मृत्यु तो नूतन जनम है, हम तुम्हें मरने न देंगे!
मृत्यु तो नूतन जनम है, हम तुम्हें मरने न देंगे!
वे कहते थे, ‘मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य’
यदि आपको कविता पसंद है तो आपने गोपालदास नीरज को अवश्य पढ़ा होगा, यदि संगीत के प्रेमी हैं तो उनके गीतों को भी ख़ूब सुना होगा। ख़ूब इसलिए क्योंकि जिसने एक बार सुन लिया तो वह उनका ही होकर रह गया और फिर एक बार से तो जी भरता ही कहाँ है! उनका जीवन जितने संघर्ष से गुजरा उतनी ही मजबूती से उन्होंने इसको जिया भी और अपनी मेहनत के दम पर उच्च शिखर तक पहुँचे। जिस दर्द को उन्होंने महसूस किया, वही शब्द बन काग़ज़ पर कुछ यूँ ढलता रहा कि जनमानस के दिलों को भीतर तक स्पर्श कर गया। उनकी कविताओं के हाथ में उन्होंने जो प्रेम रुपी दीपक थमाया था, उसी ने हिन्दी साहित्य के हर गलियारे को अपनी रोशनी की चमक से जगमग कर दिया। वे जनहित की बात करते थे, उनकी भाषा मानवीयता से परिपूर्ण थी और लेखनी भी इन्हीं गुणों की कुशल संवाहक बनी। समाज के प्रति उनकी चिंता, उनके संवेदनशील हृदय की परिचायक थी। धर्मनिरपेक्षता, उनके व्यवहार और लेखनी में कूट-कूटकर भरी थी। वे कहते थे, “अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए; जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।” वे राजनीतिज्ञों की टेढ़ी चाल भी ख़ूब समझते थे तभी तो जनता को सचेत कर बोल उठते थे, “हाथ मिलें और दिल न मिलें, ऐसे में नुक़सान रहेगा/ जब तक मंदिर और मस्जिद हैं, मुश्किल में इंसान रहेगा।”
उनके अवसान से साहित्य की बगिया का सबसे सुर्ख गुलाब मुरझाया-सा लगता है। सूरज की चमक में फीक़ापन है, चाँदनी ने उदासी का रंग ओढ़ लिया है। अब जबकि मैं उन्हें श्रद्धांजलि स्वरुप कुछ कहना चाहती हूँ तो शब्द जैसे बिखर से रहे हैं, इन्हें समेटना असंभव जान पड़ता है।
नीरज जी को प्राप्त पद्मश्री, पद्मविभूषण, यश भारती सम्मान हिंदी साहित्य जगत में उनके अभूतपूर्व योगदान की गाथा स्वयं गाते हैं। तीन बार मिले फिल्मफेयर पुरस्कार, गीतकार के रूप में उनकी प्रतिष्ठा का यशगान करते नज़र आते हैं। वे कवि थे और गीतकार भी। अपनी दोनों ही पारियाँ उन्होंने सर्वश्रेष्ठ बन खेली हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ- आसावरी, दर्द दिया है, कारवां गुजर गया, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाए नहीं, नीरज की पाती, नीरज दोहावली, गीत-अगीत, पुष्प पारिजात के, काव्यांजलि, नीरज संचयन, बादर बरस गयो, वंशीवट सूना है, नीरज के संग-कविता के सात रंग, प्राण-गीत, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिये इत्यादि रहीं। मंच पर भी उन्हें श्रोताओं का भरपूर स्नेह और सराहना मिली।
पद्मश्री गोपालदास नीरज मूलतः कवि ही थे पर गीतकार के तौर पर उनका हिन्दी सिनेमा को दिया गया योगदान अतुलनीय है। इंसानी भावनाओं के हर रंग को उन्होंने ख़ूब निखारा है। तभी तो प्रेम की शोख़ी में डूबकर वे लिखते हैं-
“याद अगर वो आये, कैसे कटे तनहाई /सूने शहर में जैसे, बजने लगे शहनाई/ आना हो, जाना हो, कैसा भी ज़माना हो/ उतरे कभी ना जो खुमार वो, प्यार है”
इन पंक्तियों में इस क़दर नशा है कि कई दशक बीत जाने पर भी इनकी ख़ुमारी प्रेमियों के दिलों पर अब तक चढ़ी हुई है। प्रेमिका के हृदय की धड़कन को उन्होंने ‘आज मदहोश हुआ जाए रे’ के तराने से अभिव्यक्त किया है तो उसकी याद में ख़त भी इश्क़ की गाढ़ी स्याही में डुबोकर, टूटकर लिखा है और उसे इतनी सुन्दर उपमाएँ दी हैं कि चाँद-तारों को भी उससे ईर्ष्या होने लगे। मदहोशी में ही सही, पर कोई यूँ भी प्रेमपत्र लिखता है क्या!
