उभरते स्वर
मेरे इंजीनियर मन ने मुझसे कहा….
मेरे इंजीनियर मन ने मुझसे कहा, क्यूँ न मैं एक ऐसी डिज़ाइन बनाऊँ ,
चेरापूंजी में बसे घनघोर बादलों को, लातूर में लाके बरसाऊँ
हिमालय, कश्मीर में बरसों से निकम्मी पड़ी बर्फ़ को,
राजस्थान और कच्छ में काम पर लगाऊँ
ऐसी डिजाइन न बना सका तो, दुनिया के सारे डॉक्टरों को काम पे लगाऊँ,
सब लोगों की जीभ से, खारे स्वाद का सेन्सर ही बाहर निकलवाऊँ
बारिश नहीं हुई तो क्या हुआ, सबको सीधे समुद्र का ही पानी पिलाऊँ
पानी से बनी इस दुनिया को पानी की कमी से मरते बचाऊँ
अगर इतना भी नहीं कर सका तो, लोकशाही की ताकत आजमाऊँ ,
इंडस्ट्री चलाने से लोगों की जान है ज्यादा क़ीमती, जो समझे, उसे ही CM या PM बनाऊँ
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दिल की आरज़ू
किसी दोस्त ने मुझसे पूछा, क्या है तुम्हारी आरज़ू,
क्या कुछ बनने की या
फिर क्या कुछ पाने की?
मैंने कहा मेरी तो हसरत और आरज़ू ना कुछ बनने की न ही कुछ पाने की,
बस एक ही मन्नत है दिल की , मिले थे जो कभी मुझे,
उसे एक बार फिर मिल पाने की…
भले ही बात वहीं से रुक जाए, जहाँ से रुकी हुई थी,
न हो कुछ ज्यादा पर बने बात उतनी तो,
गलत को सही कर पाने की….
जानता हूँ मैं कि समय जो खुद के लिये रुकता नहीं, मेरे लिये कैसे थम जाएगा,
मेरे तो दिल की एक ही आरज़ू, बीते कुछ पल,
फिर से उनके लिए जी पाने की
– चेतन कुमार चौहान