मुक्तक
मुक्तक
आँसुओ से हार मैंने बुन लिया,
दर्द मे भी हास मैंने चुन लिया।
जब मिले ताने मुझे इस राह में,
गीत प्यारा-सा समझ के सुन लिया।।
मुस्कुराने का बहाना चाहिए,
फिर वही बीता ज़माना चाहिए।
खर्च करने से सदा बढ़ता रहे,
प्यार का ऐसा ख़ज़ाना चाहिए।।
गीत कजरी यूँ सभी तो गा रहे हैं आज भी,
प्रेम का ख़त डाकिये ला रहे हैं आज भी।
ढूँढते हैं सब तुझे ही देख तू आकर ज़रा,
वो घने काले बदरवा छा रहे हैं आज भी।।
पाँव को आलते से सजाऊँ ज़रा,
हाथ में अब हिना को रचाऊँ ज़रा।
पायलों को बजा के वधू की तरह,
ओढ़नी डाल के मैं लजाऊँ ज़रा।।
गलतियों से सदा सीखना चाहिए,
नित नये भाव को सींचना चाहिए।
साथियों को ख़ुशी दी सदा आपने,
दिल कभी गैर का जीतना चाहिए।।
– अल्का चंद्रा