ख़बरनामा
मुक्तिबोध के नाम रही एक सार्थक शाम
एक साहित्यिक की डायरी के हवाले से मुक्तिबोध घोषणा करते हैं कि जीवन बोध ही साहित्य बोध है। इसलिए हम जीवन और साहित्य को अलग-अलग करते हुए नहीं देख सकते। यदि कवि अपनी कविता में अभिनय करता है तो वह अधिक देर स्वयं को बचा नहीं सकता क्योंकि उसकी जीवन दृष्टि ज़ाहिर होते ही उसकी काव्य दृष्टि धूमिल हो जाती है।
इस आशय का महत्वपूर्ण विचार देश के प्रसिद्ध कवि श्री कुमार अंबुज ने शनिवार 27 मई 2017 की शाम “युवाओं का मुक्तिबोध” कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रखा।
साहित्य सागर के तत्वावधान में मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी वर्ष को रेखांकित करने के उद्देश्य से आयोजित इस कार्यक्रम में श्री अंबुज ने यह महत्वपूर्ण कथन कि “असली और सही रचनाकार हमेशा सत्ता के प्रतिपक्ष में होता है”, कहते हुए मुक्तिबोध को प्रतिरोध की कविता का नायक निरूपित करने की पुरज़ोर हिमायत की। साथ ही, श्री अंबुज ने रेखांकित किया कि आज के समय के राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों व परिवर्तनों को समझने के लिए मुक्तिबोध को समझना और जरूरी हो जाता है।
श्री अंबुज के इस सार्थक अध्यक्षीय उद्बोधन से कुछ पहले कार्यक्रम “युवाओं का मुक्तिबोध” की शुरुआत मुक्तिबोध की दो चुनिंदा रचनाओं के पाठ से हुई। मुक्तिबोध की दो चर्चित काव्य रचनाओं का पाठ आगर मालवा, मप्र से पधारीं श्रीमती दीक्षा मनीष ने बोधगम्यता के साथ किया। तत्पश्चात कार्यक्रम में प्रथम वक्ता के रूप में श्री अखिलेश ने मुक्तिबोध पर अपनी दृष्टि एवं शोधपरक विचार रखे। भरूच, गुजरात से पधारे श्री अखिलेश ने अपने सार्थक वक्तव्य में गंभीरता के साथ इस विषय को उठाया कि मुक्तिबोध अपने समय से आगे के यानी भविष्य के कवि रहे इसलिए वर्तमान में वह अधिक प्रासंगिक हो चले है। इसी कारण मुक्तिबोध पर कई मौलिक शोध भी सामने आ रहे हैं। श्री अखिलेश ने अनेक दृष्टांतों के हवाले से यह कहा कि मुक्तिबोध की प्रामाणिक जीवनी अब भी हमारे पास नहीं है।
मुक्तिबोध के साहित्य पर बात करते हुए श्री अखिलेश ने दो-तीन महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पर्श करते हुए कहा कि मुक्तिबोध हिन्दी के नये साहित्य के पहले कवि हैं जिन्होंने कविता में दर्शन की स्थापना की और यह भी कि मुक्तिबोध दुरूह कवि तो हैं लेकिन महत्वपूर्ण भी हैं। श्री अखिलेश ने कई पहलुओं को अपने वक्तव्य में समेटने की सार्थक चेष्टा की जिसमें जिज्ञासाएं, प्रश्न एवं मुक्तिबोध के प्रति एक युवा दृष्टि की झलक दिखी।
स्वराज भवन, भोपाल में आयोजित इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में विदिशा से पधारे शिक्षक एवं चर्चित कवि श्री ब्रज श्रीवास्तव ने मुक्तिबोध पर अपने संक्षिप्त किंतु सारगर्भित वक्तव्य में मुक्तिबोध के साहित्य विशेषतः काव्य को केंद्र में रखते हुए कई सिरों को टटोला। श्री ब्रज ने कहा कि मुक्तिबोध के काव्य में मराठी मनीषा संस्कारपोषित दिखायी देती है। उन्होंने कुछ उदाहरणों व उपमाओं के आधार पर यह घोषणा भी कि ऐसा नहीं है कि मुक्तिबोध का संपूर्ण काव्य ही दुरूह हो। अपने वक्तव्य के अंतिम वाक्यों में उन्होंने मुक्तिबोध को प्रगतिशील चेतना का प्रमुख स्वर एवं युवाओं को प्रेरित करने वाला कवि घोषित किया।