“कोई नगमा कहीं गूँजा, कहा दिल ने के तू आई/ कहीं चटकी कली कोई, मैं ये समझा तू शरमाई/ कोई ख़ुशबू कहीं बिख़री, लगा ये ज़ुल्फ़ लहराई” (लिखे जो ख़त तुझे)
प्रकृति की सारी सुन्दरता समेटकर इश्क़ की गहराई को उन्होंने “फूलों के रंग से, दिल की कलम से तुझको लिखी रोज पाती” में भी इतनी खूबसूरती से व्यक्त किया है कि यह प्रेमियों का प्रतिनिधि गीत बन बैठा है। “खिलते हैं गुल यहाँ, खिल के बिखरने को”, “ओ मेरी, ओ मेरी, ओ मेरी शर्मीली” गीत भी यही रूमानी छटा बिखेर वर्षों से जवां दिलों के सरताज बन गए। “चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है/ देखो-देखो टूटे ना” में वे मनुहार कर अपने शरारतीपन का भी बड़ा प्यारा परिचय देते हैं।
नीरज, प्यार में भीतर तक डूब जाने की बात करते हैं तो टूटे हुए दिलों पर मरहम रख उसे सांत्वना भी देते आये हैं और उदासी भरे लम्हों में उनकी क़लम दर्द की जीती-जागती तस्वीर बन उभरती है। कभी यह भीतर तक टीस बन ठहर भी जाती है, जब वे कहते हैं-
“ये प्यार कोई खिलौना नहीं है/ हर कोई ले जो खरीद /मेरी तरह ज़िंदगी भर तड़प लो/ फिर आना इसके क़रीब” (दिल आज शायर है, ग़म आज नग़मा है)
मात्र प्रेम ही नहीं ‘दर्शन’ भी उनकी लेखनी का आवश्यक तत्त्व बनकर उभरा है। ‘ए भाई, ज़रा देखके चलो’ जीवन-दर्शन से भरा हुआ गीत है। इसका एक-एक शब्द जीवन की उस कड़वी सच्चाई का दस्तावेज है, जिसका सामना हम सब कभी-न-कभी करते आये हैं। उनके ये शब्द कितनी कटु स्मृतियों की धुंधली तस्वीर खींच देते हैं-
“जानवर आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है/ खाता है कोड़ा भी/ रहता है भूखा भी/ फिर भी वो मालिक पर करता नहीं वार है/ और इन्सान? माल जिसका खाता है/ प्यार जिससे पाता है/ गीत जिसके गाता है/ उसके ही सीने में भोंकता कटार है।”
“कहता है जोकर सारा ज़माना, आधी हक़ीकत आधा फ़साना/ चश्मा उठाओ, फिर देखो यारो, दुनिया नयी है, चेहरा पुराना” भी इन्हीं अहसासों को ईमानदारी से अभिव्यक्त करता चलता है।
उनके ये शब्द “बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ, आदमी हूँ, आदमी से प्यार करता हूँ” भी वर्तमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में एक क़सक छोड़ जाते हैं। इंसानियत की गुहार लगाने वाले नीरज जी की नज़र समाज के हर पहलू पर थी और वे मानवता को हर धर्म से श्रेष्ठ समझते थे। यहाँ इस बात की पुष्टि भी होती है कि जब तक इंसान इस धरती पर है उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता बनी रहेगी।
“ताक़त वतन की हमसे है” जैसा कालजयी गीत लिखकर उन्होंने न केवल सैनिकों का सम्मान किया बल्कि जनमानस की भुजाओं को फड़कने पर मजबूर कर उनमें देशभक्त की पवित्र भावना का संचार भी किया। उनके स्वर, चेतना के स्वर थे।
