उभरते-स्वर
मुफ़लिसी और अमीरी
सच कहूँ अगर मैं
बड़ा भाग्यशाली हूँ
क्योंकि मेरे पास
बड़ा-सा घर है
भले ही वृष्टि में
ज़रा टपकता है।
मुझे मिल जाता है
भोजन कभी भी
मेरे घर पर
दाल-चावल ही सही।
घर में बड़ा-सा
परिवार रहता है
दीदी, मम्मी, बड़ी मम्मी
पापा, भैय्या, बड़े पापा
भतीजी, भाभी, चाचा
सभी एक साथ रहते हैं
एक ही घर में
भले ही कभी-कभार
हो जाती है ज़ुबानी जंग
मगर फिर से सभी
बनाते, खाते, रहते हैं
एक साथ, ढंग से।
भगवान ने भी किसी में
अंग की कमी नहीं रखी
किसी के शरीर में
यह भी अनमोल
धन-संपदा है।
कह रहा हूँ ऐसा
क्योंकि बहुत ऐसे अभागे हैं
भाग्य के मुफ़लिस हैं
जिनके पास घर-परिवार नहीं।
अगर कुनबा भी है
तो उसमें स्नेह-प्यार नहीं।
अत्यधिक धन है तो
पास पूर्ण तन नहीं।
बेटे-पोते सब हैं, पर
आपस में अपनापन नहीं।
ऐसी स्थिति में
मैं धनी हूँ
भाग्यशाली हूँ।
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विनाश का संकेत
मार्गों के आरे-आरे
इमारतों के निर्माण के लिए
पादपों का यूँ काटा जाना
विनाश का संकेत है
विनाश को आमंत्रण है।
शहरीकरण के लिए
ऊँची-ऊँची इमारतों के लिए
अस्पतालों-होटलों के लिए
अरण्यों का उजाड़ा जाना
वनप्राणियों के निकेतन को
यूँ झटके में खत्म करना
अपने पतन, अपने खात्मे को
बुलावा देना है।
आज मानुष पूरी लगन से
इस विनाश वाले विकास को
पूरा करने में लगा हुआ है।
इस विकास का परिणाम
धीरे-धीरे समक्ष सबके
होता जा रहा है।
– अनुज पाण्डेय