतीक्षा