प्रेम-पत्र
मेरी ग़ज़ल!
कुछ सुना तुमने
ये वक़्त
तुम्हें मुझसे
अलग करना चाहता है
ये मुझसे
तुम्हारे अहसास को
छीन लेना चाहता है
ये चाहता है
मैं जीना सीख जाऊँ
तुम्हारी रवानी के बिना
ये नहीं जानता
कि मेरी उम्र
तुम्हारे अल्फ़ाजों के बग़ैर
मुक़म्मल हो ही नहीं सकती
ये नहीं जानता
कि तुम्हारे अशआर
मुझे जीने का हौंसला देते हैं
ये नहीं जानता
कि तुम्हारे रदीफ और काफिये
मेरे सीने की धड़कनों में
बेतरतीब
उलझ गये हैं
कि इन्हें जुदा कर पाना
मुमकिन ही नहीं अब
कल जब तुम्हें
अपने सिरहाने
सिसकते देखा
तब दिल तड़प उठा था
तुम तो मेरी हिम्मत हो!
बस यक़ीन रखो
और सुनो!
जिस्म पर किसी का
ज़ोर चल सकता
मगर
रूह पर नहीं
और
हमारी रूहें
जुदा कब हैं
एक-दूजे से!!
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बादलों पर लिखी
तुम्हारी पाती
अक्सर मैं पढ़ता रहता हूँ,
ये धुएँ जैसे शब्द
मुझे साफ दिखाई देते हैं
जिन पर होती है
तुम्हारे मखमली
हाथों की छुअन,
तुम्हारी नर्म, कोमल
अँगुलियों का अहसास,
जो बिखरा होता है
इन रुपहले अक्षरों में
स्पर्श करता रहता है
मेरे अन्तर्मन को
कभी-कभी
इस पाती में
तुम्हारे मुख की
एक हल्की-सी
आकृति उभर आती है,
जो समझा देती है
तुम्हारा सारा हाल
कि किस क़दर
एक-एक पल
बिताती हो तुम
मेरे आने की
प्रतीक्षा में
इस बार
मैं सावन से कहूँगा
कि वो
ले चले मुझे
तुम्हारे पास
ताकि पढ़ सकूँ
मैं वो पाती
प्रेम की…………।
– के. पी. अनमोल