पद्मभूषण गोपालदास नीरज जी प्रेम की बात करते थे, वीर रस से भरे ओजपूर्ण गीत लिखते थे, अपने दार्शनिक अंदाज़ से सबके चहेते बन बैठे थे। जीवन के हर रस का उन्होंने अपने शब्दों से शृंगार किया। हर भाव को उत्कृष्ट अभिव्यक्ति दी। अब जब गए हैं तो उनकी लेखनी की अमूल्य निधि हम सबके पास विरासत में छोड़ गए हैं, जिसे हम सदैव गुनगुनाते रहेंगे, जिसे हमारे पूर्व की पीढ़ी ने ख़ूब पढ़ा, सराहा और सम्मानित भी किया, आगे वाली पीढ़ियाँ भी इस धरोहर को संभालकर रखेंगीं।
नीरज जी के निधन ने जो शून्य उत्पन्न कर दिया है, उसे कभी भरा नहीं जा सकता; पर हम यह भी जानते हैं कि कलाकार कभी मरते नहीं! वे अपनी कृति के रूप में हम सबके हृदय में सदैव धड़कते हैं। उनके शब्द एक गहरी सीख बन साथ चलते हैं, प्रेरणा देते हैं, सच्चा मार्गदर्शन करते हैं।
“गीत अश्क बन गए, स्वप्न हो दफ़न गए/ साथ के सभी दिये, धुआं पहन-पहन गए/ और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके/ उम्र की चढ़ाव का उतार देखते रहे/ कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे”
नीरज जी जानते थे कि उनके कितने दीवाने हैं तभी तो उन्होंने कहा था “आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा/ जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा” (धर्म है..)
उन्हीं की लिखी पंक्तियों से श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ-
धूल कितने रंग बदले डोर और पतंग बदले
जब तलक ज़िन्दा कलम है हम तुम्हें मरने न देंगे
खो दिया हमने तुम्हें तो पास अपने क्या रहेगा
कौन फिर बारूद से सन्देश चन्दन का कहेगा
मृत्यु तो नूतन जनम है, हम तुम्हें मरने न देंगे
यूँ ही नहीं कोई देशराग गाता है, यूँ ही नहीं कोई प्रेम धुन बजाता है, सदियाँ लग जाती हैं उन-सा कुछ बनने में, यूँ ही नहीं कोई नीरज बन जाता है।
विदा, प्रिय कवि….शत शत नमन!
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चलते-चलते: हिन्दी साहित्य में महिलाएँ मूलतः कथा एवं काव्य विधा में ज्यादा लिखती रही हैं। सुखद बात है कि बीते कुछ वर्षों में ग़ज़ल के प्रति भी उनका अधिक रुझान जागृत हुआ है। इन दिनों कई ग़ज़लकारा इस विधा में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कर रही हैं। ‘हस्ताक्षर’ ने अपना जुलाई अंक इन्हीं नई एवं प्रतिष्ठित महिला ग़ज़लकारों पर केन्द्रित किया है। इसे हम ‘महिला ग़ज़ल अंक’ के रूप में आपके समक्ष रख रहे हैं। आशा है, हमारा यह प्रयास पाठकों तथा रचनाकार मित्रों को पसंद आएगा। आपके सुझावों और प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
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– प्रीति अज्ञात