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत कर रहे राग भोपाली के संपादक एवं प्रगतिशील कवि श्री शैलेंद्र शैली ने मुक्तिबोध पर अपनी बात संस्मरणों के हवाले से रखी। उन्होंने मुक्तिबोध की पत्नी श्रीमती शांता मुक्तिबोध के साथ हुई भेंटवार्ता के कुछ प्रसंग सुनाते हुए मुक्तिबोध को प्रगतिशील काव्य का सशक्त एवं सर्वश्रेष्ठ हस्ताक्षर कहा। श्री शैली ने खरे शब्दों में मुक्तिबोध को महान कवि कहते हुए स्पष्ट किया कि उनकी कविता कभी भी सत्ता के संरक्षण की मोहताज नहीं रही बल्कि वह प्रतिरोध के कवि रहे। श्री शैली के अनुसार मुक्तिबोध कठिन समय में कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं को सहयोग देते रहे और पार्टी के साहित्य का प्रचार-प्रसार करने में भी अपनी भूमिका निभाते रहे। अपने उद्बोधन को श्री शैली ने मुक्तिबोध पर लिखी अपनी कविता के पाठ के साथ विराम दिया।
इस कड़ी में अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री कुमार अंबुज ने उपरोक्त बातें कहते हुए पूर्व वक्तव्यों में व्यक्त किये गये संशयों, प्रश्नों, जिज्ञासाओं एवं कतिपय तथ्यों का समाधान भी प्रस्तुत किया। श्री अंबुज ने कहा कि मुक्तिबोध के साहित्य को पाठकों को उन्हीें के द्वारा लिखित एक साहित्यिक की डायरी के माध्यम से समझना चाहिए। इस छोटी सी डायरी में वह अपनी साहित्यिक प्रक्रियाओं एवं उद्देश्यों के बारे में सूत्र देते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि मुक्तिबोध को कभी सत्ता के संरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ी और उनके साहित्य में भाषा या विचारों का विकास एक स्वाभाविक प्रक्रिया रहा जो हर कवि के साथ कमोबेश होता ही है इसलिए उनकी परिपक्व छवि को ही हमें मुक्तिबोध होने का अर्थ मानना चाहिए।
कार्यक्रम के दौरान अचानक मौसम के कारण बिजली के लगातार आने-जाने के कारण उत्पन्न हुए मामूली व्यवधान को दृष्टिगत रखते हुए काव्य पाठ के सत्र को मंच की अनुमति से संक्षिप्त किया गया जिसमें सर्वश्री कुमार अंबुज, शैलेंद्र शैली, ब्रज श्रीवास्तव, अखिलेश एवं कार्यक्रम का संचालन कर रहे युवा शायर भवेश दिलशाद ने अपनी एक-एक रचना का पाठ किया जिसे श्रेाताओं से भरपूर प्रतिसाद मिला। काव्य पाठ के सत्र से पहले मुक्तिबोध की एक और चर्चित कविता “पूंजीवाद के प्रति” का पाठ सामूहिक सस्वर गायन के रूप में प्रस्तुत किया गया। श्रीमती आकांक्षा त्यागी एवं उनके सहयोगियों दीपक नेमा, प्रियंका एवं मधु ने जनगीत गायन शैली में इस रचना की बेहतरीन प्रस्तुति दी। इस सार्थक, आत्मीय एवं सरस कार्यक्रम के प्रारंभ में शॉल एवं पुष्पगुच्छ से समस्त अतिथियों का स्वागत साहित्य सागर परिवार की मार्गदर्शक श्रीमती आशा सक्सेना ने किया एवं अंत में आभार प्रदर्शन कार्यक्रम के आयोजक व संचालक भवेश दिलशाद ने किया।
– के. पी. अनमोल